किसी ने सही ही कहा है, ‘जब तक आप कुछ नहीं बदलेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा’। किसी समय त्रिपुरा सिर्फ नाम के लिए भारत के मानचित्र का भाग था, अन्यथा लोग इसका नाम सुनते ही सर खुजाने लगते थे। परन्तु आज देश में हर जगह इस राज्य के चर्चे हैं, जिसके पीछे दो कारण हैं – जिमनास्ट दीपा करमाकर, और उनसे बढ़कर त्रिपुरा के वर्तमान मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब, जिनके कारण आज देशभर की मीडिया चाहे मजबूरी में ही सही, पर त्रिपुरा के बारे में चर्चा करने को विवश हैं।
आज ही के दिन बिप्लब कुमार देब का जन्म गोमती जिले के उदैपुर ग्राम में हुआ। इनके माता-पिता पूर्वी पाकिस्तान के अत्याचारी शासन से तंग आकर 1967 में चांदपुर से वर्तमान भारत में शरण लेने को विवश हुए थे। त्रिपुरा विश्वविद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर उन्होने 15 वर्ष नई दिल्ली में बिताए, परन्तु उन्हें त्रिपुरा की माटी मानो सेवा के लिए बुलाती रही, और वे आखिरकार त्रिपुरा वापिस आ ही गए।
ये वो समय था, जब माणिक सरकार को उनकी ‘सादगी’ के लिए वामपंथी मीडिया द्वारा खूब प्रशंसित किया जाता था। वो अलग बात थी कि उनके रहते कभी भी त्रिपुरा के विधानसभा में राष्ट्रगान का संबोधन नहीं हुआ, और न ही त्रिपुरा कभी भी देश के प्रगतिशील राज्यों की सूची में शामिल था। परन्तु जल्द ही समय बदला, और बिप्लब कुमार देब का भाग्य भी। जनवरी 2017 में उन्होंने त्रिपुरा प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सुधीन्द्र दासगुप्ता से संभाली।
केवल एक वर्ष में बिप्लब कुमार देब ने वो किया, जो किसी ने भी नहीं सोचा था। 2018 में भाजपा ने त्रिपुरा में अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 44 सीटों पर विजय प्राप्त की और पहली बार त्रिपुरा में सरकार बनाई। पहली बार त्रिपुरा में राष्ट्रवादी विचारधारा की विजय हुई और उन्होंने अपनी सरकार स्थापित की। लेकिन ये तो मात्र प्रारंभ था, क्योंकि यहाँ से बिप्लब देब का ही नहीं, अपितु त्रिपुरा का भी भाग्योदय प्रारंभ हुआ।
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इसके लक्षण तभी से दिखने प्रारंभ हुए, जब त्रिपुरा में पहली बार विधानसभा में राष्ट्रगान बजा, और वर्षों पूर्व स्थापित व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को ध्वस्त किया गया। त्रिपुरा निर्धन राज्य नहीं था, परन्तु उसे जानबूझकर वैसे रखा गया, और इसी के विरुद्ध बिप्लब देब ने आते ही मोर्चा खोल दिया, और इसमें वामपंथियों ने भी भरपूर सहयोग दिया।
वो कैसे? बिप्लब देब ने जब महाभारत को आधुनिक युग से जोड़ने का प्रयास किया था, तो भाषा पर अपनी पकड़ न होने के कारण वे अपनी बात पूरी तरह समझा नहीं पाए, जिसपे मीडिया ने उनका उपहास उडाना शुरू कर दिया। परन्तु अनजाने में उन्होंने बिप्लब देब को वो लाइमलाईट देनी शुरू कर दी, जिसके लिए वो और त्रिपुरा वास्तव में अधिकारी थे।
TFI ने अपने एक विश्लेष्णात्मक पोस्ट में लिखा भी है,
“बिप्लब देव के सत्ता में आने से पहले सभी मीडिया त्रिपुरा के पूर्व सीएम माणिक सरकार के गुणगान करते नहीं थकती थी, मीडिया के अनुसार वोएक गौरवशाली नेता थे। जैसे ही 2018 के चुनावों में माणिक की हार हुई औरबीजेपी ने 25 सालों बाद गैर-कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना की वैसे ही मीडियाकी रूचि त्रिपुरा में बढ़ गयी।”
परन्तु बिप्लब देब की लोकप्रियता यहीं तक सीमित नहीं है। उदाहरण के लिए 2019 में बिप्लब कुमार देब ने साफ किया कि उनकी सरकार ने राज्य के शहरों को गंदगी से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होंने कहा ‘राज्य के लोगों को अपने आस पास सफाई बनाए रखने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना चाहिए। उन्हें खुले में कूड़ा फेंकने से बचना चाहिए। लोग खुले में ही गंदगी से भरा प्लास्टिक बैग फेंक देते हैं जो बाद में नालियों को जाम कर देता है। लोगों सड़कों पर थूकते हुए चलते हैं। हमें इसे रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है।’
परन्तु असल अग्निपरीक्षा तब आई, जब हाल ही में कट्टरपंथी मुसलमानों ने विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा बांग्लादेशी हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचारों के विरोध प्रदर्शनों पर आगजनी और उपद्रव का प्रयास किया। असल में त्रिपुरा के पानीसागर नामक एक क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद ने एक शांतिपूर्ण रैली निकाली। इसका प्रमुख उद्देश्य था बांग्लादेश में हिंदुओं पर हाल ही में हुए अत्याचारों का विरोध करना। लेकिन ऐसी रैली हो और अराजकतत्व अपना काम न करे, ऐसा हो सकता है क्या? अफवाह फैला दी गई कि त्रिपुरा में मस्जिदें जलाई जा रही हैं, जिसके पीछे कट्टरपंथी मुसलमानों ने त्रिपुरा में जमकर उत्पात मचाया, लेकिन जब प्रत्युत्तर में त्रिपुरा की जनता ने उन्हे सबक सिखाया, तो सोशल मीडिया पर #SaveTripuraMuslims जैसे हास्यास्पद हेशटैग ट्रेंड होने लगे।
इस बीच त्रिपुरा पुलिस ने भी अपने रुख से स्पष्ट कर दिया कि यह गुंडागर्दी और कहीं भी चले, त्रिपुरा में नहीं चलने वाली। उन्होंने मस्जिद के जलाए जलाने का पुरजोर खंडन किया और यह भी कहा कि ऐसी अफवाह फैलाने वाले देशद्रोहियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। त्रिपुरा के कानून व्यवस्था को संभालने वाले IG सौरभ त्रिपाठी ने दो टूक बयान में कहा, “पानीसागर में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कोई मस्जिद नहीं जली थी। ट्विटर और फ़ेसबुक पर देशद्रोही और शरारती तत्व जानबूझकर झूठी अफवाहें फैला रहे हैं। जो वीडियो और फोटो सर्कुलेट की जा रही हैं, उसका मूल घटना से कोई वास्ता ही नहीं है।” इतना ही नहीं, त्रिपुरा प्रशासन ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए कट्टरपंथी मुसलमानों और उनके खैरख्वाहों को तुरंत सलाखों के पीछे पहुंचाया और उनपर UAPA के अंतर्गत कार्रवाई भी की।
आज देश को ऐसे लोगों की सख्त आवश्यकता है, जो अपनी संस्कृति का मान भी रखें, और साथ ही साथ आधुनिकता के साथ भी कदम से कदम मिलाकर चलें! ऐसे में बिप्लब कुमार देब ने अपनी ओर से कमर कस ली है, और उन्होंने कहीं न कहीं हिमन्ता बिस्वा सरमा और योगी आदित्यनाथ के तौर तरीकों से ही सीख ली है। अब ऐसे में तो भारत का अहित चाहने वालों की खैर नहीं।