विराट कोहली की ‘woke’ नौटंकी ने भारतीय क्रिकेट का सत्यानाश कर दिया है!

भारतीय टीम की इस हश्र के लिए सिर्फ और सिर्फ विराट कोहली जिम्मेदार हैं!

विराट कोहली

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खूब ज्ञान दीजिए, एकदम बुरा खेलिए, ज़िद करिए, विराट कोहली से woke कोहली बनिए! कौन मना किया है? परन्तु बंधु अगर आपका अहंकार देश की जीत पर भारी पड़ने लगे, तब आप अयोग्यता के उच्चतम शिखर पर होते हैं। अगर आपका छद्म उदारवाद आपके परंपरा-त्योहार पर भारी पड़ने लगी तब आप नीचता के निकृष्टतम स्तर पर होते हैं। होंगे आप विश्व के महानतम खिलाड़ी परंतु, इतने ‘विराट’ तो कदापि नहीं कि राष्ट्र और धर्म के प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगा सकें। प्रश्नचिन्ह इस बात का कि विश्व हमारे खेल सामर्थ्य पर संदेह करने लगे, हमसे यह पूछा जाने लगे कि क्या भारतीय गेंदबाजी इतनी अक्षम है? सवाल तो उठेंगे ही, हाल ही में यूएई में आईपीएल खेलने वाले भारतीय बल्लेबाजों का प्रदर्शन आइसीसी के इस टूर्नामेंट में इतना लचर कैसे हो गया?

पाकिस्तान से पराजय का घाव लिए देश आपको साहस दे रहा था, कीवियों पर विजय प्राप्त कर इसके भर जाने के विश्वास से देशवासी आपको सपोर्ट कर रहे थे। परंतु, आपके अहंकार ने सब कुछ खत्म कर दिया। भारत की यात्रा इस विश्वकप में समाप्त हो गई। कुछ क्रिकेट पंडित हैं, जो अभी भी सांख्यिकी और पारिस्थितिक गुणा भाग कर उम्मीद लगाएंगे। परंतु, यह सब उनकी बस एक कपोल कल्पना है। सार्थकता तो सिर्फ इस सवाल में है कि क्या भारतीय टीम सचमुच में इतनी अक्षम है?

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अहंकारवश देश की जीत को तिलांजलि देना अक्षम्य है

जी नहीं! भारतीय टीम पूर्ण रूप से सक्षम और विश्वकप के प्रचंडतम दावेदारों में से एक है। परंतु, नेतृत्व के नकारेपन ने इस दल को दिशा विहीन कर दिया! विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज, गेंदबाज, क्षेत्ररक्षक, अनुभवी और युवाओं से सजी इस टीम के पास हारने का सिर्फ यही एक कारण था। टीम के कप्तान साहब अगर दिवाली, पर्यावरण और पाक-जनित शमी की ट्रोलिंग पर भारत की परंपरा और धर्मनिरपेक्षता को ट्रोल करने के बजाए, आप अपने कप्तानी और बल्लेबाजी पर ध्यान देते तो परिस्थिति कुछ और होती! हम सिर्फ और सिर्फ अपने गलत निर्णयों की वजह से हारे हैं। इन सभी गलत निर्णयों में दूसरे मैच में वरुण चक्रवर्ती की जगह अश्विन को ना खिलाना था। इस मुद्दे पर बोलने की आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि देश की हार के पीछे सिर्फ एक व्यक्ति का अहंकार है। हार क्षम्य है, खराब खेलना भी क्षम्य है। परंतु, अहंकारवश देश की जीत की तिलांजलि दे देना, कदाचित अक्षम्य है।

कीवियों के साथ मुकाबले में टीम चयन, बल्लेबाजी और गेंदबाजी क्रम संयोजन, संतुलन और क्षेत्ररक्षण मिलाकर नेतृत्व के हर आयामों में नेतृत्व ने गलती की। इसमें सबसे बड़ी गलती टीम चयन में थी। विराट कोहली के साथ अपने विवादों के कारण अश्विन टीम में नहीं थे, आपको ज्ञात हो कि कोहली के हठधर्मिता और अहंकार के खिलाफ सबसे पहली आवाज अश्विन ने ही उठाई थी। अश्विन ने अपनी सबसे बड़ी योग्यता ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जीत के समय साबित की, जिसमें गाबा में ऐतिहासिक जीत भी शामिल थी। इसके बावजूद कोहली ने उन्हें तवज्जो नहीं दी, जिसका कारण था कि कोहली के हठधर्मिता के आगे अश्विन प्रतिरोध स्वरुप खड़े हो गए।

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जिस तरह कोहली ने रैना, रायडू और चाहर के कैरियर को तबाह किया, उसी तरह वो अश्विन पर भी आमादा थे! अश्विन ने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर, आईपीएल और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन से अपनी जगह तो पक्की कर ली, परंतु विराट कोहली के कारण प्लेइंग इलेवन में अपनी जगह बनाने में नाकाम रहे। पहले मैच में जोरदार पराजय के बाद भुवनेश्वर कुमार के स्थान पर शार्दुल ठाकुर का चयन तो किया गया, लेकिन अश्विन तब भी बेंच पर ही रहे। मैच के दौरान नेतृत्व की गलती की वजह से हमारी बल्लेबाजी क्रम धाराशायी हो गई। ईशान किशन, स्वयं विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे बल्लेबाज अपने क्रम पर नहीं खेल रहे थे और जो खेल रहे थे, वो ऐसे खेल रहे थे कि मानो इस पिच पर खेलने के लिए कुछ बचा ही नहीं हो। ऐसे में अश्विन महत्वपूर्ण साबित हो सकते थे। आइसीसी के इस महत्वपूर्ण टूर्नामेंट में अनुभवी अश्विन की जगह पर वरुण चक्रवर्ती को तवज्जों देना कई तरह के सवाल खड़े करता है।

विराट कोहली की हठधर्मिता!

अगर गेंदबाजी करें, तो हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अश्विन भारत के सबसे बड़े मिस्ट्री बॉलर्स में से हैं। अगर आप एक टी20 मैच में 111 रन का बचाव कर रहे हैं, तो आपको रन रोकने वाला नहीं विकेट निकालने वाला गेंदबाज चाहिए। वरुण चक्रवर्ती ने 4 ओवर में 23 रन देकर एक भी विकेट नहीं लिया। अश्विन ऐसी परिस्थिति में अहम साबित हो सकते थे। वह वरुण से हर मामले में बेहतर हैं, चाहे क्षेत्ररक्षण की बात हो, गेंदबाजी हो या फिर बल्लेबाजी। ऊपर से यह पिच भी अश्विन की गेंदबाजी के माकूल थी।

नेतृत्व द्वारा टीम चयन और गलत क्रम संयोजन भारत की हार के महत्वपूर्ण कारक रहें और शायद इसीलिए भारत की हार पर टिप्पणी करते हुए क्रॉन्पटन ने कहा, यह उनकी समझ से परे है कि आखिर अश्विन को क्यों नहीं खिलाया गया? अगर अश्विन को सिर्फ एक कप्तान के हठधर्मिता की वजह से नहीं खिलाया गया, तो यह सोच का विषय है कि क्या इतनी स्वायत्तता जायज है?

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वहीं, जब रन बोर्ड पर 111 रन हो तो ऐसे में प्रथम ओवर में विकेट निकालना नितांत आवश्यक हो जाता है। विराट कोहली ने पावर प्ले के 4 ओवर स्पीनर से  कराएं, लेकिन हमारे पास कोई भी ऐसा स्पीनर नहीं था, जो विकेट निकाल कर दे सके। हम वरुण चक्रवर्ती जैसे युवा और जडेजा जैसे पार्ट टाइम स्पिनर्स पर निर्भर थे! हमारे पास अश्विन जैसा अनुभव और विविधता से परिपूर्ण खिलाड़ी था। परंतु, हमारे कप्तान की वजह से वह पवेलियन में बैठा था! यह आत्म अवलोकन का समय है, विराट कोहली को Woke  से Work और Footwork  पर ध्यान देना होगा। वरना आगे के मैचों में सम्मान बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।

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