वायनाड का डेटा संकेत देता है कि केरल के शत-प्रतिशत साक्षरता के दावे में कुछ तो गड़बड़ है!

झूठ की बुनियाद पर टिका है वामपंथियों का किला!

केरल शिक्षा

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केरल में आदिवासी बच्चों द्वारा दसवीं के बाद स्कूली शिक्षा छोड़ने का मामला राजनीतिक रूप से तूल पकड़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 8 वर्षों में 4500 आदिवासी बच्चों ने स्कूलों में सीट की कमी के कारण 12वीं कक्षा में प्रवेश नहीं लिया। सरकार का तर्क है कि कोरोना वायरस के प्रभाव ने आदिवासी क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा को प्रभावित किया है। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि आदिवासी बच्चों द्वारा इंटरमीडिएट की कक्षा में प्रवेश न लेने का मामला कोरोना काल के पहले से ही सामने आ रहा है और ऐसे मामले सबसे अधिक राहुल गांधी के लोकसभा क्षेत्र वायनाड में देखने को मिले हैं। ऐसे में राज्य सरकार भले इसे कोरोना का प्रभाव माने, लेकिन यह सीधे तौर पर सरकार की असफलता का परिणाम है! बड़ी बात यह है कि वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने भी इस मामले को सुलझाने के लिए कभी भी ना तो कोई कदम उठाया और ना ही इस मामले पर कोई संज्ञान लिया है।

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केरल में ST वर्ग के लिए इंटरमीडिएट में 8% सीटें आरक्षित हैं। इस हिसाब से ST वर्ग के लिए कुल 2000 सीटें आरक्षित रहती हैं। हालांकि, हर साल 6000 से 7000 आदिवासी बच्चे दसवीं की परीक्षा पास करते हैं और इंटरमीडिएट में हर साल 4 से 5 हजार बच्चों के लिए सीट नहीं होती। ऐसे में सरकार द्वारा 8 साल में 4500 छात्रों का ड्रॉपआउट का आंकड़ा भी कम करके बताया गया है। दसवीं पास करने वालों में एक तिहाई हिस्सा वायनाड के छात्रों का है। वायनाड के विद्यार्थियों के पास उच्च शिक्षा के अवसर नहीं है, इसलिए उन्हें दैनिक मजदूरी के कार्य में लगना पड़ता है। वहीं, मीडिया रिपोर्ट बताती है कि विद्यार्थी लगातार दो-तीन वर्षों तक 11वीं कक्षा में प्रवेश के लिए आवेदन करते रहते हैं, लेकिन प्रवेश नहीं मिलता।

बेरोजगारी और शिक्षा की कमी कर रही प्रभावित

आदिवासी बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पाना पूरी तरह से केरल सरकार की असफलता को दिखाता है। SSRN की एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य में शिक्षित पुरुषों में बेरोजगारी दर ग्रामीण इलाकों में 25% और शहरी इलाकों में 20% है। महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा और अधिक है। इन आकड़ों से पता चलता है कि केरल में शिक्षित व्यक्ति को उसकी शिक्षा का लाभ नहीं मिल रहा है। शोध पत्र के अनुसार, शिक्षित व्यक्तियों में अत्याधिक बेरोजगारी दर ने शिक्षा के क्षेत्र में निवेश के प्रति लोगों के रुझान को कम किया है।

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विद्यार्थियों की कमी से जूझते विद्यालय

जहां उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों को ड्रॉपआउट का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर 2015 में केरल के एजुकेशन डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट में यह बात बताई गई थी कि केरल में 217 ऐसे पूर्णतः सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय है, जहां विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है। कई विद्यालय ऐसे थे जिनमें विद्यार्थियों की संख्या 3-4 तक थी। वहीं, एक विद्यालय ऐसा था जहां एक भी विद्यार्थी नहीं पढ़ रहा था। लोवर प्राइमरी के 121 सरकारी और 84 सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में 10 से भी कम बच्चे पढ़ रहे थे।

2015 में केरल सरकार ने कहा था कि राज्य में चल रहे सरकारी, गैरसरकारी और सहायता प्राप्त, 12,615 स्कूलों में 5,573 ऐसे स्कूल हैं जो आर्थिक रूप से लाभ की स्थिति में नहीं हैं। अर्थात् इन्हें चलाने का खर्च अधिक है, जबकि विद्यार्थियों की संख्या इतनी नहीं कि यह खर्च निकल सके। सरकारी स्कूलों ने इस संदर्भ में राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने का भी प्रयास किया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। इस संदर्भ में एक रिपोर्ट बताती है कि समय पर स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में सुधार ना लागू करने के कारण यह समस्या पैदा हुई है।

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राज्य में कट्टरपंथ के लिए जन्नत का माहौल

वहीं, उच्चतर शिक्षा अर्थात् कॉलेज की शिक्षा की बात करें, तो रिपोर्ट के अनुसार केरल के विद्यार्थी अच्छी शिक्षा की तलाश में अन्य राज्यों में जाने को मजबूर हैं। पिछले महीने स्वयं मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी इस बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त की थी। जुलाई 2021 में द हिंदू अखबार में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि केरल में शोधकार्यों के लिए उचित माहौल उपलब्ध नहीं है। रिसर्च सुपरवाइजर अर्थात् शोध निदेशकों की भारी किल्लत है, जिससे शोध के अवसर सीमित हो चुके हैं और शोधकार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है।

इस प्रकार देखा जाए तो केरल में प्राइमरी स्तर की शिक्षा से लेकर रिसर्च स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था पुरी तरह चरमरा चुकी है। ना तो गुणवत्तायुक्त शिक्षा उपलब्ध है और ना ही शिक्षित लोगों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। राज्य में क्राइम रेट चरम पर है, बेरोजगारी दर 40.5% के पार है, इस्लामिक कट्टरपंथ के लिए जन्नत का माहौल है, दहेज जैसी कुप्रथाओं का आज भी बोलबाला है! ऑनर किलिंग के मामले बताते हैं कि प्रदेश में सामाजिक भेदभाव बहुत अधिक है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि वामपंथियों ने केरल के पास ऐसा क्या शेष छोड़ा है, जिसपर राज्य गर्व कर सके!

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