तृणमूल कांग्रेस को चार सीट ‘दान करने’ पर तथागत रॉय ने लगाई बंगाल बीजेपी की क्लास!

बंगाल में भाजपा बनाम भाजपा!

पश्चिम बंगाल बीजेपी

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लगभग चार सप्ताह पहले संपन्न हुए विधानसभा उपचुनावों के नतीजों की घोषणा बीते दिन मंगलवार को हुई। बीजेपी को कुछ राज्यों में बेहतरीन जीत मिली है तो वहीं, कुछ राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन चिंताजनक रहा है। पश्चिम बंगाल में जीत हासिल करने में विफल रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने राजनीतिक लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। पश्चिम बंगाल बीजेपी, प्रदेश के उपचुनाव में हुए इस लचर प्रदर्शन को लेकर आत्ममंथन करने में लगी हुई है। तो वहीं, पार्टी के दिग्गज नेता अपनी ही पार्टी की खिंचाई करने में लगे हुए हैं। इससे बंगाल में बीजेपी बनाम बीजेपी की स्थिति बन चुकी है। इस मामले में मेघालय के पूर्व राज्यपाल और बीजेपी बंगाल के प्रदेशाध्यक्ष के बीच खींचतान शुरु हो गई है।

तथागत रॉय ने ट्वीट कर बोला हमला

मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय अक्सर अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए चर्चा में रहते हैं। उन्होंने एक बार फिर ऐसा किया है। पश्चिम बंगाल में मंगलवार को चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मिली शानदार जीत के बाद रॉय ने ट्विटर पर भारतीय जनता पार्टी की खिंचाई की।

उन्होंने बंगाली में ट्वीट किया करते हुए कहा कि, “उन्होंने (आलाकमान के लिए) खुले हाथों और विनम्रता के साथ दलालों का स्वागत किया था। भाजपा की विचारधारा के लिए काम करने वालों से पूछा गया था कि आपने इतने सालों तक क्या किया? हमारी जोड़ी 18 सीटें लाई। जूलियस सीज़र की तरह वेनी, विडी, विकी। अब मूर्खों की तरह व्यवहार करने का कोई मतलब नहीं है। ऐसी हरकतों के कारण ही भाजपा इतनी दुर्दशा में है।”

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निशाने पर दिलीप घोष

दुर्भाग्यपूर्ण चुनाव परिणामों के संदर्भ में रॉय ने यह टिप्पणी की थी। रॉय की टिप्पणी को विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के खिलाफ भी लक्षित किया गया था। दरअसल, घोष के ट्विटर हैंडल पर एक रचनात्मक पोस्ट के माध्यम से बाहरी और दलबदलु नेताओं पर हमला किया गया था। इस पोस्ट के माध्यम से  यह दर्शाया गया था कि विधानसभा के दौरान कई “दलाल” पार्टी में शामिल हुए थे। उनमें से कई राज्य में चुनाव और परिणाम घोषित होने के बाद चले गए, लेकिन शेष अभी भी परेशानी पैदा कर रहे हैं।

घोष के पोस्टर को बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की ओर निर्देशित किया गया था, जो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे और परिणाम पश्चात वापिस लौट गए। बीजेपी में शामिल हुए मुकुल रॉय और राजीव बनर्जी ने हाल ही में टीएमसी में प्रवेश ले लिया।

कार्यकर्ताओं के समर्पण की अनदेखी

रॉय ने मंगलवार को इसी पोस्टर का इस्तेमाल भाजपा की आलोचना करने के लिए किया और राज्य में पार्टी की दुर्दशा के लिए घोष पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि घोष जिन लोगों को दलाल कह रहे हैं, उनका पार्टी में स्वागत किया गया जबकि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के समर्पण और कड़ी मेहनत की अनदेखी की गई। रॉय ने संकेत दिया कि 2019 में पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें जीतने के आधार पर बीजेपी ने अपने कार्यों को सही ठहराया।

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भाजपा की हार

आपको बता दे की हालिया बंगाल उपचुनाव में टीएमसी के सोवनदेब चट्टोपाध्याय ने खरदाहा विधानसभा सीट पर 93,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की है, जबकि दिनहाटा निर्वाचन क्षेत्र में टीएमसी के उदयन गुहा ने 1.6 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की। दिनहाटा में बीजेपी के अशोक मंडल को 25,387 वोट मिले, जबकि टीएमसी के उदयन गुहा को 1,89,153 वोट मिले। खरदाहा में टीएमसी को 1,13,647 वोट मिले, जबकि बीजेपी को सिर्फ 20,198 वोट मिले।

तथागत रॉय ने इससे पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में मिली हार के बाद भी अपनी ही पार्टी के नेताओं को निशाने पर लिया था। उन्होंने ट्वीट्स की एक श्रृंखला में ‘केडीएसए’ (KDSA) अर्थात बंगाल के भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के समूह को दोष दिया था। KDSA से उनका मतलब भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, राज्य पार्टी प्रमुख दिलीप घोष, राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव (संगठन) शिव प्रकाश और राष्ट्रीय सचिव अरविंद मेनन थे।

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आम कार्यकर्ताओं की उपेक्षा

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के तुरंत बाद रॉय ने कहा था कि वह पार्टी की हार पर एक रिपोर्ट पेश करना चाहते हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि टिकट “हेस्टिंग्स और 7 सितारा होटलों में बैठकर टीएमसी से आने वाले कचरे उम्मीदवारों को” दिए गए थे। उन्होंने1980 के दशक से पार्टी के लिए काम करने वाले वैचारिक रूप से संचालित कार्यकर्ताओं, धर्मनिष्ठ स्वयंसेवकों और तृणमूल के हाथों उत्पीड़न का सामना करने वाले कार्यकर्ताओं की सहायता के लिए नहीं आने के लिए नेताओं के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की थी।

ऐसे में यह बात निकलकर सामने आती है कि यदि राजनीतिक पार्टियां जमीन से जुड़े नेताओं को तरजीह नहीं देगी तो उनका यही हश्र होगा। कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ होते है और नेता चुनने का अधिकार इन्हीं को है। रणनीति के हिसाब से चुनाव जीतने के लिए फिल्मी हस्तियों को खड़ा किया जा सकता है, लेकिन इसे पार्टी  की परंपरा बना देना कतई उचित नहीं है। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है। पार्टी सिद्धांतविहीन और रीढ़वीहिन  हो जाती है।

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