आखिर क्यों काशी विश्वनाथ का वित्तीय प्रबंधन अंग्रेज़ों के हाथों में दिया जा रहा है?

अगर इस तरह के प्रोजेक्ट विदेशी कंपनियों को जाते हैं, तो इससे देश को ही नुकसान होगा!

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

Source- Google

काशी विश्वनाथ ट्रस्ट संचालन- लगभग डेढ़ साल पहले, प्रधानमंत्री ने अपने आत्मनिर्भर भारत भाषण में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया था। हालांकि, नौकरशाह तथा सरकारी कर्मचारी प्रधानमंत्री मोदी के इस दृष्टिकोण को अपनाने और एक आत्मनिर्भर भारत की दिशा में काम करने में बहुत रोड़ा बन रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO)  की ओर से बार-बार मिलने वाली चेतावनियों और निर्देशों के बावजूद, ऐसा प्रतीत होता है कि देश का स्थायी प्रतिष्ठान (नौकरशाही) देश नहीं, बल्कि स्वयं के लक्ष्यों की उन्नति की दिशा में काम कर रहा है!

इसी तरह का आदर्श उदाहरण काशी विश्वनाथ धाम (कॉरिडोर) परियोजना को लेकर भी है। इसके आईटी समाधान और राजस्व मॉडल को डिजाइन करने का अनुबंध किसी भारतीय कंपनी के बजाए एक ब्रिटिश कंपनी Ernst & Young को दिया गया है। काशी विश्वनाथ धाम (कॉरिडोर) का प्रबंधन काशी विश्वनाथ ट्रस्ट (केवीटी) बोर्ड द्वारा किया जाएगा, जिसने ब्रिटिश कंपनी को परियोजना देने का फैसला किया है।

और पढ़े: भारतीय कंपनियां तेजी से वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण कर रही हैं

इस विदेशी कंपनी को हर साल दिए जाएंगे 27 करोड़

बीते रविवार को TOI से बात करते हुए, बोर्ड के अध्यक्ष और संभागीय आयुक्त दीपक अग्रवाल ने कहा कि “ई एंड वाई को अक्टूबर के मध्य में केवी धाम के संचालन और रख रखाव के लिए एक मॉडल तैयार करने के लिए निविदा प्रक्रिया के माध्यम से सलाहकार नियुक्त किया गया था।” उन्होंने आगे कहा, “कंपनी ने आज हमारे सामने अपना पहला प्रेजेंटेशन दिया। हमने प्रस्तावित मॉडल में कुछ सुझाव दिए हैं, जिन्हें 10 नवंबर को अगली प्रस्तुति में शामिल किया जाएगा। तब तक Request for proposal (RFP) and Expression of interest (EOI)  की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।”

सरकार ने केवी मंदिर परिसर के आधुनिकीकरण में 700 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और आधुनिकीकरण के बाद, यह भारत के सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना जायेगा। टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस जैसे भारतीय आईटी कंसलटेंसी दुनिया भर में जाने जाते हैं, लेकिन काशी विश्वनाथ ट्रस्ट ने इस परियोजना को एक विदेशी कंपनी को देने का फैसला किया।

और पढ़े: विंडलास स्टील: Batman Begins और POTC जैसी फिल्मों के लिए परिधान की आपूर्ति करती है देहरादून की फर्म

किसी विदेशी कंपनी को प्रोजेक्ट देना तो भूल ही जाइए, काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को गैर-भारतीय कंपनियों को इसके लिए बोली लगाने की अनुमति भी नहीं देनी चाहिए थी। आने वाले वर्षों में ट्रस्टों को हजारों करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है और इस धन का उपयोग वाराणसी और देश भर के अन्य शहरों में धार्मिक कार्यों के लिए किया जा सकता है।

दीपक अग्रवाल ने आगे कहा, “ट्रस्ट केवी मंदिर के मामलों को दान के माध्यम से देखता है, जिसका उपयोग केवल मंदिर के लिए किया जा सकता है। परिसर का क्षेत्रफल अब 5 लाख वर्ग फुट तक हो गया है, जिसमें मंदिर चौक, गेस्ट हाउस, बहुउद्देशीय हॉल, क्लिनिक और धर्मशाला, तीर्थ सुविधा केंद्र, 70 दुकानें, वाराणसी गैलरी और संग्रहालय, कैफेटेरिया और शौचालय सहित 23 प्रमुख भवनों का निर्माण किया जा रहा है।” Ernst & Young को परिसर के लिए राजस्व मॉडल और आईटी समाधान डिजाइन करने के लिए प्रति वर्ष 27 करोड़ रुपये मिलेंगे।

जानबूझकर विदेशी कंपनियों को बड़े अनुबंध देते हैं नौकरशाह!

गौरतलब है कि यह ब्रिटिश कंपनी, जो चार बड़ी अकाउंट कंपनियों में से एक है, इसका वार्षिक राजस्व 40 बिलियन डॉलर से अधिक है और यूनाइटेड किंगडम की सरकार के लिए सबसे बड़े करदाताओं में से एक है। भारतीय नौकरशाह भारत से गरीबी उन्मूलन के लिए अपना जीवन समर्पित करने के बजाय ब्रिटेन को समृद्ध बनाने के लिए काम कर रहे हैं। वरिष्ठ नौकरशाह चाहते हैं कि उनके बच्चे और पोते-पोतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियां (एमएनसी) में नौकरी करें और इसके लिए वे देश हित को दांव लगाने से भी पीछे नहीं हटते। इसके लिए वे घरेलू कंपनियों कॉन्ट्रैक्ट देने के बजाय जानबूझकर विदेशी कंपनियों को बड़े अनुबंध देते हैं।

काशी विश्वनाथ ट्रस्ट का प्रबंधन इसके लिए अधिक पैसा खर्च कर सकता था और हिंदुओं की उदारता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि राजस्व की कोई कमी नहीं होगी, लेकिन बावजूद इसके एक ब्रिटिश कंपनी को ठेका देने का फैसला किया गया। यदि ऐसी प्रमुख परियोजनाएं, जिनका राजस्व कम है, लेकिन उनका संस्कृति महत्व अधिक है, इनका कॉन्ट्रैक्ट विदेशी कंपनियों को दी जाएगी, तो आत्मनिर्भर भारत का सपना शायद ही हासिल हो पाएगा।

और पढ़े: राम मंदिर का बहीखाता अब दिग्गज भारतीय कंपनी TCS के पास होगा

नौकरशाहों पर एक्शन लेना जरुरी!

बता दें कि राम मंदिर ट्रस्ट फंड का प्रबंधन कॉरपोरेट दिग्गज, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) को सौंपा गया है, जो एक डिजिटल अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ-साथ देश भर के मुख्यमंत्री कार्यालयों (सीएमओ) को सख्त एडवाइजरी जारी करनी चाहिए कि अगर इस तरह के प्रोजेक्ट विदेशी कंपनियों को जाते हैं तो नौकरशाहों पर एक्शन लिया जाएगा। जब तक इन नौकरशाहों को नौकरी खोने का डर नहीं होगा, वे आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम नहीं करेंगे!

Exit mobile version