आखिर क्यों रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सऊदी के Aramco के साथ अपना $15 बिलियन का बड़ा सौदा रद्द किया

ग्रीन इनर्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा भारत

RIL रिलायंस अरामको

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रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सऊदी अरब की राष्ट्रीय तेल कंपनी, सऊदी अरामको द्वारा अपने ओ2सी (तेल से लेकर रसायन तक) व्यवसाय में प्रस्तावित हिस्सेदारी का अधिग्रहण अब रद्द कर दिया है। साथ ही कंपनी ने अपनी तेल रिफाइनरी और पेट्रो रसायन कारोबार में 20 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के प्रस्तावित 15 अरब डॉलर के सौदे के पुनर्मूल्यांकन की घोषणा की है। इससे पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज इस सौदे को लेकर दो बार स्व-निर्धारित समयसीमा से चूकी है। RIL ने एक बयान में कहा, “RIL और अरामको ने पारस्परिक रूप से निर्धारित किया है कि दोनों पक्षों के लिए बदले हुए संदर्भ के आलोक में O2C कारोबार में प्रस्तावित निवेश का पुनर्मूल्यांकन करना फायदेमंद होगा।”

हालांकि, दूर से देखने पर इस सौदे को रद्द करने के पीछे प्राथमिक कारण कुछ और प्रतीत होता है। सौदे के पुनर्मूल्यांकन के पीछे प्राथमिक कारण शायद रिलायंस का कम चुका कर्ज है। अगस्त 2019 में, जब सौदे की घोषणा की गई थी, तब रिलायंस के O2C व्यवसाय पर 20 बिलियन डॉलर से अधिक का कर्ज था और दूरसंचार व्यवसाय पर भी 20 बिलियन डॉलर से अधिक का कर्ज था। कंपनी का कुल कर्ज 40 अरब डॉलर से अधिक था और वो सऊदी अरामको से पैसे के साथ कम से कम 20 अरब डॉलर का भुगतान करना चाहती थी।

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क्यों रद्द हुआ डील?

कंपनी में हिस्सेदारी की बिक्री के लिए बातचीत की खबर पहली बार अगस्त, 2019 में आधिकारिक तौर पर सामने आई थी। इस बीच, तीन वर्षों में रिलायंस ने वैकल्पिक ऊर्जा में 10 अरब डॉलर का निवेश करके नए ऊर्जा कारोबार में प्रवेश किया। इसके मद्देनजर इस सौदे का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। भारतीय कंपनी ने कहा कि अरामको का प्रस्तावित निवेश सिर्फ तेल रिफाइनिंग और पेट्रोरसायन कारोबार के लिए था, लेकिन अब रिलायंस हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भी है, जिसकी वजह से इस सौदे पर नए सिरे से काम करने की जरूरत है। हालांकि, कंपनी ने इस सौदे के लिए कोई संभावित समयसीमा नहीं बताई है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के बाद स्थिति में काफी बदलाव देखने को मिला, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 22 बिलियन डॉलर में Jio में 33 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी और सभी दूरसंचार इकाई ऋणों का भुगतान कर दिया है। अब O2C इकाई के पास मूल रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) से 25 बिलियन डॉलर खाते में है, जो बैलेंस शीट पर खराब नहीं दिखता है।

हरित ऊर्जा व्यवसाय में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करने की रिलायंस की प्रतिबद्धता और जामनगर (O2C व्यवसाय का स्थान) में गीगा फैक्ट्रीज़ को देखते हुए, अब दोनों कंपनियों ने भारतीय फर्म के नए ऊर्जा कारोबार में प्रवेश के मद्देनजर प्रस्तावित निवेश का पुनर्मूल्यांकन करने पर सहमति जताई है। एक इक्विटी विश्लेषक ने कहा, “ये योजनाएं अरामको के हित और विश्वदृष्टि के विपरीत हैं। तेल उत्पादन करने वाले देश यह तर्क देते रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन परिसंपत्तियों को अधिक समय और निवेश दिए जाने की आवश्यकता है ताकि हरित ऊर्जा संक्रमण धीरे-धीरे हो सके।”

हरित ऊर्जा व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं अंबानी

पिछले कुछ महीनों में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कई कंपनियों का अधिग्रहण किया और कई नई ऊर्जा स्टार्टअप्स में निवेश किया है। हरित ऊर्जा बाजार में एक धमाकेदार प्रवेश करने के लिए कई फर्मों के साथ भी रिलायंस इंडस्ट्रीज की साझेदारी है। ऐसे में अब रिलायंस ने अरामको को आराम से कह दिया है कि आपकी कोई जरुरत नहीं है, हम खुद से हरित ऊर्जा वाला बिजनेस देख लेंगे!

रिलायंस द्वारा तमाम सम्पतियों के अधिग्रहण में सबसे बड़ा अधिग्रहण Chemchina से आरईसी सोलर का 771 मिलियन डॉलर में है। रिलायंस न्यू इनर्जी सोलर लिमिटेड ने भी शापूरजी पलोनजी एंड कंपनी प्राइवेट से स्टर्लिंग एंड विल्सन सोलर के 40 प्रतिशत शेयर खरीदे है। रिलायंस सोलर जर्मन सोलर वेफर निर्माता NexWafe GmbH (NexWafe) की सीरीज सी फंडिंग में 45 मिलियन डॉलर के निवेश के साथ प्रमुख निवेशक बन गया है।

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सौर ऊर्जा के अलावा मुकेश अंबानी जिस अन्य बड़े हरित ऊर्जा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वह हाइड्रोजन ऊर्जा है। RIL ने अपने ‘1-1-1’ ग्रीन-हाइड्रोजन लक्ष्य की दिशा में डेनमार्क की स्टिस्डल के साथ भागीदारी की। Stiesdal ने एक इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक विकसित की है, जो दूसरों की तुलना में काफी सस्ती है और यह कंपनी RIL को उसकी हाइड्रोजन-चालित वाहनों की महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने में मदद करेगी।

ग्रीन इनर्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर

पिछली वार्षिक आम बैठक के दौरान, मुकेश अंबानी ने घोषणा करते हुए कहा था कि उनकी कंपनी देश में सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक बनने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए हरित ऊर्जा और उसमें भी विशेष रूप से सौर और हाइड्रोजन में 75,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।

हरित ऊर्जा में अपने भारी निवेश की बदौलत रिलायंस ने 2030 तक शुद्ध-शून्य (शून्य कार्बन उत्सर्जन) कंपनी बनने की प्रतिबद्धता भी जताई है। रिलायंस का वर्तमान विश्व दृष्टि सऊदी अरामको से मेल नहीं खाता है, जो हरित ऊर्जा की ओर धीरे-धीरे बदलाव चाहता है ताकि जीवाश्म ईंधन पर निर्भर राष्ट्र, सऊदी के अर्थव्यवस्था में संक्रमण का प्रबंधन कर सकें।

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सऊदी अरामको को संदेह था कि 15 अरब डॉलर के निवेश का इस्तेमाल RIL द्वारा O2C कारोबार के कर्ज को चुकाने के लिए किया जाएगा, ताकि कंपनी हरित ऊर्जा इकाई के लिए स्वतंत्र रूप से धन जुटा सके। हरित ऊर्जा व्यवसाय भविष्य का व्यवसाय है और जीवाश्म ईंधन से हरित ऊर्जा में परिवर्तन के माध्यम से आत्मानिर्भर भारत के आह्वान को देखते हुए, रिलायंस का अब व्यवसाय के लिए सऊदी अरामको के निवेश को लेने का कोई इरादा नहीं है।

चीन पर भारत की निर्भरता को समाप्त करने में जुटी RIL

रिलायंस इंडस्ट्रीज खुद को बहुत ही रणनीतिक रूप से आगे रख रही है, क्योंकि अब यह चीनी फर्मों के प्रभुत्व वाले बाजार पर कब्जा करने की योजना बना रही है। RIL, उपकरण और प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति में सक्रिय हो रही है। एक तरफ अदानी समूह और ऊर्जा व्यवसाय में कई अन्य कंपनियां रिन्यू पावर, उत्पादन भाग पर ध्यान केंद्रित करेंगी, वहीं आरआईएल उत्पादन उपकरण और प्रौद्योगिकियों के लिए चीन पर भारत की निर्भरता को समाप्त करने की योजना बना रही है।

TFI ने पहले ही बताया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के विभिन्न लाभों को देखते हुए, हाइड्रोजन ईंधन वाली गाड़िया गतिशीलता का भविष्य हैं। भविष्य में एक तरफ बिजली उत्पादन सौर में स्थानांतरित हो जाएगा और दूसरी ओर गतिशीलता हाइड्रोजन में चली जाएगी और मुकेश अंबानी को दोनों से बहुत अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए तैयार है। साथ ही हरित ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश के साथ, उनकी कंपनी प्रधानमंत्री मोदी के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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