बीस साल पहले आज ही के दिन 13 दिसंबर 2001 को पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी समूहों के आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया था। घुसपैठ के समय, लोकसभा का सत्र चल रहा था लेकिन सदनों को स्थगित कर दिया गया था। हालांकि, उस समय के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा राज्य मंत्री हरिन पाठक सहित कई सांसद और सरकारी अधिकारी इमारत के अंदर ही मौजूद थे। इस आतंकी हमले ने भारतवर्ष को सदा सदा के लिए बदल दिया।
आतंकी कैसे हुए दाखिल?
गृह मंत्रालय और सांसद के नकली स्टिकर वाले सफेद राजदूत (Ambassador) के साथ हमलावर संसद परिसर में दाखिल हुए। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय संसद में सुरक्षा व्यवस्था उतनी कड़ी नहीं थी जितनी की आज है। ये उस दौर की बात है जब लोकतंत्र के मंदिर यानी देश की संसद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों के तैनात होने का चलन नहीं था। संसद की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों को पार्लियामेंट हाउस वॉच और वॉच स्टाफ़ कहा जाता था।
AK47 राइफल, ग्रेनेड लांचर, पिस्टल और हथगोले लेकर, आतंकवादियों ने संसद परिसर के चारों ओर तैनात सुरक्षा घेरा को तोड़ दिया। जैसे ही वे कार को अंदर ले गए स्टाफ सदस्यों में से एक, कांस्टेबल कमलेश कुमारी यादव को उनकी हरकत पर शक हुआ।
जब कार को वापस मुड़ने के लिए कहा गया, तो यह तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के वाहन से टकरा गई। यादव पहली सुरक्षा अधिकारी थीं जो आतंकवादियों की कार के पास पहुंचीं और कुछ संदिग्ध महसूस करते हुए गेट नंबर 1 को सील करने के लिए अपनी पोस्ट पर वापस भाग गयीं, जहां वह तैनात थीं। अपने कवर को हटाते हुए, आतंकवादियों ने यादव पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। आतंकियों द्वारा उन पर 11 गोलियां चलाईं गईं थी।
अपनी योजना को अंजाम देने के लिए आतंकवादियों के बीच एक आत्मघाती हमलावर भी था। आतंकियों के ग्यारह गोली लगने से यादव की मौके पर ही मौत हो गई पर मरने से पहले उन्होंने आत्मघाती हमलावर को ढेर कर दिया। यादव को मारने के बाद आतंकी अंधाधुंध फायरिंग करते हुए आगे बढ़ गए। इस समय तक, एक अलार्म बज उठा और इमारत के सभी गेट बंद कर दिए गए। इसके बाद 30 मिनट से अधिक समय तक चली गोलीबारी में आठ सुरक्षाकर्मियों और एक माली के साथ सभी पांच आतंकवादी मारे गए। कम से कम 15 लोग घायल हो गए। उस समय संसद में 100 या इतने ही मंत्री और सांसद मौजूद थे।
संसद के गुनहगार
दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने कहा कि बंदूकधारियों ने पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) एजेंसी के मार्गदर्शन में ऑपरेशन को अंजाम दिया। इस हमले से भारत और पाकिस्तान के बीच उच्च तनाव पैदा हो गया और उसके बाद संसद की सुरक्षा बढ़ा दी गई।
साजिश में शामिल 12 लोगों को नामजद किया गया है। जैश के गाजी बाबा, जैश का मौलाना मसूद अजहर, “पाकिस्तानी” तारिक अहमद, पांच मृत “पाकिस्तानी आतंकवादी” और तीन कश्मीरी पुरुष, एस.ए.आर. गिलानी, शौकत हुसैन गुरु, मोहम्मद अफजल तथा शौकत की पत्नी अफसान गुरु को नामजद किया गया। परन्तु, गिरफ्तार किए जाने वाले केवल चार लोग थे। घटना के कुछ समय बाद इन चार लोगों – मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन, अफसान गुरु और एसएआर गिलानी – को मास्टरमाइंड के रूप में गिरफ्तार किया गया था। गिलानी और अफसान को बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था। हुसैन ने जेल की सजा काट ली और अफजल को 2013 में फांसी दे दी गई।
और पढ़ें:-पाक अब आतंकवाद का केंद्र बन चुका है, दुनिया में कहीं भी हमला हो तार पाकिस्तान से ही मिलता है
हमले पर प्रतिक्रिया
भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद पर हमले के तुरंत बाद राष्ट्र को संबोधित किया था। उन्होंने उग्रवादियों की निंदा करते हुए कहा,“यह सिर्फ इमारत पर हमला नहीं था, यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी थी। पिछले दो दशकों से हम आतंकवाद से लड़ रहे हैं, अब लड़ाई अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। लड़ाई अब निर्णायक चरण में पहुंच गई है।”
बीजेपी के श्रीचंद कृपलानी ने रॉयटर्स न्यूज एजेंसी को अपना रिएक्शन देते हुए कहा था- “सरकार को वही करना चाहिए जो अमेरिका ने अफगानिस्तान में किया है और जो इजरायल फिलिस्तीन में कर रहा है। अगर संलिप्तता साबित हो जाती है, तो सरकार को पाकिस्तान पर हमला करने से नहीं शर्माना चाहिए।”
यह लोकतंत्र के मंदिर (संसद) पर सबसे बड़ा हमला था। पूरी दुनिया इससे स्तब्ध हो गई थी और इसके साथ साथ पाकिस्तान का नकाब भी उतर गया। समस्त वैश्विक समुदाय ने पाकिस्तान की कायराना हरकत देखी। हालांकि, इसके सभी गुनहगार अभी तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंचे पर इसकी स्मृति हमें अपने शहीदों और उनके खून का बदला लेने के लिए उद्वेलित करती रहेंगी।