‘Abrahamism’ नामक एक नया धर्म आ रहा है, और इसमें इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म तीनों सम्मिलित होंगे

ये तो अजब ही मिश्रण है!

अब्राहमिया

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जब 1453 में ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान मोहम्मद-2 ने Constantinople पर चढ़ाई की, तब वह ईसाई पंथ द्वारा आरंभ किए गए Crusades के इतिहास एक अहम दिन था। यह चढ़ाई उस दौरान घटते बीजान्टिन साम्राज्य के अंत का आरंभ था। आखिरकार ऑटोमन्स ने शहर को 55 दिनों तक घेरने के बाद कॉन्स्टेंटिनोपल की प्राचीन दीवार को तोड़ दिया। शहर के पतन और मुस्लिम आक्रमण के साथ ही ईसाई यूरोप का इस्लामीकरण आरंभ हो गया। इस्लाम और ईसाई के बीच का यह वर्चस्व युद्ध सिर्फ कुछ सदियों पुराना नहीं है, बल्कि उससे भी अधिक प्राचीन है। जितनी हत्याएं इन दोनों पंथों के बीच वर्चस्व युद्ध के दौरान हुई, उतनी तो दोनों विश्व युद्ध मिला कर भी नहीं हुई है। सहस्त्रों वर्ष के युद्ध के बाद अब ऐसी खबरें सामने आ रहीं हैं कि ये दोनों मिलकर अब एक नया पंथ अपना सकते हैं।

बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार जल्द ही एक नया पंथ पेश किया जाएगा, जिसमें तीनों प्रमुख अब्राहमिक पंथ के होंगे। इसके तहत इस्लाम, ईसाई और यहूदी- इन तीनों धर्म में शामिल एक समान बातों को लेकर पैगंबर अब्राहम के नाम से धर्म बनाने की कोशिशें शुरू हुई हैं। इस नए पंथ को अब्राहमिया कहा जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी शुरुआत खाड़ी देशों से हो सकती है। बता दें कि अब्राहमिक पंथ में सबसे प्रमुख रूप से यहूदी, ईसाई और इस्लाम आते हैं, जो अपनी उत्पत्ति इज़राइली पैगंबर अब्राहम से बताते हैं।

हालांकि, रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह एक नई घटना नहीं, बल्कि एक परियोजना है। बीबीसी के अनुसार इसे इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, सूडान और बहरीन के बीच संबंधों को सामान्य करने के लिए हुए अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद उठाया गया और इसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

अब्राहमिया क्या है?

रिपोर्ट्स के अनुसार तीन पंथ यानी ईसाई धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म के मूल सिद्धांतों को एक साथ मिला कर अब्राहमिया बनाया जाएगा। कथित पंथ का नाम Prophet Ibrahim के नाम से लिया गया है, जिनसे ही अन्य सभी अब्राहमिक पंथ उत्पन्न हुए हैं। Prophet Ibrahim का व्यापक रूप से बाइबिल, कुरान और किताब-ए-अकदास जैसे कई प्रमुख अब्राहमिक ग्रंथों में उल्लेख किया गया है।

अरब देशों में अब्राहमिया की चर्चा पिछले एक साल से चल रही है और नए धर्म ने कई विवादों को जन्म भी दिया है। इस पंथ के माध्यम से एक ऐसे cult का निर्माण करने का विचार है, जिसका न कोई शास्त्र हो, न कोई अनुयायी हो और न ही कोई अस्तित्व हो। जो लोग इस नए धर्म के विचार के खिलाफ हैं, उनका मानना है कि यह धोखे और शोषण की आड़ में एक राजनीतिक आह्वान है।

“अब्राहमिया” शब्द का उपयोग सितंबर 2020 में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इज़राइल के साथ एक सामान्यीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ शुरू हुआ था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके सलाहकार जेरेड कुशनर द्वारा प्रायोजित समझौते को “अब्राहमिक एकोर्डभी कहा जाता है।

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पंथ आरंभ होने से पहले ही शुरु हो गया अंतर्कलह

सोशल मीडिया पर भी नए पंथ की निंदा हो रही है। आरटी अरबी के साथ एक साक्षात्कार में मिस्र के जनरल खैरत शुकरी ने चेतावनी दी है कि अब्राहम कथित रूप से मध्य पूर्व में सभी धर्मों को एकजुट करेगा और यह अमेरिका और इज़राइल द्वारा बनाई गई बुरी योजना है। उन्होंने आरटी अरबी को आगे बताया कि अब्राहमिया एक नया स्कीम है, जो हेनरी कैंपबेल के 1907 के दस्तावेज़ की तुलना में ‘कम खतरनाक नहीं’ है, जिसके परिणामस्वरूप ज़ायोनी देश का गठन हुआ।

वहीं, मिस्र में धार्मिक एकता के लिए शुरू हुई इस मुहिम पर अल अज़हर के शीर्षस्थ इमाम अहमद अल तैय्यब ने अब्राहमी धर्म की खूब आलोचना की है। BBC की रिपोर्ट के अनुसार अल-तैय्यब ने नए अब्राहमी धर्म के निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा कि इसके ज़रिए जिस नए धर्म के निर्माण की बात हो रही है, उसका ना तो कोई रंग है और ना ही उसमें कोई स्वाद या गंध होगा।

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कई विवादों को बढ़ाएगा यह नया पंथ

सोशल मीडिया पर कई धार्मिक हस्तियों ने भी अपनी चिंता व्यक्त की है और लोगों से अपने विश्वास पर कायम रहने और इस तरह के ‘फर्जी’ प्रचार में न फंसने का आह्वान किया है। इसके अलावा, कई लोगों ने एक नए विश्व धार्मिक आदेश की स्थापना जैसे षड्यंत्र के सिद्धांतों के कोण की ओर इशारा किया है- जिसके तहत दुनिया भर में केवल एक प्रमुख धर्म होगा, जिसका प्रमुख हिस्सा यहूदी धर्म से लिया गया है।

जिस तरह से इस पंथ के आरंभ होने से पहले ही मतभेद शुरु हो चुका है, उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि यह नया पंथ कई विवादों को बढ़ाएगा और इन तीनों ही अब्राहमिक धर्मों के वर्चस्ववादी स्वभाव को और बढ़ाने का काम करेगा। अगर ये तीनों एक हो भी जाते हैं, तो उनका सबसे पहला उद्देश्य अन्य धर्म के लोगों को इस नए पंथ में शामिल करना होगा, चाहे उसके लिए हिंसा ही क्यों न अपनाना पड़े! ऐसे में सबसे पहले हिन्दू धर्म ही निशाने पर होगा। अब भारत के लोगों को यह सोचना चाहिए कि भविष्य कैसा होने जा रहा है?

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