कैप्टन अमरिंदर के बाद हरीश रावत हो सकते हैं कांग्रेस से अलग और शुरू कर सकते हैं अपनी पार्टी

कांग्रेस अपने विनाश की कथा स्वयं लिख रही है!

हरीश रावत कांग्रेस

वर्ष 2022 में देश के पांच राज्यों में चुनाव होने को है। इस बीच कांग्रेस पार्टी में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर थम नहीं रहा है। दरअसल, इन पांच राज्यों में उत्तराखंड राज्य का विधानसभा चुनाव भी शामिल हैं किन्तु इस राज्य में कांग्रेस की परेशनीय कम होती नहीं दिख रहीं है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रचार समिति के प्रमुख हरीश रावत ने बीते बुधवार को अपनी ही पार्टी पर ‘आंतरिक कलह’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस पार्टी को उत्तराखंड में आंतरिक फूट और अविश्वास से उपजे बड़े झटके का सामना करना पड़ रहा है।”

ट्वीट कर हरीश रावत ने बयां किया अपना दर्द

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने तीन-खंड वाले अपने ट्वीट के माध्यम से अपना दर्द बयां करते हुए कहा “क्या यह अजीब नहीं है? हमें चुनाव के इस महाभंवर को पार करना है, लेकिन संगठन ने मेरा समर्थन करने के बजाय या तो मुझ से मुंह मोड़ लिया है या फिर नकारात्मक भूमिका निभा रहा है।“ दूसरे खंड के माध्यम से उन्होंने आगे कहा कि आलाकमान ने इस चुनावी-भंवर में कई मगरमच्छों (शिकारियों) को छोड़ दिया है, जिन्हें हमें neutralize करना है। पर, जिनके आदेशों का मुझे अनुसरण करना है, उनके लोगों ने मेरे हाथ-पैर बांध दिए हैं। अतः मैं सोच रहा था कि यह अंतर्कलह मेरे हाथ से बाहर निकल गया है। मैंने काफी कुछ किया है और अब यह मेरे आराम करने का समय है।”

उन्होंने ट्वीट के तीसरे और अंतिम खंड के माध्यम से स्पष्ट किया कि वह नए साल में अपने भविष्य के बारे में फैसला करेंगे। उन्होंने लिखा “फिर मस्तिष्क में एक आवाज आती है, जो चुपचाप कहती है कि मैं न तो कमजोर हूं और न ही चुनौतियों से भागूंगा। मैं उथल-पुथल में हूं। आशा है कि नया साल मुझे रास्ता दिखाएगा। मुझे विश्वास है कि भगवान केदारनाथ (शिव) मुझे रास्ता दिखाएंगे।“

और पढ़ें: उत्तराखंड में पहले ही कांग्रेस की हार सुनिश्चित कर चुके हैं हरीश रावत

उत्तराखंड में दो खेमों में बंट गई कांग्रेस पार्टी

आपको बता दें कि अभी कुछ महीने पहले हरीश रावत पंजाब में कांग्रेस राज्य इकाई के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू और तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच सुलह कराने वाली कड़ी बने थे। वो राज्य में आलाकमान और पार्टी नेताओं के बीच समन्वय कर रहे थे। उन्हें आलाकमान के करीबी के रूप में देखा गया क्योंकि आलाकमान के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ लड़े थे। हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा उनके खिलाफ तीखा हमला करने के साथ स्थिति पूरी तरह से हाथ से निकल गई। पंजाब में सिद्धू को लाने और कैप्टन को हटाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरीश रावत पर कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया, जिसमें लिखा था कि “जो बोओगे वही काटोगे। आपके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएँ, यदि कोई हैं।”

वहीं, हरीश रावत राज्य में कांग्रेस के सबसे बड़े और सबसे पुराने नेताओं में से एक हैं जबकि ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के प्रभारी देवेंद्र यादव एक ‘राजनीतिक नौसिखिया’ हैं और केवल दिल्ली में विधायक रहे हैं। दरअसल, उत्तराखंड कांग्रेस में दो खेमों में जमकर बंटवारा हो गया है, जिसमें एक तरफ रावत खेमा और दूसरी तरफ देवेंद्र यादव का खेमा है।

राज्य के कांग्रेसी कार्यकर्ता पार्टी के रैंक और नेताओं के ओहदों को लेकर भ्रमित हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आलाकमान श्री रावत पर अमरिंदर सिंह की भूमिका निभा सकता है। कार्यकर्ताओं को समझ नहीं आ रहा है कि किसकी सुने और किसकी नहीं। इस बीच, राज्य में टिकट शॉर्टलिस्टिंग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि रावत खेमे के करीबी नेताओं की अनदेखी की जा रही है और देवेंद्र खेमे के नए नेताओं को महत्व दिया जा रहा है, जिससे कुछ नाराज़गी बढ़ी है।

और पढ़ें:- तेज़ी से बदल रही है ‘देवभूमि’ की जनसांख्यिकी, संस्कृति की रक्षा के लिए “भूमि-कानून” है जरुरी

कांग्रेस पर छाया राजनीतिक संकट 

ऐसे में, यह स्पष्ट होता है कि एक साल से भी कम समय में कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करती जा रही है। पार्टी के पास सिद्धांत, नेतृत्व और कैडर की भयंकर कमी जगजाहिर हो चुकी है। सिंधिया, जितिन प्रसाद, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री फलेरिओ और ना जाने कितने नेता या तो खुद ही कांग्रेस से निकाल गए या निकाल दिये गए। कयास यह भी लगाए जा रहें हैं कि हरीश रावत कांग्रेस से अलग हो सकते हैं और अपनी एक नई पार्टी का गठन कर सकते हैं। वहीं, अगर आलाकमान ने जल्द कदम नहीं उठाया, तो बची खुची यह पार्टी इस नए राजनीतिक संकट के कारण समाप्त हो सकती है।

Exit mobile version