मध्य एशिया में सांस्कृतिक मोर्चे पर बड़ा बदलाव हो रहा है। लंबे समय से रूढ़िवादी जकड़न में फंसे हुए मध्य एशिया में दो विरोधाभासी घटनाएं एक साथ चल रही हैं। एक ओर, संयुक्त अरब अमीरात में फ़िल्मों के प्रदर्शन से संबंधित तमाम लालफीताशाही कानूनों को बदल दिया गया है और दूसरी ओर एक फ़िल्म को लेकर मध्य एशियाई देशों में घमासान मचा हुआ है। इस महीने की शुरुआत में साढ़े चार दिन के कार्य सप्ताह को लागू करने की घोषणा के बाद UAE ने कहा है कि वह फ़िल्मों की सेंसरशिप खत्म कर देगा। सीधे प्रतिबंध लगाने के बजाय, 21 प्लस की एक नई आयु श्रेणी को इसके मौजूदा रेटिंग सिस्टम के भीतर जोड़ा जाएगा। जिससे फ़िल्मों के ‘अंतरराष्ट्रीय’ संस्करणों की स्क्रीनिंग की अनुमति मिल जाएगी, जो चुंबन, नग्नता, समलैंगिकता को भी दिखा सकते हैं।
UAE ने फ़िल्मों के सेंसरशिप के सन्दर्भ में लिया बड़ा निर्णय
दरअसल, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) अब मल्टीप्लेक्स (Multiplex Movie Theatres) में रिलीज होने वाली फ़िल्मों को सेंसर नहीं करेगा। UAE की सरकार फ़िल्मों में सेंसरशिप के बजाय उन्हें 21 प्लस रेटिंग में रिलीज करेगी। वहीं, UAE में अब पारंपरिक इस्लामिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले संवेदनशील कंटेंट को फ़िल्मों से नहीं हटाना पड़ेगा, उस कंटेंट को 21 प्लस रेटिंग दी जाएगी। साथ ही, UAE ने घोषणा की है कि वह व्यक्तिगत अधिकारों सहित बाकी दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है। UAE सेंसरशिप बदलावों के पीछे अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में तेल से परे विविधता लाने की व्यावहारिक आवश्यकता को भी एक कारक मानता है। इस सन्दर्भ में UAE द्वारा नवंबर 2021 में अनावरण की गई 10 साल की राष्ट्रीय रणनीति का उद्देश्य रचनात्मक और सांस्कृतिक उद्योगों से सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को 5 प्रतिशत तक बढ़ाना है।
और पढ़ें : कैसे अखिल भारतीय फिल्में बॉलीवुड के वर्चस्व को ध्वस्त करने चली हैं
UAE की घोषणा मनोरंजन के उदारीकरण को और अधिक गति प्रदान करेगी जो पहले से ही इस क्षेत्र में चल रहा है। उदाहरण के लिए, सिनेमा पर अपने तीन दशक से अधिक पुराने प्रतिबंध को हटाने के चार साल बाद सऊदी अरब ने इस साल जेद्दा में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह आयोजित किया। वहीं, काहिरा फिल्म महोत्सव में फिल्म Fiasco ने दो पुरस्कार भी जीते। मिस्र, जहां उदारवादी लोग अक्सर हिंसा का निशाना बनते हैं, ने द इटरनल की स्क्रीनिंग की भी अनुमति दी, जिसमें पहले समलैंगिक सुपरहीरो को दिखाया गया था।
फ़िलिस्तीन में विवाद का कारण बनी फिल्म ‘अमीरा’
‘अमीरा’ नाम की एक फ़िल्म पर्दे पर आई है। इस फ़िल्म में इजरायल और फ़िलिस्तीन के बीच एक अजीब संबंध को दर्शाया गया है। फिल्म, इजरायल के कैदखानों में जो लोग बंद हैं, उनके शुक्राणुओं को तस्करी के जरिए उनके पत्नियों तक पहुंचाया जाने पर आधारित है। मिस्र के फिल्म निर्देशक मोहम्मद दीब अपनी फिल्म ‘अमीरा’ को एक नाटक के रूप में देखते हैं, जिसने अंतरराष्ट्रीय समारोहों में भीड़ खींची है, लेकिन कई फ़िलिस्तीनियों के लिए यह इजरायल की जेलों में बंद उनके कैदियों का अपमान है।
अमीरा में जेल से तस्करी कर लाए गए शुक्राणु के साथ गर्भ धारण करने वाली एक लड़की की कहानी है, जिसका जैविक पिता एक फ़िलिस्तीनी कैदी के बजाय एक इजरायली जेलर निकल जाता है। इटली, ट्यूनीशिया और मिस्र में समारोहों में स्क्रीनिंग के बाद 43 वर्षीय फिल्म निर्माता डायब ने अमीरा को जॉर्डन में प्रदर्शित करने का मन बनाया। लेकिन इसके बजाय, जॉर्डन ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं, रॉयल फिल्म आयोग ने कहा, “हम फिल्म के कलात्मक मूल्य में विश्वास करते हैं और इसका संदेश किसी भी तरह से फिलीस्तीनी कैदियों को नुकसान पहुंचाना नहीं है। इसके विपरीत, यह फ़िल्म उनकी दुर्दशा, उनकी लचीलापन को उजागर करता है।”
और पढ़ें : हमास ने जॉर्डन को ऑस्कर से फिल्म ‘अमीरा’ को वापस लेने के लिए किया विवश
बता दें कि जॉर्डन ने फिल्म को हाल ही में बड़े विवाद के आलोक में वापस ले लिया है। कुछ लोगों की यह धारणा है कि “फिल्म अमीरा फ़िलिस्तीनी लोगों के लिए हानिकारक है और कैदियों और उनके परिवारों की भावनाओं को आहत करता है।” वहीं, UAE ने जो कदम उठाया है, वह प्रशंसनीय है। हालांकि, मध्य एशिया के अन्य देशों विशेष तौर पर एक समुदाय विशेष को ज्यादा सहिष्णु होने की आवश्यकता है।