इसी साल असम और मिज़ोरम के बीच खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें 5 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हुई थी। कारण था गोकशी और गोतस्करी। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने उसी समय मिज़ोरम से बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठिए मुसलमानों को ‘दिमा हसाओं’ के जनजातीय क्षेत्र में ना बसाने की हिदायत दी थी क्योंकि ये लोग गोकशी और गोतस्करी में संलिप्त थे। पर, अफसोस वो ऐसा नहीं कर पाए। वहीं, अब खबर सामने आ रही है कि राज्य में गोहत्या और गो तस्करी को समाप्त करने के उद्देश्य से असम सरकार ने अपने मवेशी संरक्षण अधिनियम में कई बड़े बदलाव लाते हुए संशोधन पारित कर दिया है। असम मवेशी संरक्षण अधिनियम,2021 को पारित करने के चार महीने पश्चात बीते गुरुवार को असम विधानसभा द्वारा यह संशोधन विधेयक पारित किया गया।
असम मवेशी संरक्षण अधिनियम,2021 हुआ पारित
दरअसल, असम मवेशी संरक्षण विधेयक, 2021 को अगस्त में राज्य विधानसभा में पारित किया गया था। इस विधेयक ने असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950 को बदल दिया। हालांकि, इसके सख्त प्रावधानों के कारण बिल को भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वहीं, आलोचनाओं को देखते हुए, राज्य सरकार ने प्रावधानों में कुछ बदलाव करने के बाद असम विधानसभा के चल रहे सत्र में फिर से संशोधन विधेयक पेश किया, जिसे असम मवेशी संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2021 के नाम से जाना जाता है। पहले के बिल में कई बदलावों के साथ मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने संशोधन पेश किया और खेती के उद्देश्यों के लिए मवेशियों के उपयोग की सुविधा हेतु मौजूदा प्रतिबंधों को हटाने का प्रस्ताव रखा। इतना ही नहीं, असम सरकार ने गो तस्करी की क्रूरताओं को ध्यान में रखते हुए जांच प्रक्रियाओं के लिए नए प्रावधान भी पेश किए।
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पशु तस्करों पर कड़ी सजा का है प्रावधान
बता दें कि इस संशोधन विधेयक में कृषि उद्देश्यों के लिए मवेशियों के परिवहन को आसान बनाया गया है जबकि पशु तस्करों के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित की गई है। अब जब्त वाहनों और मवेशियों को परीक्षण या जांच के लिए अदालत के सामने पेश करना अनिवार्य होगा। इसके साथ-साथ प्रमुख संशोधनों के माध्यम से उपयुक्त अदालत को सार्वजनिक नीलामी में जब्त वाहनों की बिक्री का आदेश देने का प्रावधान भी किया गया है। बांग्लादेश के साथ लगते सीमावर्ती जिलों में मवेशियों के परिवहन तस्करी को मानते हुए इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है परंतु, यह संशोधन विधेयक मवेशियों की अंतर-जिला आवाजाही की अनुमति देगा।
असम विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने आश्वासन दिया कि “कृषि उद्देश्यों के लिए पशुपालन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है और इस संशोधन विधेयक का उद्देश्य मवेशियों की तस्करी को रोकने पर केंद्रित है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। विशेष रूप से, भैंसों के संबंध में कोई संशोधन पारित नहीं किया गया है।”
हिमंता बिस्वा सरमा ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा कि “राज्य में मवेशियों की सुरक्षा को मजबूत करने के हमारे मिशन में, हम मवेशी संरक्षण अधिनियम 2021 में एक संशोधन लाए हैं। नए संशोधन विधेयक से कृषि उद्देश्यों के लिए मवेशियों के परिवहन में आसानी होगी और पशु तस्कर के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित होगी।”
गोकशी असंवैधानिक है!
आपको बता दें कि गाय सनातन संस्कृति की अभिन्न अंग है। हिन्दू धर्म में गाय को साक्षात धर्म का प्रतिबिंब माना गया है। इसके रोम-रोम पर 33 कोटी देवी-देवता निवास करते हैं। आर्थिक रूप से भी यह सम्पदा की प्रतीक है, तो वहीं भोजन से लेकर ईंधन तक हमें गाय से प्राप्त होता है। गौदान श्रेष्ठ धर्म माना गया है। कृष्ण की कल्पना भी गाय के बिना अधूरी है। सनातन संस्कृति में गाय के भोजन पश्चात भोजन ग्रहण करने को श्रेष्ठकर माना गया है और सबसे सर्वोत्तम वो भोजन है जो गाय से प्राप्त होता है।
वहीं, रही बात संवैधानिक वैधानिकता की तो जब संविधान बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो मोहनदास करमचंद गांधी और कई शीर्ष नेताओं को कई पत्र और तार मिले, जिसमें गो-वध को अवैध बनाने का अनुरोध किया गया था। पर, महात्मा के कथनानुसार अपने धार्मिक सोच को दूसरे पर थोपना गलत है क्योंकि मुस्लिम गाय खाते हैं। नवंबर 1948 में पेश संविधान के प्रारंभिक मसौदे में गोरक्षा या गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं था। पर 24 नवम्बर 1948 को राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत अनुच्छेद 48 में इसे अंकित किया गया है। नेहरू ने जान-बूझकर इसे राज्य के उत्तरदायित्वों पर छोड़ा किन्तु मोदी सरकार के नेतृत्व में भाजपा शासित राज्य सनातन संस्कृति के इस धर्मधुरी के रक्षण का सार्थक प्रयास कर रही है।
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असम सरकार का सराहनीय प्रयास
ऐसे में, कुंठित मानसिकता वाले लोगों की बात करें तो संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक पर अनुच्छेद 51-A (G) के तहत प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं जीवित प्राणियों के लिए करुणा रखने के लिए एक मौलिक कर्तव्य का भार डालता है। गोहत्या पर प्रतिबंध उचित है क्योंकि इस अधिनियम ने राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने में सक्षम बनाया। गोवंश का मल-मूत्र समृद्ध जैविक खाद का एक स्रोत है, जो हमें पृथ्वी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करेगा और रसायनों के उपयोग से बचायेगा। अंततः असम सरकार का यह प्रयास सनातन संस्कृति में गाय की महत्ता को उल्लेखित करता है, जो की एक सराहनीय प्रयास है।