Best news of 2021: भारतीय बैंक आखिरकार NPA की दलदल से बाहर निकल चुके हैं

मोदी है तो मुमकिन है!

इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड

Source- TFIPOST

लगभग पिछले चार वर्षों में  इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के वित्तीय हथियार से मोदी सरकार ने NPA के संबंध में सबसे बड़ा सुधार किया है, जो GST जैसे मील के पत्थर से भी बड़ा है। ऐसा कहने के पीछे एक बहुत ही ठोस तर्क है और वह यह है कि IBC भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था में Insolvency और Bankruptcy संस्कृति बनाता है, जो पहले अनुपस्थित थी। विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र वाले कंपनी के प्रवर्तक, जिन पर बैंकों का अरबों डॉलर बकाया था, वे भारतीय न्यायिक प्रणाली में खामियों का उपयोग करते हुए वर्षों तक दिवालियापन के प्रस्तावों को घसीटते रहें। इन कंपनियों और उनके प्रमोटरों को उबारने के लिए करदाताओं के अरबों डॉलर पैसे का इस्तेमाल किया गया और उद्यम के विफल होने के बावजूद उन्हें नियंत्रण खोने का भी कोई डर नहीं था।

असफलता उद्यमिता का हिस्सा है, लेकिन जब आप असफल उद्यमियों को सफल उद्यमियों के समान मानते हैं, तो सफल होने का प्रोत्साहन ध्वस्त हो जाता है और यह किसी भी नियम-आधारित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरी बात है। इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ने इस समस्या को सफलतापूर्वक हल कर दिया है और इस बदलाव का परिणाम अब सिस्टम में दिखाई दे रहा है। बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन पर आरबीआई की एक रिपोर्ट ने इस बदलाव को पकड़ा और स्वीकार भी किया है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में एक उल्लेखनीय गिरावट आई है।

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वित्त वर्ष 2021 में बैंकों ने किया अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन

आरबीआई की रिपोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि लोगों को गलत साबित करते हुए, बैंकों ने वित्त वर्ष 2021 (महामारी वर्ष) में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। गिरावट (ब्याज आय) को निवेश से होने वाली आय में उल्लेखनीय वृद्धि से मदद मिली। ट्रेडिंग से होने वाली आय में भी तेजी आई, क्योंकि बैंकों ने जी-सेक यील्ड गिरने पर मुनाफा वसूली का काम भी की। रिपोर्ट में कहा गया कि “बैंकों की लाभप्रदता, फंड पर रिटर्न और फंड की लागत के बीच प्रसार के संदर्भ में मापा जाता है, जिसमें पहले की तुलना में बाद में गिरावट के साथ सुधार हुआ।” पीएसबी के मामले में लाभप्रदता या मार्जिन में सुधार विशेष रूप से स्पष्ट था।

पिछले कुछ वर्षों में बैंकों ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड का उपयोग करके NPA पर बहुत अच्छी वसूली की है। विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे लोगों सहित कई डिफॉल्टरों की संपत्ति उधारदाताओं के संघ द्वारा बेचकर वसूली गयी है। दिवाला कार्यवाही में आमतौर पर भारत में औसतन लगभग 4.3 वर्ष लगते हैं, जो यूनाइटेड किंगडम में 1 वर्ष और संयुक्त राज्य अमेरिका में 1.5 वर्ष की तुलना में धीमी है। इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ने न केवल इस समयावधि को कम किया है, बल्कि भारत में निवेश करने की इच्छुक कंपनियों के लिए भारत को एक मित्रवत गंतव्य भी बनाया है।

आईबीसी के अलावा, सरकार द्वारा समेकन पर जोर देने से भी पीएसबी की दक्षता में काफी सुधार हुआ है। डिजिटलीकरण के लहर के बीच, भारतीय बैंकों ने सरकार के सहयोग से iSPIRT फाउंडेशन जैसे विकसित प्लेटफार्मों की बदौलत वित्तीय तकनीक को सफलतापूर्वक अपनाया है। ऐसे में, जब दुनिया के कई देशों में बैंक फिनटेक के दक्षता को खो रहे हैं, भारतीय बैंक उसी तकनीक का उपयोग करके अपनी दक्षता बढ़ा रहे हैं।

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अर्थव्यवस्था की रीढ़ है बैंकिग क्षेत्र

आत्मनिर्भर भारत, मेक-इन-इंडिया तथा सरकार द्वारा शुरू की गई स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाओं के कारणअधिक से अधिक कंपनियां आगे बढ़ रही हैं। लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हर कंपनी सफल नही होगी, केवल कुछ ही यूनिकॉर्न बनेंगी। इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह उन कंपनियों के लिए लचीलापन प्रदान करता है, जो दिवालियापन के प्रस्तावों से गुजरने में विफल होने के कगार पर हैं। साथ ही इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड यह भी सुनिश्चित करता है कि ये कंपनियां भारतीय न्यायपालिका के अनंत मकड़जाल में फंसकर समाप्त न हों।

बैंकिंग क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और स्वतंत्रता के बाद से भारतीय बैंकिंग क्षेत्र अन्य देशों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है और वित्तीय समावेशन, इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, इंडिया स्टैक के माध्यम से यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र देश के विकास में अग्रणी भूमिका निभाए।

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