चैती छठ पर्व का महत्व
चैती छठ के त्योहार की अपनी विशेषता है. यह पर्व भारत के हर राज्य में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार इतना प्रसिद्ध है कि इसे भारत के साथ साथ विदेशों में भी मनाया जाता है. छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है. साल में दो छठ महापर्व होते हैं.
जिसमें पहला चैत्र मास में जिसे चैती छठ के नाम से भी जाना जाता है, तो दूसरा कार्तिक मास में आता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं. लोक आस्था के महापर्व चैती छठ का अनुष्ठान चार दिवसीय होता है. छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है.
चैती छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का बहुत महत्व है. यह व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है. कहा जाता है कि इस व्रत को करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है. कहा जाता है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है. इस व्रत का फल सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति से भी ज्यादा होता है. सिर्फ संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है.
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चैती छठ पूजा का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद था. राजा की कोई संतान नहीं थी.राजा ने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से यज्ञ संपन्न करवाया. यज्ञ करने के बाद महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण करने को दी. कहा जाता है कि यह खीर खाने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ. यह देख राजा बेहद व्याकुल और दुखी हो गए.
राजा प्रियंवद अपने मरे हुए पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे. तभी उस समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं.और उन्होने राजा से रोने का कारण पूछा.राजा ने अपना सारा दुख माता देवसेना के समक्ष रखा.यह सुन माता देवसेना ने राजा से कहा कि वो उनकी पूजा करें.
आपकों बता दे ये देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं. यही कारण है कि ये छठी मईया कही जाती हैं. जैसा माता ने कहा था ठीक वैसे ही राजा ने पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया. यह व्रत करने से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई. कहा जाता है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है.
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नहाय खाय एवं खरना का प्रसाद
छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय खाय में लौकी की सब्जी,अरवा चावल, चने की दाल और आंवला की चाशनी के प्रसाद का खास महत्व है. वैदिक मान्यता के अनुसार इससे पुत्र की प्राप्ति होती है. वहीं वैज्ञानिक अनुसार बताया गया है कि इससे गर्भाशय मजबूत होता है. खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग और आंख की पीड़ा समाप्त करने में लाभदायक है. वहीं इसके प्रसाद के सेवन से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है.
इस मौसम में शरीर में फॉस्फोरस की कमी होने के कारण शरीर में रोग के लक्षण पैदा होने लगते हैं. प्रकृति में फॉस्फोरस सबसे ज्यादा गुड़ में पाया जाता है जिस दिन से छठ शुरू होता है उसी दिन से गुड़ वाले पदार्थ का सेवन शुरू हो जाता है. खरना में चीनी की जगह गुड़ का ही प्रयोग किया जाता है. इसके साथ ही ईख गागर एवं अन्य मौसमी फल प्रसाद के रूप प्रयोग किया जाता है.
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सप्तमी तिथि
प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है. विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य भगवान को सप्तमी तिथि प्रदान की गई. इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है. सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं.
चैती छठ पूजा पर्व 2022 में कब है?
चैती छठ पूजा पर्व 2022 में 5 अप्रैल 2022 को मनाया जायेगा.
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