भारत ने Chinese Dumpyard बनने से किया इंकार और चीन इससे सदमे में है

इसी को कहते हैं गरीबी में आटा गीला!

पिछले कई वर्षों से चीन भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं को डंप कर रहा है। खिलौनों से लेकर त्योहारों की वस्तुओं एवं कपड़े जैसे चीनी उत्पाद भारतीय बाजार में मौजूद हैं। चीन का स्पष्ट मकसद है कि वह अपने सबसे घटिया सामान भारत में सस्ते दामों में बेचे, जिससे स्थानीय कंपनियों को घाटा हो। हालांकि, गलवान घाटी की घटना के बाद से भारत ने अपनी नीतियों में बदलाव किया है और अब चीनी डंपयार्ड न बनाने के उपायों पर काम कर रहा है। इसी क्रम में भारत ने 5 चीनी सामानों पर 5 साल के लिए डंपिंग रोधी शुल्क लगाया है।

भारत ने लगाया चीनी सामानों पर डंपिंग रोधी शुल्क

दरअसल, इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने पांच चीनी उत्पादों पर पांच साल के लिए डंपिंग रोधी शुल्क लगाया है, जिसमें कुछ एल्यूमीनियम और कुछ रसायनों के सामान शामिल हैं। वहीं, केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय निर्माताओं को चीन से होने वाले सस्ते आयात से बचाने के लिए यह कदम उठाया गया है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) द्वारा एक अलग अधिसूचना में कहा गया है कि एल्यूमीनियम, सोडियम हाइड्रोसल्फाइट, सिलिकॉन सीलेंट हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) R-32 और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन मिश्रणों के कुछ उत्पादों पर नए शुल्क लगाए गए हैं। इन उत्पादों का उपयोग कई उद्योगों जैसे थर्मल पावर, सौर ऊर्जा, प्रशीतन और डाई उद्योग में किया जाता है।

CBIC ने कहा, “इस अधिसूचना (सिलिकॉन सीलेंट पर) के तहत लगाया गया डंपिंग रोधी शुल्क आधिकारिक राजपत्र में इस अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से पांच साल की अवधि के लिए लगाया जाएगा (जब तक कि इसे रद्द नहीं किया जाता है, इसे पहले संशोधित या संशोधित नहीं किया जाता है) यह भारतीय मुद्रा में देय होगा।” CBIC ने घरेलू निर्माताओं को सस्ते चीनी आयात से बचाने के लिए CKD/SKD (Complete and Semi Knocked Down) में ट्रेलरों के लिए एक्सल पर शुल्क भी लगाया।

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असामान्य रूप से कम कीमतों के कारण लगाए गए शुल्क

बता दें कि वाणिज्य मंत्रालय की जांच शाखा व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR) की सिफारिशों पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाया गया है। अलग-अलग जांच में, DGTR ने निष्कर्ष निकाला कि इन उत्पादों को भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कम कीमत पर निर्यात किया गया था, जिससे भारतीय बाजार में बड़े स्तर पर डंपिंग हुई है।

इस तरह से घटिया सामान भारत के बाजार में डंप करने के चीनी व्यापार प्रथाओं के कारण भारत के स्थानीय उत्पादकों और निर्माताओं को घाटा हुआ है। एक तरफ चीन सस्ते और घटिया सामान का उत्पादन करता है, तो वहीं दूसरी ओर, भारतीय निर्माता गुणवत्ता या फिटनेस से समझौता नहीं करते हैं, जिससे उनके उत्पाद की कीमत चीनी सामानों से अधिक होती है। इसमें कोई संदेश नहीं है कि चीन ने भारतीय बाजारों पर कब्जा करने और स्थानीय उत्पादकों को हाशिए पर रखने के लिए सब कुछ किया है।

हालांकि, भारतीय अधिकारी अब चीन की अनुचित व्यापार प्रथाओं पर नकेल कस रहे हैं। इसलिए, केंद्र सरकार अपने स्वयं के उद्योगों को चीन के व्यापारिक जाल से बाहर लाने के लिए चीनी उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क लगा रही है। यह चीन की अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ भारत का अभियान है।

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दबाव में है चीनी व्यापार

बताते चलें कि कोरोना के बाद सभी देशों जानते हैं कि अगर चीन को हराना है, तो उसके चीनी निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना होगा। हाल ही में, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने अपनी स्टील और एल्यूमीनियम की लड़ाई को समाप्त कर दिया, जिसका उद्देश्य था चीन के स्टील उद्योग को साथ मिल कर हराना। वहीं, बाइडन प्रशासन ने यूरोप को स्टील और एल्यूमीनियम निर्यात के लिए Duty-Free पहुंच की अनुमति दी है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ मिलकर चीन के स्टील उद्योग से लड़ेंगे। यूरोपीय संघ ने भी चीन से आने वाले विशिष्ट स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर सख्त शुल्क लगाया है।

ऐसे में, भारत ने चीनी निर्यात अर्थव्यवस्था पर और दबाव डाला है। दुनिया चीनी उत्पादों को छोड़ रही है और भारत इस अभियान में सबसे आगे चल रहा है।

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