जलवायु परिवर्तन पर भारत ने पश्चिमी देशों से नैतिकता का पाठ सीखना बंद कर दिया है

पश्चिमी देशों की दादागिरी अब नहीं चलेगी!

जलवायु परिवर्तन भारत

Wokeism की क्रांति तर्कों को नजरअंदाज करती है। कैसा हो अगर आपको खाना खिलाने के लिए बुलाया जाए और वहां पहुंचकर ये बोला जाए कि पहले आपको खेती करनी होगी क्योंकि खेती से अनाज होगा और अनाज से भोजन बनेगा, तब आप कहेंगे कि यह क्या मजाक है? इससे भी बड़ा मजाक है कि खेती करने के लिए पहले से ही एक अलग टीम बनाई गई हो फिर भी आपको यह काम करने के लिए कहा जाए। दरअसल, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कुछ इसी तरह की मूर्खता आयरलैंड और नाइजीरिया ने की है और इन दोनों देशों को पीछे से पश्चिमी देशों विशेष तौर पर अमेरिका का समर्थन भी मिल रहा है।

मामला यह है कि हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गई है, जहां सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा होती है किन्तु इस बार Wokeism को पनाह देने वाले पश्चिमी देशों ने कहा कि यहां पर केवल पर्यावरण की बात होगी। बता दें कि आयरलैंड और नाइजीरिया द्वारा प्रायोजित मसौदा प्रस्ताव, जिसमें जलवायु परिवर्तन के खतरे को सुरक्षा से जुड़ा हुआ बताया गया है, इसको लेकर ये दोनों देश सुरक्षा परिषद में सर्वसम्मति जुटाने की कोशिश कर रहे थे। वहीं, विकास के पथ पर अग्रसर भारत ने इस मुद्दे पर सबको ठेंगा दिखाया है।

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मसौदा प्रस्ताव के विरुद्ध भारत ने किया मतदान

आपको बताते चलें कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित सभी मामलों पर चर्चा करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की नींव रखी गई है। UNFCCC के 190 से अधिक सदस्य हर साल कई बार मिलते हैं, जिसमें दो सप्ताह का वार्षिक सम्मेलन भी शामिल होता है।

वहीं, भारत ने बीते सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन से संबंधित चर्चा के लिए एक औपचारिक स्थान बनाने की मांग वाले एक मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। तत्पश्चात रूस द्वारा वीटो पॉवर के उपयोग बाद यह प्रस्ताव विफल हो गया है। भारत और रूस एकमात्र ऐसे देश थे, जिन्होंने मसौदा प्रस्ताव का विरोध किया था। वहीं, चीन ने अपना मत स्पष्ट करने से परहेज किया था। भारत, चीन और रूस शुरू से ही इस कदम का विरोध करते रहे हैं, यह तर्क देते हुए कि जलवायु परिवर्तन पर सुरक्षा परिषद के हस्तक्षेप से UNFCCC प्रक्रिया कमजोर होगी और जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित निर्णय मुट्ठी भर विकसित देशों तक सीमित रह जायेगा।

जलवायु परिवर्तन के खतरे को ‘सुरक्षा’ से जोड़ना है गलत 

भारत ने मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने पर अपने फैसले की व्याख्या करते हुए कहा कि “UNFCCC ने पहले से ही हर देश के लिए समान आवाज और हर देश की राष्ट्रीय परिस्थितियों की पर्याप्त मान्यता के साथ एक विस्तृत और न्यायसंगत वास्तुकला की पेशकश की है।” संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, टी एस तिरुमूर्ति ने कहा, “UNFCCC की प्रक्रिया विकासशील और विकसित देशों की प्रतिबद्धताओं की तत्काल जरूरतों अर्थात दोनों को संबोधित करती है। यह शमन, अनुकूलन, वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी, हस्तांतरण, क्षमता निर्माण आदि के बीच संतुलन चाहती है। वास्तव में, यह जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण लेती है, जो न्यायसंगत और निष्पक्ष है।”

तिरुमूर्ति ने आगे कहा, “इसलिए, हमें खुद से यह पूछने की जरूरत है कि हम इस मसौदा प्रस्ताव के तहत सामूहिक रूप से क्या कर सकते हैं, जिसे हम UNFCCC प्रक्रिया के तहत हासिल नहीं कर सकते। ऐसा क्यों है कि किसी को जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव की आवश्यकता है, जबकि हमारे पास ठोस जलवायु कार्रवाई के लिए UNFCCC के तहत प्रतिबद्धताएं हैं? ईमानदार उत्तर यह है कि सुरक्षा परिषद के दायरे में जलवायु परिवर्तन लाने के उद्देश्य के अलावा इस प्रस्ताव की कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं है।”

ऐसे में, विकसित देश जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदारियों से स्वयं को दूर रखने के लिए मसौदा प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रहें हैं। वहीं, भारत ने Wokeism को पनाह देने वाले पश्चिमी देशों को मसौदा प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान कर यह साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विकसित देश भी जिम्मेदार हैं और इसके खतरे को सुरक्षा की दृष्टि से जोड़ना गलत है।

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