सेना को दोष न दें, नागालैंड की वर्तमान अवस्था के लिए राजनीति जिम्मेदार है

भारतीय अखंडता को चुनौती दे रहा है नागालैंड!

नागालैंड

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नागालैंड जल रहा है, लोगों को लगता है कि सुरक्षाबलों के हत्थे चढ़े 13 नागरिकों की मृत्यु के कारण ऐसी स्थिति है, पर सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है। आइये हम आपको वास्तविक कारण से पूर्णतः अवगत कराते हैं।

शनिवार का दिन

शाम 6.30 बजे: मोन जिले के ओटिंग गांव से कोयला खनिकों को लेकर एक वैन गुज़र रही थी। मोन जिला नागालैंड की राजधानी कोहिमा से करीब 350 किलोमीटर दूर है। सैनिकों को वैन में आतंकवादियों के होने की खुफिया इनपुट मिलती है। तत्काल कारवाई करते हुए सैनिक घात लगाकर हमला करते हैं। दुर्भाग्यवश सात लोगों की मृत्यु हो जाती है।

7.30 बजे: भीड़ धारदार हथियार के साथ प्रतीकार करती है और एक जवान को मौत के घाट उतार देती है। सेना इस बार बचाव में गोलीबारी करती है, जिसमे छह लोगों की मौत हो जाती है।

रात 10 बजे: गांवों में पुलिस तैनात कर सेना के जवानों को मोन शहर ले जाया जाता है।

रविवार का दिन:

सुबह 11 बजे: मोन शहर के कोन्याक यूनियन कार्यालय में भीड़ तोड़फोड़ करती है।

दोपहर 2 बजे: असम राइफल्स कैंप पर हमला कर दो वाहनों और शेड में आग के हवाले कर दिया जाता है। जिसके बाद बचाव में की गई सुरक्षाकर्मियों की गोलीबारी में एक नागरिक की मौत हो जाती है।

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शुरू हो गयी गिद्ध राजनीति

इस मामले को सुलझाने और शांति प्रयास को लेकर अलग राजनीति शुरू हो गई। नागालैंड सरकार ने 13 मृतक परिवारों को पांच-पांच लाख के अनुग्रह राशि देने की घोषणा किया। मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने अपने कैबिनेट सहयोगियों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ स्थिति का जायजा लेने और मृतकों को सम्मान देने के लिए सोम का दौरा किया। वहीं, तृणमूल कांग्रेस का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी आज नागालैंड का दौरा करने वाला है। नागा राजनीतिक मुद्दे पर केंद्र के साथ शांति वार्ता कर रहे एनएससीएन (आईएम) ने सुरक्षा बलों द्वारा नागरिकों की हत्या की निंदा की और कहा कि यह नगा लोगों के लिए एक ‘काला दिन’ है।

यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। सुरक्षाबलों से भूल हुई है, इसमे कोई संदेह नहीं है। पर, इसे अपराध की संज्ञा देना और इसे सुरक्षाबलों द्वारा जान-बूझकर कर किया गया हमला बताना निंदनीय है। असली अपराधी इस प्रकार की गिद्ध राजनीति करने वाले राजनेता है, जिनके कारण सुरक्षाबलों की इस भूल पर न्याय करने भीड़ उतर आई। इसी राजनीति के कारण भीड़ ने एक जवान को मौत के घाट उतार दिया और सीआरपीएफ का कैंप फूंक दिया। भारतीय सरकार के आधिकारिक प्रतिष्ठान जला दिये गए और सुरक्षाबलों को दूसरे जिले में स्थानांतरित करना पड़ा। स्वयं सोचिए, तृणमूल कांग्रेस को अभी वहां दौरा करने की क्या आवश्यकता थी? सेना और सरकार अभी शांति स्थापित करें या इन राजनीतिक दलों को रोके। परंतु, तृणमूल कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल वहां पर केंद्र सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाएंगे, आग में घी डालेंगे और सत्ता के लिए देश की अखंडता से समझौता करेंगे!

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स्वतंत्र नागालैंड की मांग

नागालैंड पश्चिम और दक्षिण में भारत तथा उत्तर और पूर्व में म्यांमार की त्रिकोणीय सीमा पर स्थित है। यहां की नागा जाति भारत और म्यांमार की सरकारों के साथ सतत संघर्षरत है। कारण यहां की “नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग)” और “नागा नेशनल काउंसिल (एडिनो)” जातीय आधार पर भारत और म्यांमार के  क्षेत्रों को मिलाकर एक “स्वतंत्र नागालैंड” चाहता है। कालांतर में ऐसे 4 और संगठन अस्तित्व में आ गए, जो स्वतंत्र नागालैंड का ख्वाब देखते हैं। 15 अगस्त 1947 को उन्होंने भारत के इतर अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। अपनी फौज तैयार कर ली और जनमत संग्रह की मांग करते हुए भारत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष भी छेड़ दिया। उनके इस दुस्वप्न को चीन का साथ मिला और चीन ने उन्हें हथियार और प्रशिक्षण दिया। नेहरू सरकार की नपुंसकता ने मामले को जटिल से जटिलतम बना दिया!

कभी दुनिया भर में अपनी हैवानियत के लिए कुख्यात यह क्षेत्र अब भारत का ईसाई बहुल क्षेत्र बन गया है। इसे दुनिया में सबसे अधिक बैपटिस्ट राज्य के रूप में जाना जाता है। इस राज्य का मानना है कि भारत की सनातन और विविध संस्कृति में रहना अपमानजनक है, जबकि भारत ने अपने संविधान के अनुच्छेद 371A के तहत इसे जम्मू-कश्मीर से भी ज्यादा विशेष राज्य का दर्जा दिया है। यहां की सरकार के पास अपनी विधायी और कार्यपालिका शक्ति है। यहां तक कि इनकी न्याय प्रणाली भी भारत से भिन्न है। भारत सिर्फ रक्षा, सूचना और विदेश नीति को निर्देशित करता है, लेकिन फिर भी ये लोग अलग संविधान, विधान और झंडे पर अड़े हुए हैं।

मोदी सरकार का शांति प्रयास  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एशिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले छापामार विद्रोहों में से एक को समाप्त करना चाहते हैं, जिसमें हजारों लोग मारे गए हैं। हालांकि, भारत सरकार ने 2015 में ही विवाद को हल करने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया और एक नागा राष्ट्रवादी समूह के साथ एक रूपरेखा समझौते की शुरुआत की, जिसे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम- इसाक-मुइवा (NSCN-IM) कहा जाता है।

समझौते की शर्तों में से एक में भारत के भीतर नागा लोगों को “विशेष दर्जा” देना शामिल था। अगस्त 2019 में, मोदी ने वार्ताकार और नागालैंड के वर्तमान राज्यपाल आर एन रवि को एनएससीएन-आईएम के साथ बातचीत समाप्त करने और तीन महीने के भीतर संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर कराने का निर्देश दिया। परंतु, वो अपने अखंड संप्रभुता, अलग झंडे, संविधान, कानून पर अड़े हुए है। नागालैंड को यह समझना होगा कि भारत के साथ ही उसका भविष्य सुरक्षित है। अगर वो इसे स्वीकार करते हैं, तो निसंदेह भविष्य में सुरक्षाबलों से ऐसी भूल नहीं होगी, अगर हुई तो सज़ा मिलेगी अन्यथा यह भूल एक सोची समझी रणनीति में परिवर्तित हो जाएगी!

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