Elephanta Caves: कैसे अपवित्र हो रहे हैं महादेव के खूबसूरत गुफा मंदिर

भारत के मुकुट में मणि के समान है एलीफेंटा की गुफाएं!

एलीफेंटा द्वीप

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क्या आपने महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम का logo देखा है? नहीं देखा, तो चलिये हम बताते है। दरअसल, इस logo में तीन सिर वाले सदाशिव के 20 फीट ऊंची प्रतिमा को दिखाया गया है। इस प्रतिमा में महादेव का दायां चेहरा सृष्टि रचयिता का प्रतीक है, तो उनका बायां चेहरा सृष्टि के संहारक का प्रतीक, जबकि महादेव का ध्यानमग्न केंद्रीय चेहरा शिव को सृष्टि रक्षक के रूप में प्रदर्शित करता है। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम के logo पर अंकित महादेव की ऐसी उत्कृष्ट प्रतिमा स्वर्ग की कपोल कल्पना नहीं, बल्कि धरती की वास्तविकता है जो एलीफेंटा द्वीप पर स्थित है।

परंतु, ये हमारा दुर्भाग्य और शासन की अकर्मण्यता ही है, जो हम पुरखों द्वारा विरासत में मिली ऐसी भव्य और गौरवशाली कलाकृतियों, मंदिर और मूर्तियों को विस्मृत और अपवित्र करते जा रहें है। विश्व विरासत में शामिल इस पवित्र स्थान के प्रबंधन का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और UNESCO दोनों के ऊपर है। पर, दोनों संस्थाएं पूर्णतः विफल रही हैं। अतः, हिन्दू जनमानस के मन में यकायक एक प्रश्न कौंधता है कि ऐसे धरोहरों को संरक्षित करने के लिए क्या ये आवश्यक नहीं कि विश्व विरासत और पर्यटन स्थल की जगह इनके मंदिर स्वरूप को बनाए रखा जाए।

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दो समूह में बटी हुई हैं एलीफेंटा की गुफाएं

एलीफेंटा गुफा (Elephanta Caves) एलीफेंटा द्वीप पर स्थित है। एलीफेंटा का अर्थ है गुफाओं का शहर। इसे घरपुरी के नाम से भी जाना जाता है, जो मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित है। यह नाम इसे इस द्वीप पर मौजूद हाथी की मूर्ति के कारण पुर्तगालियों ने दी थी। एलीफेंटा द्वीप एक सुरम्य द्वीप है, जो आम, इमली, करंज और ताड़ के पेड़ों से घिरा हुआ है। विश्व मानचित्र पर इसकी उपस्थिति गुफाओं के एक अद्वितीय समूह के कारण है, इसे यूनेस्को द्वारा वर्ष 1981 की शुरुआत में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया। वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है, जो इसके निरंतर रख रखाव के लिए जिम्मेदार है।

एलीफेंटा द्वीप पर स्थित गुफाएं दो समूह में हैं: पहला गुफा भगवान शिव को समर्पित गुफाओं का समूह है, जो भारत के मूर्तिकला के कुछ सबसे उत्तम उदाहरणों को परिलक्षित एवं प्रतिबिम्बित करता है। इसमें भगवान शिव से जुड़ी 15 मूर्तियां हैं, जो उनके विवाह, ध्यान और कैलाश तपस्या के साथ-साथ रावण और गणेश से जुड़े प्रसंगों को भी प्रदर्शित करती हैं, जबकि दूसरा द्वीप समूह थोड़ा छोटा है, जिसमें दो बौद्ध गुफाएं शामिल हैं। हालांकि, यह कितनी पुरानी है, यह विवाद का विषय है।

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इस्लामिक बर्बरता से बचा रहा एलीफेंटा द्वीप

एलीफेंटा गुफाओं को संरक्षित करने के शुरुआती प्रयास वर्ष 1909 में ब्रिटिश भारत के अधिकारियों द्वारा किए गए थे। उस समय भी इस साइट को भारतीय पुरातत्व विभाग के तहत रखा गया था और प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम ने इसे अपने दायरे में शामिल किया था। इससे एलीफेंटा द्वीप को अलग करने और खंडहरों को संरक्षित करने में मदद मिली। परंतु, यह नाकाफी था। वैसे भी विदेशियों से कितनी ही उम्मीद करें, वो भी उनसे जो हमें सपेरों और गरेडियों का देश समझते थे। असली पीड़ा तो अपने पहुंचाते हैं, हमने तो इनके संरक्षण के लिए कानून भी नहीं बनाए। बस, अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून का बेमन से पालन कर रहें है।

परंतु, इसका एक लाभ अवश्य हुआ। एलीफेंटा इस्लामिक बर्बरता से बचा रहा, अन्यथा ये पवित्र स्थान भी या तो ध्वस्त कर दिया जाता या इसे मस्जिद में परिवर्तित कर इसका श्रेय इस्लाम को दे दिया जाता। इन समस्याओं से हमारी पुरखों की ये धरोहर तो बची रही, पर प्रकृति जनित क्षति जारी रही। इस बात के प्रमाण हैं कि गुफाओं में चित्रित अधिकांश पेंटिंग समय के हानिकारक प्रभावों, जलवायु परिवर्तन और मानव बर्बरता के कारण धुंधली पड़ गई हैं।

महाराष्ट्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने गुफाओं में शानदार नक्काशी के क्षरण और अरब सागर के ओर से आनेवाले प्रदूषण पर आंखें मूंद ली है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के अनुसार, “पिछले कुछ वर्षों में एलीफेंटा द्वीप काफी तनाव में रहा है, क्योंकि यह मुंबई बंदरगाह के बीच में स्थित है। बंदरगाह गतिविधियों के कारण प्रदूषण, आस-पास के रासायनिक भंडारण सुविधाओं और तेल सिलोस के साथ-साथ पानी के नीचे विस्फोट से यह द्वीप पर्यावरणीय खतरे और क्षरण झेल रहा हैं। यह एक फॉल्ट लाइन पर भी स्थित है, जो द्वीप से होकर गुजरती है।”

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भारत के मुकुट में मणि के समान है एलीफेंटा

20 फरवरी, 2004 को एएसआई के तत्कालीन महानिदेशक को लिखे एक पत्र में यूनेस्को के एशिया और प्रशांत क्षेत्र के संस्कृति सलाहकार रिचर्ड एंगेल हार्ड्ट ने लिखा था कि “एलीफेंटा गुफा भारत के मुकुट में मणि के समान है। उन्होंने द्वीप पर पर्यटक सुविधाओं को अपग्रेड करने के प्रस्ताव पर अपनी चिंता व्यक्त की, जिसे एलीफेंटा योजना समिति के अनुमोदन के बिना और एएसआई या INTACH विशेषज्ञों से “उचित इनपुट के बिना” तैयार किया गया था।”

एंगेल हार्ड्ट के पत्र ने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 1995 में यूनेस्को द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ सर बर्नार्ड फील्डन ने पाया कि “कोर जोन में संरक्षण की स्थिति नाटकीय रूप से खराब हो गई थी। सर बर्नार्ड ने चेतावनी दी थी कि एलीफेंटा की स्थिति इतनी गंभीर है कि जब तक इसे ठीक नहीं किया जाता है, एलीफेंटा को विश्व विरासत सूची से हटाया जा सकता है।”

सेल्फी लेने में व्यस्त भारतीय पर्यटक इन उत्कृष्ट रॉक नक्काशी का शायद ही अवलोकन करते हों। पुरात्त्विक ज्ञान से अनभिज्ञ ये लोग इस धरोहर की महत्ता को समझ पाने में अक्षम हैं। कुछ आगंतुक एलीफेंटा गुफाओं में मौजूद नक्काशी पर एक सेल्फी के लिए चढ़ते उतरते हैं। नक्काशी के पीछे ‘इतिहास’ और ‘मिथक’ की व्याख्या करने में व्यस्त गार्डों के पास, इन गुमराह आगंतुकों को नोटिस करने का समय नहीं है और आगंतुक इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि वे साइट की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों को तोड़ रहे हैं। इससे साफ हो जाता है कि सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, UNESCO और हमारी लापरवाही, अनभिज्ञता और राजनीति की वजह से ये महान विरासत दम तोड़ रही है।

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