नकली किसानों का विरोध खत्म हुआ लेकिन भारत को जो घाव मिले वो मिटेंगे नहीं!

ये जुर्म तुम्हारे, ये आतंक तुम्हारा, सब याद रखा जाएगा!

विरोध

नकली किसानों की भीड़ और उग्रवाद से डर के कारण भले ही केंद्रीय सरकार ने कृषि कानून को वापस ले लिया है लेकिन क्या इसके साथ जो कुछ भी जो हुआ, उससे हम मुक्ति पा सकते हैं? क्या इस विरोध के पीछे नकली आन्दोलनकारी, हत्या, रेप, आर्थिक नुकसान और खालिस्तानी तत्व जो पाए गए हैं, उससे हम मुक्त हो सकते हैं? क्या उन किसानों की बात नहीं होगी जिन्होंने इस कानून का समर्थन किया था क्योंकि देश की बड़ी किसानी आबादी को इसका लाभ मिल रहा था।

किसानों को इस कानून से एक नया विकल्प मिला था। जहां उन्हें APMC (कृषि उपज बाजार समिति) बाजार के बाहर अपनी उपज बेचने की आजादी थी और ऐसे व्यापार पर कोई कर नहीं लगेगा जो किसानों को अधिक कीमत देगा।

किसान अपनी उपज राज्य के भीतर या देश में कहीं भी बेच सकता था और इस प्रकार के व्यापार पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। इससे किसानों को लाभ होगा कि वे जहां कहीं भी अधिक कीमत प्राप्त करेंगे, वे अपनी उपज व्यापारी को बेच सकेंगे।

APMC मंडी के बाहर व्यापार क्षेत्र में किसानों की कृषि उपज खरीदने के लिए व्यापारियों को किसी भी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि पैन कार्ड या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य दस्तावेज रखने वाले भी इस व्यापार में शामिल हो सकते हैं और तमाम ऐसी चीजें थी, जिसका लाभ किसानों को मिलना शुरू हो गया था लेकिन अब एक राजनीतिक लाभ के चक्कर में सबकुछ तबाह हो गया।

आंदोलन के नाम पर हुए कई जुर्म

खबरों की माने तो टिकरी बॉर्डर पर एक लड़की के साथ बलात्कार भी हुआ था। हरियाणा पुलिस ने एक 26 वर्षीय महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप में छह लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, जो टिकरी सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में भाग ले रही थी।

बाद में वह लड़की मर गई। उसके पिता ने सोमवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उन्हें कथित बलात्कार के बारे में तब पता चला जब वह 29 अप्रैल को झज्जर पहुंचे और अस्पताल में लड़की से मिले।

उन्होंने बताया, “उसने मुझे बताया कि टिकरी के लिए रवाना होने के बाद उसे परेशान किया गया और उसके साथ बलात्कार किया गया। ट्रेन में एक आरोपी ने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती किस किया। टिकरी आने के बाद वह किसान सामाजिक सेना के टेंट में रह रही थी, जहां उसके साथ आए दो लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। उसने मुझे बताया कि वे उसे ब्लैकमेल कर रहे थे।

किसान आंदोलन के दौरान जो हत्याएं हुई, उसका हिसाब कौन देगा?

दिल्ली-हरियाणा सीमा के पास कुंडली में एक किसान की विरोध स्थल पर पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, उसका हाथ काट दिया गया और शरीर पर धारदार हथियारों से 10 से अधिक घाव किए गए।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप में, कुछ निहंग घायल व्यक्ति के सिर के पास उसके कटे हुए बाएं हाथ के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे। समूह द्वारा उस व्यक्ति पर सिखों की पवित्र पुस्तक का अपमान करने का आरोप लगाया गया था।

संयुक्त किसान मोर्चा  ने इस पर कहा कि निहंगों के एक समूह ने इस क्रूर हत्या की जिम्मेदारी ली है, और उस व्यक्ति ने ग्रंथ को अपवित्र करने की कोशिश की थी।

आर्थिक नुकसान पर डालिए नज़र

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने कहा था कि दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान को तीन कृषि कानून पर चल रहे किसानों के विरोध के कारण लगभग 27,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

उद्योग मंडल एसोचैम ने मंगलवार को केंद्र और किसान संगठनों से नए कृषि कानूनों पर गतिरोध को हल करने का आग्रह करते हुए कहा कि विरोध पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्थाओं को भारी झटका दे रहा है।

चैंबर के एक मोटे अनुमान के अनुसार, “प्रति दिन रू 3,000- रु 3,500 करोड़ का नुकसान मूल्य श्रृंखला से क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं और विरोध के कारण परिवहन व्यवधान के परिणामस्वरूप हो रहा है।”

एसोचैम के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा, “पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की संयुक्त अर्थव्यवस्थाओं का आकार लगभग 18 लाख करोड़ रुपये है। चल रहे किसानों के आंदोलन और सड़कों, टोल प्लाजा और रेलवे की नाकेबंदी से आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई हैं।”

प्रदर्शन में खालिस्तानी तत्व

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दावा किया था कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के विरोध में ‘खालिस्तानियों’ ने घुसपैठ कर दी है।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा किया गया दावा तब जवाब में आया जब भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक पक्ष द्वारा आरोपों के बारे में पूछताछ की कि एक प्रतिबंधित संगठन, ‘सिख फॉर जस्टिस’, विरोध प्रदर्शनों का समर्थन कर रहा है। जवाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा, “हमें बताया गया है कि विरोध प्रदर्शनों में खालिस्तानी घुसपैठ है।” उन्होंने कहा कि वह खुफिया ब्यूरो (आईबी) के आवश्यक इनपुट के साथ एक हलफनामा दाखिल करेंगे।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, “हमने कहा है कि ‘खालिस्तानियों’ ने किसान विरोधों में घुसपैठ की है।” हम खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट के साथ कल तक हलफनामा दाखिल कर सकते हैं।”

भावनाएं अपनी जगह है लेकिन हमारा कहना भी गलत नहीं है। ऊपर जितनी भी बातें लिखी है, सबकी खबर का लिंक भी है। सवाल यह है कि क्या आप इस सच को स्वीकारते हैं या उसे नकार देते हैं। किसान आंदोलन के नामपर जो अराजकता हुई है, उसका दंश भारत एक लंबे समय तक झेलने वाला है।

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