फ्रांस ने फिर से कट्टरपंथ पर किया वार और इस बार Woke भी होंगे प्रसन्न

एक तीर से दो शिकार!

कट्टरपंथ

वैश्विक स्तर पर इस्लामिक कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव से विश्व के सभी देश त्रस्त हैं। तालिबान हो या ISIS, इन आतंकी संगठनों ने विश्व में आतंक को इतना बढ़ा दिया है कि इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ घरेलू स्तर पर भी एक्शन लेना आवश्यक हो गया है। पिछले कुछ वर्षों में फ्रांस एक ऐसा देश रहा है, जो इस तरह के कट्टरपंथ के खिलाफ मजबूती से लड़ा है। दरअसल, एक रिपोर्ट के अनुसार कि पिछले एक वर्ष में फ्रांस ने कट्टरपंथ की विचारधारा को जन्म देने वाले 30 से अधिक मस्जिदों को बंद किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कट्टरपंथी इस्लाम का मुख्य उद्देश्य ही दारुल हर्ब की स्थापना करना है अर्थात एक ऐसा इस्लामिक शासन जो शरिया-संचालित हो।

फ्रांस ने अपनाया इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ कड़ा रुख

वहीं, यह भयावह प्रयास वैश्विक स्तर पर चल रहा है लेकिन इस प्रयास के प्रतिकार का प्रथम पर्याय फ्रांस बना है। फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए इस षडयंत्र पर दोतरफा प्रहार किया है। पहला मस्जिदों पर और दूसरा कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों पर। इसी बीच फ्रांस के आंतरिक मामलो के मंत्री Gerald Darmanin ने कहा कि “उन्होंने छह महीने पहले भी एक मस्जिद को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की थी।” वहीं, इस कदम का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि “धार्मिक संस्थान के इमाम ‘कट्टरपंथी’ उपदेश दे रहे हैं।”

Gerald Darmanin ने एक निजी टीवी चैनल को बताया कि “उन्होंने ‘भड़काऊ’ उपदेश के कारण, पेरिस से लगभग 100 किलोमीटर उत्तर में 50,000 आबादी वाले शहर ब्यूवाइस में मस्जिद को बंद करने की प्रक्रिया की शुरुआत की थी।” फ्रांसीसी मंत्री ने इमाम पर अपने उपदेशों में ‘ईसाइयों, समलैंगिकों और यहूदियों को निशाना बनाने’ का आरोप भी लगाया। हालांकि, ओसे क्षेत्र के अधिकारियों, जहां ब्यूवाइस स्थित है, ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे मस्जिद को बंद करने पर विचार कर रहे थे क्योंकि मौलवियों नें धर्मोपदेशों के कारण नफरत, हिंसा और ‘जिहाद’ को उकसाया था।

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इस्लाम में मस्जिद धार्मिक स्थल से…

आपको बता दें कि फ्रांस ने एक साल पहले मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई शुरू की है। फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा स्कूलों, मुस्लिम संगठनों और मस्जिदों को बंद करने के निर्णय की वैश्विक नेताओं, मानवाधिकार समूहों और कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है, जो इस कदम को फ्रांस में अधिकारों और स्वतंत्रता पर गंभीर हमला बताते हैं।

वहीं, इस्लाम में मस्जिद धार्मिक स्थल से अधिक एक राजनीतिक मुख्यालय के समतुल्य हैसियत रखते हैं। बता दें कि यहीं से सृजित होता है धर्मानुशंसित कट्टरपंथी विचार। बीते एक साल में फ्रांस ने 89 संदिग्ध मस्जिदों का निरीक्षण किया और इसमें से एक तिहाई यानी करीब 30 मस्जिदों को बंद कर दिया है। वहीं, फ्रांस ने इन विवादित मस्जिदों को बंद करने का अभियान नवंबर 2020 में शुरू किया था।

फ्रांस ने किया इस्लामिक धार्मिक स्थलों को प्रतिबंधित

फ्रांस की संसद ने इसी साल जुलाई में एक विधेयक पारित किया था, जिसका मकसद मस्जिदों और अन्य धार्मिक संगठनों के ऊपर सरकारी निगरानी को मजबूत करना और इस्लामिक चरमपंथियों के आंदोलनों के प्रभाव को खत्म करने के साथ-साथ आवश्यकता अनुसार उन्हें प्रतिबंधित करना भी है। फ्रांसीसी सरकार द्वारा विभिन्न इलाकों में स्थित 6 और मस्जिदें बंद करने पर विचार हो रहा है। इतना ही नहीं, फ्रांस ने मस्जिदों के अलावा 650 अन्य इस्लामिक धार्मिक स्थलों को भी प्रतिबंधित कर दिया है।

इससे पहले गृह मंत्री गेराल्ड डार्मानिन के आधिकारिक बयान के अनुसार ‘राजनीतिक इस्‍लाम’ को बढ़ावा देने वाले 5 मुस्लिम संघों को बंद कर दिया गया था। साथ ही, अलगाववाद रोधी कानून के तहत देश में ऐसे 10 विवादास्पद संगठनों को बंद करने पर विचार चल रहा है। इस सन्दर्भ में फ्रांस की पुलिस ने देश में 24 हजार जगहों की जांच भी की है। गृह मंत्री के अनुसार अभी तक हुई कार्रवाई में 205 संघों के बैंक खातों को बंद किया गया है और दो इमामों को देश से बाहर निकाला गया है। गृह मंत्री गेराल्‍ड ने अपने बयान में कहा है कि “विदेशी धार्मिक अधिकारी वर्ष 2023 से फ्रांस में नहीं आ सकेंगे।”

कट्टरपंथियों के कुकृत्यों पर फ्रांसीसी सरकार कसेगी लगाम

वहीं, जो विदेशी धर्माधिकारी यहां आ चुके हैं, उनके निवास परमिट को बढ़ाया नहीं जाएगा। बताते चलें कि 57 लाख की आबादी के साथ फ्रांस सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला यूरोपियन देश है। फ्रांस अथॉरिटी इस्लामिक प्रकाशक (NAWA) को भी खत्म करने के बारे में सोच रहा है। इस संगठन ने पिछले साल जून, 2020 में पेरिस में अमेरिकी दूतावास के बाहर पुलिस हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन किया था। NAWA फ्रांस के दक्षिणी कस्बे में अपना प्रभुत्व रखता है। यहां, उस पर यहूदियों को डराकर भगाने और समलैंगिकों के खिलाफ पत्थरबाजी को वैध बताने का आरोप भी है।

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बताते चलें कि जनवरी 2015 में, दो मुस्लिम बंदूकधारियों ने पैगंबर मोहम्मद पर कथित रूप से एक कार्टून प्रकाशित करने के लिए 12 लोगों की हत्या कर दी थी। इसके अतिरिक्त, सैमुअल पेटी को इस्लामवादियों द्वारा अक्टूबर 2020 में नागरिक शास्त्र की कक्षा के दौरान पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने पर सिर कलम कर दिया गया था। सिर का काटना इस्लाम की सहिष्णुता के फ्रांसीसी इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। ऐसे में, कट्टरपंथियों के कुकृत्यों पर इमैनुएल मैक्रों की सरकार लगाम कसने को लेकर अपनी कार्रवाई शुरू कर चुकी है, जिससे Woke समूह में भी ख़ुशी देखने लायक  है।

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