“भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत एक दूरदर्शी थे, जिन्होंने भारतीय सेना के उच्च रक्षा संगठन में दूरगामी सुधारों की शुरुआत की थी। उन्होंने भारत के संयुक्त थिएटर कमांड की नींव रखने और सैन्य उपकरणों के बढ़ते स्वदेशीकरण को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक विरासत जिसे आगे की पीढ़ियों द्वारा आगे बढ़ाया और मजबूत किया जाएगा।”: भारतीय सेना
यह कथन भारतीय सेना की ओर तब जारी किया गया था, जब सीडीएस जनरल बिपिन रावत हादसे का शिकार हो गए। एक सर्वोत्कृष्ट सैन्य कमांडर में से एक जनरल बिपिन रावत के पास भू-राजनीतिक उथल-पुथल की एक अनोखी समझ थी। वो भारत को असंख्य सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए एक त्रिसेवा सैन्य सिद्धांत को धरातल पर लेकर आए। यही नहीं जनरल बिपिन रावत को बड़े पैमाने पर पूर्वोत्तर और जम्मू- कश्मीर में उग्रवाद को कम करने का श्रेय दिया जाता है।
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में, जनरल बिपिन रावत को तीनों सेवाओं के बीच थिएटर कमांड और संयुक्तता लाने का काम सौंपा गया था और वो पिछले दो वर्षों में एक केंद्रित दृष्टिकोण और विशिष्ट समयसीमा के अंदर इसे आगे भी बढ़ा रहे थे। बिपिन रावत आज से 3 साल बाद जो फौज की संरचना होगी, उसके अमर इंजीनियर के रूप में जाने जाएंगे। उनके द्वारा जो बदलाव किए जा रहे थे या जो बदलाव पूर्ण हुए हैं, वह भविष्य के आधुनिक, शक्तिशाली भारत की नींव रखेगा।
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जनरल बिपिन रावत के पास अनुभव की कमी नहीं थी। 43 वर्षों का सैन्य अनुभव मजाक नहीं होता है। जनरल बिपिन रावत ने पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ एक पैदल सेना बटालियन की कमान संभाली थी, फिर वो एक राष्ट्रीय राइफल्स सेक्टर और कश्मीर घाटी में एक पैदल सेना डिवीजन को संभालने लगे। अगस्त, 2016 में वाइस चीफ के रूप में नियुक्त होने से पहले पूर्वी थिएटर और दक्षिणी कमान में एक कोर अधिकारी के रूप में भी वो काम कर चुके हैं।
भारतीय सेना ने अपनी सर्जिकल स्ट्राइक तब की थी, जब जनरल बिपिन रावत थल सेना के उप प्रमुख और संचालन के प्रभारी थे। सीमा पार से छापेमारी की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद, जनरल बिपिन रावत ने हमेशा यह स्पष्ट किया कि उनके सैनिक सीमा पर बल प्रयोग करने में संकोच नहीं करेंगे, भले ही भारत सीमाओं पर शांति की उम्मीद करता है।
दुश्मनों की पहचान करने में थे नंबर एक
जब जनरल बिपिन रावत साल 2016 और 2019 के बीच सेना प्रमुख थे, तब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए Warm Search की नीति का पुरजोर समर्थन किया था। इसका फायदा यह हुआ कि आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वालों को यह डर सताता रहा कि वे कहीं से भी धरे जा सकते हैं।
साल 2017 में डोकलाम गतिरोध से पहले, जनरल बिपिन रावत ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि भारत की प्राथमिक और दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौती, एक तेजी से मुखर हो रहे चीन से आएगी और भारत को इसका सामना करने के लिए अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।
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जनरल रावत ने नागा उग्रवादियों के एक बड़े हमले के जवाब में म्यांमार में 2015 के सीमा पार अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। वो उस योजना का भी हिस्सा थे, जब भारत ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार आतंकी लॉन्च पैड्स के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जिसमें विरोधी को काफी नुकसान हुआ था।
जनरल रावत उस समय थल सेनाध्यक्ष थे, जब भारतीय लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट के अंदर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाया था। वो उस योजना में निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा थे और उन्होंने ऑपरेशन के लिए महत्वपूर्ण इनपुट भी प्रदान किया था।
सेना में सुधारों के लिए कर रहे थे प्रयास
भारतीय सेना (7), भारतीय नौसेना (3) और भारतीय वायु सेना (7) के बीच वितरित 17 कमांडों के बजाय, जनरल बिपिन रावत ने मौजूदा उत्तरी कमान को इसके रणनीतिक महत्व के लिए रखने के अलावा पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों के लिए एक-एक कमांड रखने की योजना बनाई थी। पाकिस्तान और चीन से इसकी निकटता के कारण दो और कमांड बनाना जरूरी था।
इसके अलावा, थिएटर कमांड योजना के अन्य फैसलों में नौसेना के लिए एक एकीकृत कमान, वायु सेना के लिए एक वायु रक्षा कमान और एक संयुक्त प्रशिक्षण कमान बनाना शामिल है। इससे एक जगह बैठकर पूरे विश्व में भारतीय सैन्य बलों का कमांड जारी किया जा सकेगा।
सेना प्रमुख के रूप में, उन्होंने भारतीय सेना में कई सुधारों की शुरुआत की, जिसमें सेना के अंदर शिकायत निवारण प्रणाली में सुधार और सेना में सदियों पुराने सहायक (अधिकारियों के व्यक्तिगत सहायता के रूप में कार्यरत सैनिक) प्रणाली को समाप्त करना शामिल है। भारत ने सिर्फ एक पराक्रमी योद्धा नहीं खोया है, बल्कि भारत ने एक ऐसे युद्ध नायक को खोया है, जिसने अनेकों युद्ध की विजय गाथा अभी ही लिख दी थी। भारत को लंबे समय तक जनरल बिपिन रावत की कमी खलेगी।