कश्मीर, भारत की आजादी के बाद हमेशा विवादों में घिरा रहा है। भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले ‘कश्मीर’ की स्थिति तब बदली जब केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने 5 अगस्त 2019 को भारतीय संविधान में जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान वाले अनुच्छेद 370 को हटाने का निर्णय लिया। जिसके बाद से कश्मीर में हालात सुधरे हैं किन्तु देश में कुछ नेता ऐसे हैं, जो आज भी कश्मीर की छवि को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। फारुक अब्दुल्ला उन्हीं नेताओं में से एक हैं।
एक समय कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारुक अब्दुल्ला, कश्मीर के उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जो कश्मीर समस्या का समाधान पाकिस्तान के साथ समझौते में देखते थे। वहीं, जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो स्थिति में परिवर्तन देखने को मिला, विशेष तौर पर फारुक जैसे लोगों को सीधे नजरअंदाज कर दिया गया जिसके बाद फारुक जैसे अलगाववादी नेताओं की प्रासंगिकता भी परिवार तक सीमित हो गई।
फारुक अब्दुल्ला का पाकिस्तान प्रेम आया सामने
हाल ही में, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला एक प्रेस वार्ता कर रहे थे, जहां उनका पाकिस्तान प्रेम सबके सामने आया। दरअसल, अब्दुल्ला बीते शनिवार को जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में पुलिस अधिकारियों की मौत को लेकर केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाजपा नेतृत्व वाले प्रशासन की खिंचाई कर रहे थे। वहीं, मामला यह था कि उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले में बीते शुक्रवार को आतंकवादियों ने दो पुलिस अधिकारियों पर गोलियां चला दीं, जिसके तुरंत बाद उनकी मौत हो गई। इसमें सिलेक्शन ग्रेड कांस्टेबल मोहम्मद सुल्तान और कांस्टेबल फैयाज अहमद मरने वाले अधिकारियों के नाम हैं। खबरों के अनुसार, आतंकी घटना के तुरंत बाद पुलिस, CRPF और सेना के जवान घटनास्थल पर पहुंचे और अपराधियों की तलाश के लिए घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया।
वहीं, इस घटना के बाद फारुक अब्दुल्ला ने प्रेस वार्ता का आयोजन किया। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने अपना पुराना राग दुहराते हुए कहा कि “जम्मू-कश्मीर कभी भी ‘उनके’ (पाकिस्तान) हाथों में नहीं आएगा लेकिन केंद्र शासित प्रदेश में स्थायी शांति के लिए पाकिस्तान से बात करने के अलावा सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है।” जब उनसे आतंकवादियों द्वारा दो पुलिसकर्मियों की हत्या के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि, “यह एक दुखद कहानी है, सब कुछ होने के बाद सरकार को हंकी-डोरी (बोलने) दो। क्या यह हंकी-डोरी है? क्या लोग सुरक्षित हैं? जब आपके पुलिस कर्मी सुरक्षित नहीं हैं, तो एक आम आदमी कैसे सुरक्षित है?”
जब पत्रकार पर भड़के फारुक अब्दुल्ला
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अब भी पाकिस्तान के साथ बातचीत पर जोर देते हैं, अब्दुल्ला ने जवाब दिया, “आपको बात करनी होगी। कोई रास्ता नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि, “आप चीन से बात कर सकते हैं, चीन के बारे में आप क्या कहते हैं, जो आ रहा है और हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर रहा है? हमारे इलाके में घर बनाते हैं, क्या सरकार ने इस पर संसद में चर्चा की अनुमति दी थी?”
इस सवाल के बाद जब एक पत्रकार ने सवाल को आगे बढ़ाया तो 84 वर्षीय फारुक अब्दुल्ला ने अपना गुस्सा पत्रकार पर उतार दिया। यही नहीं, पत्रकार पर काउंटर करने लिए भड़के फारूक अब्दुल्ला ने पत्रकार को अपने तरीके सुधारने के लिए कहा। ऐसे में, यह समझ से परे है कि फारुक अब्दुल्ला शांति बहाली के मार्ग को पाकिस्तान से क्यों जोड़ना चाहते हैं जबकि कश्मीर अब देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला है। कश्मीर को दूसरे राष्ट्र की भूमिका से क्यों जोड़ा जा रहा है? खैर, एक समय में, केंद्रीय सरकार ने ऐसे अलगाववादी नेताओं को नजरबंद तो किया था किंतु अब समय आ गया है कि पूरा राष्ट्र पाकिस्तानी प्रेमी और भड़काऊ नेता को भाव देना बंद करे।