2021 निस्संदेह एक उतार चढ़ाव से भरा वर्ष था, चाहे वाह राजनीति के लिए हो या भारतीय सिनेमा के लिए। डेढ़ महीने में कोरोना के दूसरे लहर ने जो त्राहिमाम मचाया, उसका व्यापक असर किसी से नहीं छुपा। परंतु इसके बाद भी कई ऐसी फिल्में सामने आई, जिन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी l इन्हे न भाषा की सीमाएँ रोक पाई, न ही क्षेत्र के बंधन।
कुछ फिल्में OTT पर भी दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रही, तो अक्टूबर के मध्य से सिनेमा पर भांति-भांति की पाबंदियाँ हटने के बाद कई फिल्में दर्शकों को अपनी ओर खींचने में भी सफल रही हैं। कुछ फिल्में वित्तीय रूप और मनोरंजक रूप से बेहद सफल हुई, तो कुछ फिल्मों ने अपने अनोखे दृष्टिकोण से दर्शकों को आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की। पेश है TFI की ओर से 2021 के सबसे बेहतरीन भारतीय फिल्मों की सूची, जिनमें से भारत के कोने कोने से कुछ उत्कृष्ट उपलब्धियां शामिल हैं –
पुष्पा – द राइज़
निस्संदेह ये 2021 की सबसे उत्कृष्ट मूवी न हो, लेकिन सुकुमार द्वारा निर्देशित इस तेलुगु फिल्म ने सिद्ध कर दिया कि यदि आपके उत्पाद में दम हो, तो वर्ड ऑफ माउथ से भी बहुत कुछ बदल सकता है। जिस दिन Spider Man – No Way Home ने Avengers की भांति भारतीय सिनेमाघरों में डेरा डाल रखा था, पुष्पा ने न केवल उसे चुनौती दी, बल्कि मात्र एक हफ्ते में 220 करोड़ से भी अधिक कमाकर सिद्ध कर दिया कि अब भारत में केवल बॉलीवुड का नहीं, अपितु अखिल भारतीय फिल्मों का भी वर्चस्व स्थापित किया। इसके ठीक उलट गाजे बाजे के साथ प्रदर्शित होने के बाद भी 83 मात्र 71 करोड़ ही इकट्ठा कर पाई l
मिन्नाली मुरली
भारत में सुपरहीरो फिल्में तो बहुत बनी है, पर अच्छी सुपरहीरो मूवी उतने ही हैं जितने भारत के व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक – अत्यंत दुर्लभ। परंतु मिन्नाली मुरली ने इस मिथक को तोड़ते हुए अपनी छाप छोड़ी है। Netflix पर प्रदर्शित इस मलयाली फिल्म ने भारतीय सुपरहीरो की एक नई परिभाषा गढ़ने का प्रयास किया। यह ‘Bhavesh Joshi’ जैसे एजेंडवाद से परिपूर्ण नहीं है, अपितु एक सार्थक प्रयास है, जिसे काफी सराहा भी गया है। यह Netflix पर उपलब्ध है।
गरुड़ गमन वृषभ विमान
जब से KGF चर्चा में आई है, कन्नड़ फिल्म उद्योग ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। इसीलिए यह फिल्म भी अपने आप में कन्नड़ फिल्म उद्योग के बढ़ते प्रभाव का परिचायक है।
‘गरुड़ गमन वृषभ विमान’ हमारे लोककथाओं का एक आधुनिक रूपांतरण स्वरूप हैं। ‘जैसे बोगे, वैसा काटोगे’ की पद्वति पर यह फिल्म एक नया दृष्टिकोण देती है और इस वर्ष की अद्वितीय फिल्मों में से एक में गिनी जाती है।
रुद्र तांडवम
कहने को ‘जय भीम’ की बड़ी प्रशंसा की गई थी, परंतु जिस फिल्म की वास्तव में प्रशंसा की जानी चाहिए थी, वह थी तमिल फिल्म ‘रुद्र तांडवम’। मोहन जी क्षत्रियन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में ईसाई माफिया और तमिलनाडु PCR एक्ट के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया है। इसमें ऋषि रिचर्ड और गौतम वासुदेव मेनन प्रमुख भूमिकाओं में है, और ये फिल्म प्रदर्शित होने के साथ ही वामपंथियों और ईसाई माफिया के रातों की नींद उड़ा दी, जैसे मलयालम फिल्म ‘Trance’ ने एक समय किया था। असल में ‘रुद्र तांडवम’ का मूल विषय है तमिलनाडु PCR एक्ट यानि नागरिक सुरक्षा अधिकार अधिनियम का दुरुपयोग, जिसके अंतर्गत उच्च जातियों के विरुद्ध कई दशकों से पक्षपाती निर्णय लिए गए हैं –
शेरशाह
बहुत कम होता है कि जब पूरे भारत के फिल्मों की प्रशंसा की जाए, तो बॉलीवुड की फिल्में भी शामिल हों। परंतु विष्णु वर्धन द्वारा निर्देशित ‘शेरशाह’ एक ऐसी ही फिल्म निकली। परम शूरवीर, कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित ‘शेरशाह’ उन फिल्मों में से है, जिनमें कमियाँ आपको घास में सुई के बराबर मिलेंगी, यानी लगभग नहीं मिलेंगी। ‘लक्ष्य’ और ‘उरी’ के बाद ये उन फिल्मों में शामिल हुई, जो न केवल देशभक्ति से ओतप्रोत थी, बल्कि यथार्थवादी भी। यह फिल्म केवल 2 घंटा 15 मिनट लंबी है, परंतु एक बार भी आप अपनी दृष्टि इस फिल्म से नहीं हटा पाएंगे। Yeh इस फिल्म में हर प्रकार के इमोशन हैं, और जब ये फिल्म खत्म होगी, तो आपके मन में भी एक टीस होगी– आखिर क्यों कैप्टन बत्रा चले गए?
लेकिन ये ही फिल्में पर्याप्त नहीं थी। ‘Mimi’, ‘Jathi Ratnalu’, ‘Biriyani’ जैसी भी फिल्में थी, जिन्होनें भारत के विभिन्न परिस्थितियों से परिचित कराया। आशा करते हैं 2022 बेहतर हो, और देश को कई बेहतरीन फिल्में मिले।





























