केरल देश के उन राज्यों में शामिल है जहां से कुछ ना कुछ ऐसी अनुचित खबरें आती रहती है जिसकी चर्चा पूरे भारत में होती है। केरल सरकार कभी हिन्दू फोबिया के लिए सुर्खियां बटोरती है तो कभी कोरोना वायरस के विरुद्ध इन्तज़मों की राज्य में विफलता को लेकर राज्य चर्चा का विषय बना रहता है। इस बार केरल सरकार शिक्षा को लेकर कटघरे में खड़ी है जहां पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शनिवार को पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली वाम सरकार के उच्च शिक्षा क्षेत्र को चलाने के तरीके की आलोचना की।
खान ने केरल सरकार को लेकर कहा, “मुख्यमंत्री का विश्वविद्यालयों से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि राज्य में स्कूली शिक्षा ठीक है, उच्च शिक्षा क्षेत्र कुत्तों के पास चला गया है, यहां तक कि नियुक्तियां भी नियमों के खिलाफ की जा रही हैं।”
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, “चूंकि कुलाधिपति का पद संवैधानिक नहीं है, इसलिए मैंने विजयन को एक अध्यादेश पारित करने के लिए लिखा था, जिसमें मुख्यमंत्री चांसलर के रूप में पदभार ग्रहण कर सकते हैं।” खान ने शिक्षा के मुद्दे पर मुख्यमंत्री विजयन को लिखा था कि अगर राज्य के उच्च शिक्षा क्षेत्र में चीजें इसी तरह जारी रहीं तो वह राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से इस्तीफा दे देंगेl
राज्यपाल ने अपने पत्र में भारत रत्न से सम्मानित सी.एन.आर.राव और इतिहासकार के.एन.पणिक्कर जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों के बयानों का हवाला दिया है कि केरल आज शिक्षा के क्षेत्र में क्यों पिछड़ रहा है।
राज्यपाल आरिफ खान ने कहा, “आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद मुझे लगा कि यह सही नहीं है और फिर मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर एक अध्यादेश पारित करने के लिए कहा ताकि वह कुलाधिपति का पद संभाल सकें।”
आगे उन्होंने विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन पारित करने के सरकार के फैसले में भी गलती पाई, जिसने न केवल विश्वविद्यालय अपील-योग्य न्यायाधिकरण की नियुक्ति के लिए कुलाधिपति की शक्ति को छीन लिया है, बल्कि उच्च न्यायालय से परामर्श करने की आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया है।
इस मामले को लेकर विपक्ष के नेता वी.डी.सतीसन ने कहा कि, “आखिरकार खुद राज्यपाल भी इस बात से अवगत हो गए हैं कि केरल में जिस तरह से चीजें हो रही हैं। सभी मौलिक नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है और उच्च शिक्षा क्षेत्र विजयन द्वारा माकपा के एक फीडर संगठन के रूप में चलाया जाता है। हम शिक्षा क्षेत्र में हाल ही में हुई सभी नियुक्तियों और कुलपति सहित सभी की न्यायिक जांच की मांग करते हैं।”
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राज्य में एक कुलपति को सेवानिवृति मिलने के बाद सेवा विस्तार दिए जाने के बाद से कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। यह ऐसे समय में आया है जब एक विवाद छिड़ गया था कि विजयन के सचिव की पत्नी को कन्नूर विश्वविद्यालय में एक शिक्षण पद पर नियुक्त करने के लिए नए नियम तैयार किए गए थे।
केरल के राज्यपाल ने जिस तरह से केरल सरकार की गलत शिक्षा नीति को उजागर किया है उससे यह पता चलता है कि केरल में बदलाव की मानसिकता और शिक्षा में निवेश करने के लिए केरल सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है।