गोवा में हिंदुत्व का उदय? हाँ! ये सपना अब सच हो रहा है

बीच और समुद्र के लिए प्रसिद्ध गोवा में कभी थे मंदिर ही मंदिर!

गोवा मुक्ति दिवस
गोवा मुक्ति दिवस- समय का पहिया एक चक्र का निर्माण करता है। निर्माण से सृजन, फिर विध्वंस और फिर निर्माण, यह हमेशा चलता रहता है। व्यक्ति उस चक्र में कहां पर स्थान प्राप्त करता है, वह उस पर निर्भर करता है। जो विध्वंस के साथ रहते हैं, जनता उनको सिरे से नकार देती है। जो निर्माण के साथ होते हैं, जनता उन्हें अपना नेता या फिर प्रतिनिधित्व करने वाला मान लेती है। 
 
गोआ भारत का एक ऐसा राज्य है, जो लंबे समय तक विभिन्न समूहों द्वारा शासित रहा है। इसमें सबसे प्रमुखता से पुर्तगाली आक्रांताओं को रखा जा सकता है। गोवा एक समय तक हिन्दू बाहुल्य राज्य था। बाद में पुर्तगाली लोगों की वजह से मंदिर का स्थान चर्च ने ले लिया। वह भी उसे हटाकर नहीं, उसे तबाह करके स्थान बनाया। गोआ का दर्द एक लंबे समय तक सुंदर तट, बियर और दारू में उड़ा दिया गया लेकिन फिर सत्ता बदली और आज उसी गोवा में प्रमोद सावंत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से फिर से हिंदुओ के प्रतीकों को जिंदा किया जा रहा है।

19 दिसम्बर 2021 को गोवा मुक्ति दिवस मनाया गया। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मंगलवार को गोवा की मुक्ति के 60वें वर्ष में कहा कि वह पुर्तगालियों द्वारा नष्ट किए गए मंदिरों के पुनर्निर्माण की पहल करना चाहते हैं। 

 सावंत ने पोंडा के मंगेशी में ऐतिहासिक श्री मंगुशी मंदिर में पुनर्निर्मित पर्यटन सुविधाओं का उद्घाटन करने के बाद कहा, “मैं अपनी हिंदू संस्कृति और मंदिर संस्कृति को संरक्षित करने और सुरक्षित करने की मांग को पूरा करने के लिए आपसे ताकत मांग रहा हूं। उस हिंदू संस्कृति और मंदिर संस्कृति को बहाल करने में आपकी मदद की आवश्यकता है।” 
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि श्री मंगुशी मंदिर का उद्गम कुशस्थली या आधुनिक समय के कोरटालिम में हुआ था, जो 1543 में हमलावर पुर्तगालियों के हाथों में आ गया था। आगे उन्होने कहा कि “हमारे पूर्वजों ने मंगेश लिंग को कुशास्थली के मूल स्थान से वर्तमान स्थान मंगेशी में स्थानांतरित कर दिया था। पुर्तगालियों ने गोवा में कई मंदिरों को तोड़ा था, लेकिन हमारे पूर्वजों ने उन मंदिरों को फिर से बनवाया था।”

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आपको बताते चलें कि 1561 में पुर्तगालियों ने मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था, जिसके तहत 300 से अधिक हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया। डबल इंजन की सरकार से हिन्दू उत्थान शुरू है। 
 
ऐसा नहीं है कि प्रमोद सावंत यह सब अकेले कर रहे हैं और उनके पीछे कोई खड़ा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोवा में हिंदुओं के उत्थान को अपनी महत्वकांक्षा की तरह बताया था। 
 
19 दिसम्बर को प्रधानमंत्री ने मराठा शासकों, अर्थात् छत्रपति शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी द्वारा गोवा के पुर्तगाली प्रभुत्व को लेने के लिए किए गए प्रयासों को याद किया था। प्रधानमंत्री ने तब 1583 में कनकोलिम ग्रामीणों के विद्रोह का भी उल्लेख किया, जब उन्होंने पुर्तगाली उपनिवेशवादियों की ताकत पर कब्जा कर लिया। 
 
मोदी ने यह कहा कि, “गोवा से पहले देश स्वतंत्र हुआ। भारत के अधिकांश लोगों को उनके अधिकार मिल गए थे। अब उनके लिए अपने सपनों को जीने का समय था। उनके पास शासन और सत्ता को आगे बढ़ाने के विकल्प थे। वे सम्मान और पदों को स्वीकार कर सकते थे लेकिन कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने यह सब छोड़ दिया और गोवा की आजादी के लिए संघर्ष और बलिदान करना जारी रखा।” 
 
प्रधानमंत्री ने गोवा की मुक्ति में अमूल्य योगदान के लिए प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को भी याद किया, जिसमें लुइस डी मेनेजेस ब्रगांजा, ट्रिस्टाओ ब्रागांजा दा कुन्हा, जूलियो मेनेजेस, पुरुषोत्तम काकोदकर, लक्ष्मीकांत भेंब्रे, बाला रिया मपारी शामिल हैं।
 
हमारे कई स्वतंत्रता सेनानी आजादी के बाद भी आंदोलन करते रहे। उन्होंने समस्याओं को झेला, बलिदान दिया लेकिन आंदोलन को रुकने नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय मोहन रानाडे का भी उल्लेख किया, जिनके बारे में उन्होंने कहा था कि वे राज्य की औपनिवेश से मुक्ति के बाद भी जेल में बंद रहे। 
 
मोदी ने कहा“मोहन रानाडे को याद करें, जिन्हें गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में लड़ने के लिए जेल की सजा सुनाई गई थी। उन्हें सालों तक जेल में रहना पड़ा। गोवा की मुक्ति के वर्षों बाद भी उन्हें जेल में ही रहना पड़ा।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि, “रानाडे जैसे क्रांतिकारी के लिए अटल जी ने संसद में आवाज उठाई। आजाद गोमांतक दल के कई नेताओं ने गोवा स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना सब कुछ दिया।” 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद यही बताना चाहते थे कि हिंदुओं का राज्य पर सबसे पहले अधिकार था। वहां हिंदुओ की अस्मिता की प्रतीकों के रूप में मंदिर थे जिस उपनिवेशवाद के दौरान तबाह किया गया था, प्रमोद सावंत और प्रधानमंत्री उसी अस्मिता को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत हैं।
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