क्या आपने कभी सोचा है कि वर्ष 2040 में भारत कैसा दिखेगा? अगर आपका उत्तर ना है तो आपको बता दें कि भविष्य के गर्भ में इस सवाल का उत्तर भले ही छिपा हुआ है लेकिन वर्तमान की योजनाओं से एक सटीक अंदाजा अवश्य लगाया जा सकता है। इसमें कोई दोराए नहीं है कि भारत तीव्र गति से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। आज से लगभग 19 वर्ष बाद भारत की छवि कैसी होगी, इसके सन्दर्भ में हम 5 बड़े बदलावों से आपको अवगत कराएंगे।
भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था
सरकार द्वारा जिस हिसाब से स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। किसी भी मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव इंफ्रास्ट्रक्चर को माना जाता है। सरकार खूब सारा पैसा सड़क, बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढांचों को मजबूत करने के लिए खर्च कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2040 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में अपने योगदान को वर्ष 2020 के अनुसार 3.1 प्रतिशत से 6.1 प्रतिशत कर दोगुना करने जा रहा है। 2020 में भारत अर्थव्यवस्था के लिहाजे से विश्व स्तर पर छठे स्थान पर था लेकिन 2040 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन्ने की ओर अग्रसर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत वैश्विक रैंकिंग में जापान का स्थान ले सकता है।
भारत बनेगा सेमीकंडक्टर चिप का हब
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते बुधवार को सेमीकंडक्टर्स के लिए 76,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दे दी, जिससे भारत में इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और निर्माण केंद्र बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस पहल के तहत, केंद्र की योजना अगले कुछ वर्षों में भारत में सेमीकंडक्टर डिजाइन, घटकों के निर्माण और डिस्प्ले फैब्रिकेशन (फैब) इकाइयों की स्थापना करने की है। केंद्र ने इलेक्ट्रॉनिक घटकों, उप-असेंबली और तैयार माल सहित आपूर्ति श्रृंखला के हर हिस्से के लिए प्रोत्साहन की घोषणा की है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर की कमी ने दुनिया भर के विभिन्न उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। सेमीकंडक्टर के मजबूत होने का मतलब है कि भारत तकनीकी क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को हासिल करेगा।
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ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में महाशक्ति बनेगा भारत
भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है। यह अनुमान है कि भारत में रिफाइनरियों, उर्वरकों और सिटी गैस ग्रिड जैसे अनुप्रयोगों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन की मांग साल 2030 तक बढ़कर 2 मिलियन टन प्रति वर्ष हो जाएगी। इसके लिए 60 अरब डॉलर से ऊपर के निवेश की जरूरत होगी। मौजूदा समय में इस क्षेत्र से बड़ी खबर सामने आ रही है कि भारत विश्व का हाइड्रोजन शक्ति बनने जा रहा है और इसको सफल बनाने के लिए दो बड़े उद्योग घराने इस क्षेत्र में सम्भावनाओं का मुद्रीकरण करने के लिए एक साथ आ गए हैं।
बता दें कि पवन और सौर जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलाइज़र का उपयोग करके जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ को उत्पादित किया जाता है। आज से 15 वर्ष बाद, हमारी और आपकी जिंदगी में ग्रीन हाइड्रोजन का बहुत बड़ा स्थान होगा। यह हम नहीं कह रहे हैं, यह तो नियति का वो सच है, जिसे टाला नहीं जा सकता है। भारत समेत दुनिया के तमाम देश इस पर काम कर रहे हैं। भविष्य में इस क्षेत्र में अनंत संभावनाएं हैं और हर तरीके से यह फायदेमंद भी है। भारत की कई बड़ी कंपनियां हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत 10 से 15 साल बाद के ‘ग्रीन हाइड्रोजन मार्केट’ का महाशक्ति बनने को तैयार है।
रक्षा उत्पादन में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता
भारत के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2016 से 2020 के बीच 3.9% की वार्षिक वृद्धि देखी गई है। भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक $ 25.00 बिलियन यूएस डॉलर (2025 तक निर्यात से $ 5 बिलियन डॉलर सहित) के रक्षा उत्पादन लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं, वर्ष 2019-20 में भारत में रक्षा निर्यात 1.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था। मालूम हो कि वित्त वर्ष 2010 के लिए भारत का रक्षा आयात मूल्य 463 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और वित्त वर्ष 2011 में यह 469.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
पिछले दो वर्षों में देश के रक्षा निर्यात में मजबूत वृद्धि देखी गई है। भारत ने अगले 5 वर्षों में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (35,000 करोड़ रुपये) के सैन्य हार्डवेयर का निर्यात करने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2019 तक, भारत 42 देशों को रक्षा उत्पादों का निर्यात करके दुनिया के शीर्ष रक्षा निर्यातकों की सूची में 19वें स्थान पर है। 2040 तक भारत शीर्ष 5 में शामिल हो सकता है।
भारत अब सॉफ्टवेयर (Saas) में रचेगा नए कीर्तिमान
Software-As-A-Service (Saas) क्षेत्र में भारत एक बड़ी ताकत के रूप में तेजी से उभर रहा है। कंसल्टेंसी फर्म ज़िनोव के एक अनुमान के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में, सक्रिय Saas कंपनियों की संख्या 1,000 से अधिक हो गई है और इस क्षेत्र का राजस्व पांच गुना बढ़ गया है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 और 2030 के बीच, भारत की सॉफ्टवेयर उत्पाद कंपनियां बाजार मूल्य के हिसाब से IT सेवा क्षेत्र को पीछे छोड़ देंगी और अगर इसी हिसाब से बढ़त हासिल करने में वह सफल रहती है, तो भारत की क्लाउड सॉफ्टवेयर कंपनियों का बाजार मूल्य 2030 तक 1.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
भारत अगर तेजी से बढ़त बनाता है तो यह 2030 तक वैश्विक पटल पर सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर (SaaS) के क्षेत्र में बीस प्रतिशत की हिस्सेदारी रख सकता है। आंकड़ो की माने तो अगले पांच वर्षों में, भारत का सास क्षेत्र लगभग 2,00,000 लोगों को रोजगार दे सकता है, जो वर्तमान में 50,000 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। इसके अलावा राजस्व लगभग 5.3 बिलियन डॉलर से बढ़कर 42 बिलियन डॉलर से 75 बिलियन डॉलर के बीच होने की उम्मीद है।
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स्पेस क्षेत्र का निजीकरण
भारत स्पेस निजीकरण के क्षेत्र में नई उड़ान भरने के लिए तैयार है। भारत ने अब योग्य प्रतिभाओं को सिलिकॉन वैली जाने से रोकने का फैसला कर लिया है। वर्ष 2019 में, भारत का अंतरिक्ष उद्योग $7 बिलियन डॉलर का था।
वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग में भारत का 2% हिस्सा था और इस क्षेत्र ने 45,000 से अधिक लोगों को रोजगार दिया था। वहीं, एंट्रिक्स कॉरपोरेशन को उम्मीद है कि अगर उचित नीति का समर्थन प्रदान किया जाए तो यह उद्योग 2024 तक $50 बिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा। 2021 में भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्रों तक पहुंचाने और नए स्टार्ट-अप खोलने के लिए भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) की शुरुआत की है।
लार्सन एंड टुब्रो, नेल्को (टाटा ग्रुप), वनवेब, मैपमायइंडिया, वालचंदनगर इंडस्ट्रीज जैसी कई निजी कंपनियों ने इस संगठन के संस्थापक सदस्य के तौर पर पदभार संभाला है। आपको बता दें कि भारत सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण में कदम तब रखा जब वैज्ञानिकों ने थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) केरल से परिज्ञापी रॉकेट लॉन्च करना शुरू किया।
ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत द्वारा अर्जित इन उपलब्धियों के आधार पर ‘वर्ष 2040 का भारत’ सतत, सम्पन्न और तकनीकी रूप से उन्नत राष्ट्र होने का गौरव हासिल करेगा।