Carlsberg से विश्वासघात पर नीतीश बाबू, बिहार की जनता माफ़ नहीं करेगी!

जो बिहार से करे विश्वासघात, उसका नाम नीतीश कुमार!

Carlsberg बिहार

बिहार जनसंख्या के आधार पर भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। बिहार में 16 वर्षों से नीतीश कुमार की सरकार चल रही है और बिहार का दुर्भाग्य देखिये की आज भी सुशासन का ढिंढोरा पीटने वाले नीतीश कुमार के राज में बिहार वर्ष 2021 में भारत का सबसे गरीब राज्य घोषित हुआ है। इसे बिहार की बदकिस्मती ही कहिए कि जिस सुशासन का नाम लेकर नीतीश कुमार हमेशा विपक्षियों को कोसते रहते हैं पर उनके खुद के सत्ता संभालने के बाद भी बिहार में ना हीं अपराध रुका और ना ही बिहार के लोगों का पलायन।

बिहार देश के उन राज्यों में प्रथम आता है, जहां कोई भी ऐसी बड़ी इंडस्ट्री नहीं है, जिससे रोजगार का सृजन हुआ है। फिर भी सत्ताधीश नीतीश कुमार अपनी तारीफ़ सुनने में पीछे नहीं रहते। बिहार में ऐसे कई बड़े इंडस्ट्री समूह हैं, जो बिहार में बड़े उद्योग लगाने से अपने कदम को पीछे हटाने लगे हैं। वहीं, बिहार में व्यवसाय को लेकर कोई बड़े कदम ना उठाना नीतीश कुमार की सरकार की कुव्यवस्था को उजागर करती है। हालांकि जब भी उनसे रोजगार के मुद्दे पर उनसे सवाल पुछा जाता है, तो वह पिछली सरकार पर आरोप लगा कर अपनी सरकार की नाकामियों को छुपाने की कोशिश करते हैं।

Carlsberg को क्यों बिहार से वापस लौटना पड़ा?

बिहार के लिए व्यवसाय, रोजगार और बड़े उद्योग लगाने को लेकर बिहार की जनता हमेशा नीतीश सरकार से मांग करते आई है, पर नीतीश कुमार अपने बनाए हुए सड़क और कुछ पूल पर हीं अटक जाते हैं। आपको बता दें कि साल 2015 के विधान सभा चुनाव से पहले बिहार के कई जिलों में शराब के छोटे और बड़े उद्योग थे, इससे बिहार के बहुत सारे लोगों को रोजगार और बिहार को एक मोटा राजस्व मिलता था। धीरे- धीरे बिहार जैसे गरीब राज्य में बहुत सारी शराब निर्माता कंपनियां उद्योग लगाने लगीं, जिससे उन कंपनियों को अच्छा मुनाफा भी मिलता था।

आपको बता दें कि एक बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में निवेश करने के लिए Carlsberg को आकर्षित किया था, इस प्रकार साल 2014 में पटना के पास लगभग 187 करोड़ रूपए का प्लांट स्थापित करने के लिए Carlsberg को राजी किया था। हालांकि, 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव के बाद उन्होंने 2016 में बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।

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नीतीश कुमार के इस कदम से शराब निर्माताओं को बहुत बड़ा आर्थिक नुक्सान पहुंचाया, जिसके बाद से शराब कंपनियों ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। बिहार में शराबबंदी के कारण Carlsberg का राजस्व गिर गया और उन्हें राज्य से बाहर निकलने पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि कंपनी के पास इस अप्रत्याशित कदम के लिए कोई बैकअप योजना नहीं थी।

Carlsberg के वे अंतिम 12 घंटे जब..

Carlsberg उन कंपनियों में प्रमुख थी, जिसने पिछले एक दशक से अधिक समय से बिहार में 70 से अधिक Distilleries and Breweries का संचालन कर रही थी, जो इन शराब कंपनियों के लिए एक आदर्श बाजार था। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वो जितने के बाद बिहार में पूर्ण शराबबंदी कर देंगे। हालांकि, नीतीश कुमार के इस फैसले के बाद से शराब कंपनियों को बहुत ही आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। यही नहीं Carlsberg इंडिया के CEO Michael N Jensen ने सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार सरकार को वर्षों तक कंपनी को लुभाने और बेवक़ूफ़ बनाने के लिए फटकार भी लगाई थी और उन्होंने यह आरोप लगाया था कि नीतीश सरकार ने बिहार में अपना कारोबार समेटने के लिए सिर्फ उन्हें 12 घंटे का समय दिया था।

शराबबंदी ने कई उद्योग और रोजगार भी बंद कर दिए

इसी मुद्दे को लेकर देश के जाने माने अल्टरनेटर मीडिया पोर्टल TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “नीतीश कुमार की सरकार में पूर्ण शराबबंदी ने बिहार में पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्रों को दिवालिया बना दिया है। अधिकांश कंपनियों ने अपने उद्योगों को नजदीकी राज्य झारखंड में स्थानांतरित कर दिया है। IT कंपनियां बिहार में निवेश नहीं करना चाहतीं क्योंकि उन्हें पता है कि IT इंजीनियरों को जरूरत है और वे ब्रेक के हकदार हैं। बिहार में शराबबंदी से सिर्फ नीतीश कुमार को मदद मिली है, राज्य के बाकी लोग हार गए हैं।”

TFI संस्थापक अतुल मिश्रा ने नीतीश कुमार के नाकामियों को उजागर करते हुए कहा कि “बिहार भारत के सभी भागों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। Carlsberg बिहार की पहली बड़ी विदेशी कंपनी थी। Carlsberg ने स्थानीय लोगों को नौकरी देने का वादा किया था। इसने बिहार सरकार को रिवरसाइड रिसॉर्ट्स, झोंपड़ियों और भोजन जोड़ों की स्थापना में सहायता करने का वादा किया था पर नीतीश कुमार के इस शराबबंदी वाले फैसले ने बहुत सारे लोगों के रोजगार छीन लिए।”

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बिहार के उद्योग बाज़ार के लिए बुरा संकेत

बताते चलें कि बिहार में शराबबंदी के मुद्दे को लेकर इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अमृत किरण सिंह ने नीतीश कुमार पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि “यह नीतीश सरकार ही थी, जिसने बिहार में शराब इकाइयों को आमंत्रित किया था। राज्य में निवेश की लागत बहुत अधिक है क्योंकि भूमि बहुत महंगी है। इसके बावजूद कंपनियों ने भारी निवेश किया क्योंकि सरकार ने उन्हें बाजार का आश्वासन दिया था। इन इकाइयों ने न केवल शराब का उत्पादन किया बल्कि हजारों पुरुषों को रोजगार भी दिया। ऐसे राज्य में जहां औद्योगीकरण राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है, राज्य सरकार उन्हें बचाने की कोशिश कर सकती थी। इसके बजाय, इसने उन्हें पैक-अप करने के लिए कहा। यह बिहार के उद्योग बाज़ार के लिए एक बहुत बुरा संकेत होगा।”

नहीं थम रही है शराब की तस्करी

ऐसे में, आज के परिदृश्य में बिहार में शराबंदी बस नाम की रह गई है, हर दो दिन में बिहार में जहरीली शराब से मौत की खबरें सामने आती हैं और बिहार के सुशासन की सरकार पर जोरदार तमाचा मारने का काम करती हैं। बिहार के अधिकतर जिलों में शराब की तस्करी ने कई माफियाओं को अरबपति बना दिया है। बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी राजद ने नीतीश सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि “नीतीश सरकार शराब माफियाओं से मिली हुई है और शराब माफियाओं से पैसे लेकर अपनी पार्टी के चुनाव फण्ड में इसका दुरूपयोग करती है, हालांकि जनता दल यूनाइटेड इस बात को नकार और नज़रअंदाज़ कर रही है।” अतः ये कहना गलत नहीं होगा कि बिहार में सुशासन बाबू की सरकार ने बिहार के राजस्व को बढ़ाने के लिए अनौपचारिक तरीका ढूंढ निकला है।

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