ताइवान और भारत ने अपने रिश्ते को पहले से ज्यादा मजबूत करते हुए नए-नए समझौतों को अंजाम देना शुरू कर दिया है। ये फैसले न सिर्फ दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि आर्थिक स्थिति को बढ़िया करने के साथ-साथ भारत, चीन को ठेंगा भी दिखा रहा है। ताइवान के साथ भारत का औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में दोनों पक्षों के बीच व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संबंध बढ़े हैं। वर्तमान में, अनुमानित 2,800 भारतीय छात्र ताइवान में पढ़ रहे हैं। साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध भी पहले की अपेक्षा बेहतर होते जा रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2001 में 1.19 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2018 में लगभग 7.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया और भारत ताइवान का 14वां सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य और आयात का 18वां सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
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भारत में जल्द ही स्थापित होगा सेमीकंडक्टर प्लांट
वर्ष 2018 के अंत तक लगभग 106 ताइवानी कंपनियां भारत में काम कर रही थी, जिसमें सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, चिकित्सा उपकरण, ऑटोमोबाइल घटक, मशीनरी, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, इंजीनियरिंग और वित्तीय क्षेत्र में कुल 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश था। अब भारत और ताइवान ने एक मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू कर दी है और एक भारतीय शहर में सेमीकंडक्टर प्लांट की स्थापना होने की खबर भी सामने आई है, जो दोतरफा आर्थिक जुड़ाव को और विस्तारित करने के संकल्प को दर्शाता है। यदि सेमीकंडक्टर प्लांट बनाने का कदम सफल होता है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने उत्पादन केंद्र के बाद ताइवान द्वारा किसी विदेशी देश में यह केवल दूसरी ऐसी सुविधा होगी। क्योंकि ताइवान पहले ही अमेरिका में सेमीकंडक्टर प्लांट स्थापित कर चुका है।
दूसरी ओर भारत सरकार पहले ही सेमीकंडक्टर प्लांट के लिए कई साइटों का प्रस्ताव दे चुकी है। इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि ताइवान के प्रमुख सेमीकंडक्टर उत्पादकों में से एक ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) और यूनाइटेड माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन (UMC) जल्द ही इस मेगा प्रोजेक्ट को लागू कर सकती हैं। विश्व स्तर पर चिप के उत्पादन में ताइवान एक प्रमुख खिलाड़ी है। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, TSMC विश्व स्तर पर सभी अर्धचालकों का लगभग 50 प्रतिशत निर्माण करता है। ताइवान खुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है, लेकिन चीन उसे अपने क्षेत्र का हिस्सा बताता है।
चीन को ठेंगा दिखा रहा है भारत
भारत में इस सुविधा को स्थापित करने का कदम भारत में वाहन निर्माताओं और प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा चिप की बढ़ती मांग के बीच आया है, जब चिप की वैश्विक कमी है। सेमीकंडक्टर हब स्थापित करने का प्रस्ताव काफी हद तक भारत और ताइवान के बीच संबंधों के रणनीतिक महत्व से प्रेरित है, न कि इसके व्यावसायिक पहलू से, क्योंकि चीन को भारत सांकेतिक रूप से ठेंगा दिखा रहा है! एक अधिकारी ने बताया, “अमेरिका में सेमीकंडक्टर प्लांट दोनों पक्षों के बीच घनिष्ठ रणनीतिक संबंधों के प्रतिबिंब में स्थापित किया गया था। अब भारत के मामले में भी ऐसा ही होगा।” चीनी शत्रुता बढ़ने और ताइपे को अपने निरंतर समर्थन के लिए आश्वस्त करने के कारण अमेरिका ताइवान तक अपनी पहुंच बना रहा है। दूसरी ओर भारत भी इसी तर्ज पर काम कर रहा है।
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बताते चलें कि मोदी सरकार ने बीते बुधवार को भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन केंद्र बनाने के बड़े लक्ष्य के साथ सेमीकंडक्टर डिजाइन, निर्माण और प्रदर्शन निर्माण (फैब) इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए PLI के तहत 76,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन प्रदान करने की योजना का अनावरण किया था। बताया जा रहा है कि आर्थिक जुड़ाव का विस्तार करने की अपनी उत्सुकता के साथ भारत और ताइवान पहले ही FTA को मजबूत करने के साथ-साथ व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने हेतु एक द्विपक्षीय निवेश समझौते के लिए दो दौर की बातचीत कर चुके हैं।
व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और लोगों से लोगों के आदान-प्रदान के क्षेत्रों में ताइवान के साथ भारत अपने संबंधों को बढ़ावा देता रहा है। अब वह चीन को सांकेतिक रूप से अपने कूटनीतिक संबंधों की अहमियत बता रहा है। एक तो यह सरकार की आत्मनिर्भर भारत की योजना के लिए एक सकारात्मक कदम है, तो वहीं दूसरी ओर, यह चीन के लिए भी खतरनाक है, क्योंकि ताइवान से दोस्ती भारत को एक विशिष्ट लाभ देगी।