मोटो-स्पोर्ट्स के उद्योग में भारत को भरनी होगी एक नई उड़ान

जब कुछ नहीं बदलेंगे तो कुछ नहीं होगा!

मोटो स्पोर्ट्स भारत
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके मानव के मन में
ख़म ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते है पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगता है, पत्थर पानी बन जाता है

यह शब्द कहीं न कहीं भारत की अनंत आकांक्षाओं का भी प्रतीक चिन्ह हैं, जो एक उंची उड़ान भरने के लिए उद्यत हैं परन्तु या तो उन्हें पर्याप्त साधन नहीं मिलते या फिर उनका उचित उपयोग नहीं होता। भारत में खेलों की अपनी एक अलग महत्ता है। आज भारतीय खिलाड़ी विश्व पटल पर खेल के क्षेत्र में नए कीर्तिमान रच रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में खेल जगत में विकास के लिए बदलाव देखने को मिला है, जिसमें खेलो इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत आदि शामिल है। वहीं, फ़ॉर्मूला वन और मोटो स्पोर्ट्स के क्षेत्र में भी भारत के लिए अनंत अवसर उपलब्ध हैं परन्तु वह अभी तक इस क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में नहीं उभर सका है।

क्यों भारत में मोटो स्पोर्ट्स प्रभावशाली नहीं है?

हाल ही में, मोटो स्पोर्ट्स के सबसे चर्चित संस्करणों में से एक फ़ॉर्मूला वन कार रेसिंग का विश्व चैम्पियनशिप संपन्न हुआ है। इसमें रेड बुल हौंडा का प्रतिनिधित्व कर रहे Max Verstappen ने रोमांचक मुकाबले में चर्चित विश्व चैम्पियन लुइस हैमिल्टन को लगभग एक फोटो फिनिश के अंतर से परास्त किया। मर्सीडीज़ ने इसके विरुद्ध अपील की, परन्तु वह निरर्थक सिद्ध हुई। इसके साथ, इस वर्ष Max Verstappen फ़ॉर्मूला वन के नए विश्व चैम्पियन सिद्ध बन गए हैं। हालांकि,  टीम चैम्पियनशिप इस वर्ष मर्सिडीज़ के पास ही रहेगी। ऐसे में, कभी हमने सोचा है कि इतने विशाल मंच पर भारत ने झंडे क्यों नहीं गाड़े? ऐसा क्या कारण है कि भारत मोटो स्पोर्ट्स में उतना प्रभावशाली नहीं है, जितना यूरोप और काफी हद तक अमेरिका भी है?

क्या भारत एक पिछड़ा देश है? कदापि नहीं। क्या भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर निम्न स्तर का है? बिलकुल भी नहीं। तो फिर ऐसा क्या है कि भारत मोटो स्पोर्ट्स में एकदम पिछड़ा हुआ है? ऐसा क्या है कि जिस मंच पर माइकल शूमाकर जमकर धूम मचाता आया था, वहां आज तक एक भारतीय देश को गौरवान्वित नहीं कर पाया।

बंद पड़ा है फार्मूला वन रेसिंग ट्रैक

इसके पीछे कारण अनेक हैं परन्तु सबसे प्रमुख कारण है जिजीविषा। एक बहुत ही उचित कथन है – यदि कुछ नहीं बदलोगे, तो कुछ भी नहीं बदलेगा। क्या भारत के पास संसाधन नहीं है? ऐसा भी नहीं है। भारत के पास उचित इंफ्रास्ट्रक्चर है, धनबल है, प्रतिभा है, बस इच्छाशक्ति की बहुत भारी कमी है। भारत जब ओलंपिक में मेडल जीत रहा है, तो मोटो स्पोर्ट्स से भारत इतना दूर-दूर क्यों है?

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ऐसा भी नहीं है कि भारत ने कभी प्रयास भी नहीं किया। 2011 में भारत ने इंडियन Grand Prix का आयोजन किया था, जिसके लिए गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय रेसिंग सर्किट का निर्माण किया गया था। 2013 तक भारत में सफलतापूर्वक तीन रेस आयोजित हुए परन्तु अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले समाजवादी पार्टी ने परिस्थितियां ऐसी पैदा कर दी कि 2015 में प्रस्तावित इंडियन Grand Prix कभी हुई ही नहीं और आज भी गौतम बुद्ध सर्किट लगभग बंद पड़ा है।

मोटो स्पोर्ट्स के बड़े ख़िलाड़ी हैं भारतीय रेसर जेहान दारूवाला

इसके अलावा हमारे देश में ऐसे भी योग्य खिलाड़ी हैं, जिन्हें अगर उचित प्रशिक्षण दिया जाए, तो वे भारत को वास्तव में एक नई उड़ान दे सकते हैं, जैसे जेहान दारूवाला। केवल इक्कीस वर्ष की आयु में ही दारुवाला को भारत की अगली ‘F1’ आशा के रूप में देखा जा रहा है। इन्हें रेड बुल रेसिंग द्वारा एक जूनियर टीम ड्राइवर के रूप में चुना गया है। वर्तमान में जेहान कार्लिन रेसिंग के लिए FIA फॉर्मूला 2 की श्रृंखला में प्रतिस्पर्धा कर रहें है, जिसमें रेड बुल के दो रेसिंग जूनियर ड्राइवर शामिल हैं। बता दें कि इस श्रृंखला को भविष्य के फॉर्मूला 1 सितारों के लिए अंतिम प्रशिक्षण मैदान के रूप में जाना जाता है, जो कि सहायक श्रृंखला के रूप में F1 ग्रांड प्रिक्स के साथ आयोजित की जाती है।

मोटो स्पोर्ट्स से भारतीय अर्थव्यवस्था होगा लाभ

इसी भांति हीरो मोटोकॉर्प वो एकमात्र भारतीय कंपनी है, जो अंतरराष्ट्रीय बाइक रैली में भाग लेती है और जिनके प्रमुख राइडर हैं सी एस संतोष, जिन्होंने बाइक रैली में भारत के लिए अपनी अलग छाप भी छोड़ी है। ये नारायण कार्तिकेयन की भांति सिर्फ नाम के खिलाड़ी नहीं हैं।

ऐसे में, यह कहना उचित होगा कि मोटो स्पोर्ट्स काफी आकर्षक और निवेश से परिपूर्ण है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को भी एक नया संबल दे सकता है। यदि इसमें सही निवेश और सही लोगों को बढ़ावा दिया जाए, तो भारत में मोटो स्पोर्ट्स का वैसा ही कायाकल्प होगा, जैसा 1983 विश्व कप के पश्चात भारत में क्रिकेट के साथ हुआ। बस, इच्छाशक्ति को सुदृढ़ करने की देर है।

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