भारत में कुपोषण के विरुद्ध शुरू हुई निर्णायक लड़ाई, सोनिया के “2000 कैलोरी” वाले मानदंड से मुक्त हो रहा है भारत

मोदी सरकार विज्ञान की सहायता से गेहूं और चावल में बढ़ा रही है पोषक तत्व!

फोर्टिफाइड चावल

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मोदी सरकार नई योजना लेकर आई है, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जो अनाज बांटा जाता है उसे फोर्टिफाइड किया जा रहा है। सरकार की योजनाओं में पहले से नमक, खाद्य तेल, दूध और गेहूं को फोर्टिफाइड करके लोगों को उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन इसके बाद भी भारत अपनी पोषण की आवश्यकता पूरी नहीं कर पा रहा था। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि साल 2024 तक संपूर्ण भारत को फोर्टिफाइड चावल उपलब्ध करवा दिया जाएगा। सरकार इस योजना पर जोर-शोर से काम कर रही है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं अन्य माध्यमों से लोगों के बीच फोर्टिफाइड चावल भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

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भारत का हर तीसरा बच्चा है कुपोषण का शिकार

मालन्यूट्रिशन या कहें कि खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी, एक ऐसी समस्या है जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को भीतर ही भीतर क्षीण किया है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि अदृश्य भुखमरी भारतीयों में एनीमिया जैसी बीमारी का कारण बन रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे द्वारा जारी 2015-16 की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में हर दूसरी महिला एनीमिया से ग्रस्त है। एनीमिया विवाहित और अविवाहित दोनों महिलाओं में है।

भारत का हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। लोगों के पास पेटभर खाना है लेकिन भोजन में आवश्यक पोषक तत्व नहीं है। UPA सरकार ने भारत में गरीबी तय करने के लिए आर्थिक आधार पर मानक तैयार किए थे। UPA सरकार ने 20 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा से ऊपर माना था। जिसके बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मानक को बदला गया और प्रतिदिन 2000 कैलोरी से अधिक उपभोग करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के ऊपर रखा गया, किन्तु यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका।

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देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है अप्रत्यक्ष असर

बताते चलें कि साल 2014 के बाद मोदी सरकार के समक्ष यह एक बड़ी समस्या थी कि भारत का हर पांचवां बच्चा अर्थात् देश की भावी पीढ़ी की 20% आबादी पोषक तत्वों की कमी के कारण अपने शारीरिक विकास को सदैव के लिए खो रही थी। देश की 70% आबादी 50% से कम आवश्यक पोषक तत्वों का सेवन कर रही थी। पोषक तत्वों की कमी शरीर में ऊर्जा की कमी के रूप में परिणत होती है और बीमारियों को न्योता देती है। एनीमिया का उदाहरण लें, तो यह बीमारी शरीर में मौजूद हिमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करने की शक्ति को कम करती है। कमजोरी और थकावट का अप्रत्यक्ष असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार एनीमिया के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को हर वर्ष जीडीपी के 1.18 प्रतिशत के बराबर नुकसान झेलना पड़ता है। यह राशि लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये के बराबर है। एक रिपोर्ट बताती है कि यदि भारत सरकार अपने नागरिकों के पोषण पर $1 खर्च करती है, तो अर्थव्यवस्था को भविष्य में 34.1 से 38.6 डॉलर का लाभ हो सकता है।

भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आते ही चावल में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स को बढ़ाने पर जोर दिया। 15 अगस्त 2021 के अवसर पर देश संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत फोर्टिफाइड राइस के वितरण का ऐलान किया था। अब भारतीय खाद्य निगम फोर्टिफाइड राइस के लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडियो से प्रमाणित कंपनियों को टेंडर देती है। वर्तमान में चावल में एक फीसदी फोर्टिफाइड राइस मिलाया जाता है। उदाहरण के लिए 50 किलो में आधा किलो फोर्टिफाइड राइस होना चाहिए। इसकी पहचान के लिए राइस मिल बोरे पर एफ-प्लस का मार्का भी लगाती है।

पूर्ववर्ती सरकारों ने नहीं किया था कोई ठोस प्रयास

गौरतलब है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने मानक तो तय कर दिए थे, लेकिन अदृश्य भुखमरी की समस्या को सुलझाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया था। मिड-डे मील जैसी योजना तो शुरू हुई, लेकिन यह योजना सरकारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। जो भोजन बच्चों को उपलब्ध हुआ, वह भी पोषक तत्वों से मुक्त था। वहीं, दूसरी ओर मोदी सरकार फोर्टिफाइड चावल के माध्यम से विटामिन A, B1, B12 फॉलिक एसिड, आयरन और जिंक जैसे आवश्यक पोषक तत्व गरीब से गरीब भारतीय तक पहुंचा रही है।

फोर्टिफाइड चावल प्राकृतिक विधि से खाने के साथ ही पोषक तत्वों को शरीर में भेजता है, इसलिए इसके साइड इफेक्ट नहीं हैं। फोर्टिफाइड चावल पर पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है, अथवा चावल के 200 दानों में एक दाने के आकार के बराबर न्यूट्रिएंट्स क्रिस्टल मिला दिया जाता है। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में ऐसी खबरें सामने आती रही हैं कि कुछ लोग इन क्रिस्टल को नकली चावल समझकर फेंक देते हैं। इसलिए सरकार द्वारा आवश्यक जनजागृति पर भी जोर दिए जाने की आवश्यकता है।

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