भारत उर्वरक को एक रणनीतिक वस्तु के तौर पर देख रहा है और आक्रामकता से इसका उत्पादन भी बढ़ा रहा है

महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो चला है भारत!

Mansukh

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भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि के लिए पानी के बाद सबसे आवश्यक उर्वरक होता है। महाशक्ति बनने की अपनी चाहत में भारत को हर मायने में आत्मनिभर होने की जरूरत है। यह अवधारणा तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जब यह 1.4 अरब लोगों को खिलाने की बात आती है। इस बात को समझते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में उर्वरकों के उत्पादन में तेजी लाना शुरू कर दिया है। अगले दशक में उर्वरकों की वैश्विक कीमत बढ़ने के साथ, केंद्र सरकार ने हमारे किसानों को इसके प्रभावों से बचाने का फैसला किया है। जल्द ही हमारे किसान दूसरे देशों से आयातित उर्वरकों पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि वे अपनी फसलों को पोषक तत्व प्रदान करने हेतु भारत में निर्मित उर्वरक का उपयोग करेंगे।

फॉस्फेटिक और पोटाश उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने मौजूदा पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) नीति में बड़े बदलाव किए हैं। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि “P&K उर्वरकों के उत्पादन के लिए घरेलू उद्योग को समर्थन जारी रखने और देश में P&K उर्वरकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वर्तमान NBS नीति में अतिरिक्त प्रावधानों का प्रस्ताव दिया गया है।”

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भारत में जमा है कुल 30 लाख टन फॉस्फेट

मोदी सरकार के इस निर्णय से इन उर्वरकों की घरेलू उत्पादन क्षमता का उपयोग करने और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। वर्तमान में, भारत में कुल 30 लाख टन फॉस्फेट जमा है। यह राजस्थान के साथ-साथ प्रायद्विपीय भारत के मध्य भाग, हीरापुर (मध्य प्रदेश), ललितपुर (उत्तर प्रदेश), मसूरी सिंकलाइन (उत्तराखंड) और कडप्पा बेसिन (आंध्र प्रदेश) में उपलब्ध है। केंद्रीय मंत्री मांडविया ने इन सभी के उत्पादन को व्यावसायिक रूप से बढ़ाने के आदेश जारी किए हैं।

NBS नीति भारत में उर्वरकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करती है। आम धारणा के विपरीत, यह भारत में बेचे जाने वाले उर्वरकों की कीमत तय नहीं करता है। उर्वरकों की कीमत बाजार पर छोड़ दी जाती हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों की गतिशीलता के आधार पर उर्वरक कंपनियां कीमत तय करती हैं, जिन पर हमारे किसान उनसे उर्वरक खरीदते हैं।

हालांकि, अधिकांश कंपनियां लाभ के उद्देश्य से चलती हैं, इसलिए सरकार कीमत तय करने के अंतिम चरणों के दौरान हस्तक्षेप करती है। सरकार के निगरानी हस्तक्षेप से यह सुनिश्चित होता है कि उर्वरकों की कीमत किसानों पर अतिरिक्त बोझ न बने। इसके अलावा, कंपनियों द्वारा उर्वरक की कीमत को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, सरकार सब्सिडी के माध्यम से मांग पक्ष के दायित्वों को पूरा करती है। किसानों को एक निश्चित राशि की वित्तीय सहायता प्रदान कर, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी किसान अपने खेत के लिए पोषक तत्व खरीदने से न चूके और सभी कम कीमत में आसानी से कृषि के लिए उर्वरक खरीद सकें।

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लगभग 90 प्रतिशत उर्वरक का आयात करता है भारत

वर्तमान में, भारत अपने उर्वरकों की जरूरतों का लगभग 90 प्रतिशत आयात करता है। फॉस्फेटिक और पोटैशियम (P&K) उर्वरकों के मामले में, देश ने वर्ष 2018 के नवंबर तक 52.2 लाख टन डायमोनियम फॉस्फेट (DAP), 4.04 लाख टन नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटेशियम (NPK) और 27.53 लाख टन म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) का आयात किया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत ने 42.17 लाख टन DAP, 4.99 लाख टन NPK और 47.36 लाख टन MOP का आयात किया।

गौरतलब है कि भारत को अपना घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए भारी निवेश की जरूरत है। यही कारण है कि सरकार न केवल उपर्युक्त सुविधाओं में उत्पादन बढ़ाएगी, बल्कि राजस्थान के सतीपुरा, भरूसारी और लखासर में संभावित पोटाश अयस्क संसाधनों की खोज में भी तेजी लाएगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में और अधिक खोज किए जाने हैं।

बताते चलें कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की एक अंतरराष्ट्रीय धारणा होने के बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि के योगदान में दशकों से गिरावट आई है। यह एक अच्छा संकेत है, क्योंकि इसका मतलब है कि भारत के पास अपनी आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन है, जिसके परिणामस्वरूप विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों का विकास हुआ है। अपने ही देश में उर्वरकों के उत्पादन से भारत अपने कृषि-निर्यात को भी बढ़ाने में सक्षम होगा। महाशक्ति बनने का पहला रोडमैप पहले की Food-Basket बनना है। उर्वरकों का उत्पादन बढ़ाना इस दिशा में एक बड़ा कदम है।

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