JFR Jacob – भारत के वो शूरवीर जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के पराजय की पटकथा रची

ऐसे वीर बार-बार जन्म नहीं लेते!

Lt. Gen. JFR Jacob

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सैनिक कौन है? आपको यह प्रश्न अटपटा लगेगा, हो सकता है इस लेख से युक्तिसंगत भी न लगे। लेकिन इस लेख को समझने के लिए यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि आखिर सैनिक कौन है? हम सभी की आम अवधारणा है कि ‘सैनिक’ एक सरकारी नौकरी है, जिसमें भारतीय सेना द्वारा सैनिक को राष्ट्र रक्षण का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। यह एक अपूर्ण परिभाषा है। पर चिंतित मत होइए, आज हम आपको उदाहरण के माध्यम से एक सच्चे सिपाही की परिभाषा समझाएंगे। वो उदाहरण हैं- Lt. Gen. Jack Farj Rafael (JFR) Jacob भारत मां के इस सच्चे सपूत का व्यक्तित्व इतना वृहद और विराट है कि उनकी समुचित व्याख्या को पृष्ठ कम पड़ें, पर उनके असाधारण जीवन के घटनाओं से हम एक सच्चे सैनिक की परिभाषा अवश्य सीख सकते हैं।

1971 का युद्ध

पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त हो गए थे। शेख मुजीबुर्र रहमान के नेतृत्व में स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश का स्वप्न देखा गया। पर, पाकिस्तान द्वारा शेख मुजीबुर्र रहमान को कैद कर जनरल नियाजी के नेतृत्व “ऑपरेशन सर्चलाइट” प्रारम्भ किया गया। सेना द्वारा किया गया यह ऑपरेशन अब तक का सबसे बड़ा जनसंहार था। 30 लाख लोगों की नृशंस हत्या कर दी गयी, जबकि उनके घर की स्त्रियों का बलात्कार कर उन्हें मार दिया गया। पाकिस्तानी सेना के लिए यह जनसंहार मनोरंजन और यौन-क्षुधापूर्ति का साधन बन गया। जब रक्षक भक्षक बन गए, तब भारतीय खुफिया तंत्र ने आम जन को सशक्त कर उन्हें मुक्ति के उपाय सुझाए। जिससे बौखलाए पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा से प्रत्यक्ष लड़ाई शुरू की और मुंह की खाई।

पर, इस युद्ध में एक सैनिक ने ऐसा पराक्रम दिखाया, जिसने न सिर्फ भारतीय सेना के गौरव को शिखर पर स्थापित किया, बल्कि पाकिस्तानी सेना के बचे-खुचे मान को रसातल में भी पहुंचा दिया। वो सैन्य अधिकारी थे- Gen. JFR Jacob उर्फ जनरल जैकब। पाक सेना हार तो गयी थी, लेकिन अभी उसका अहंकार चूर-चूर होना बाकी था। वैश्विक बिरादरी ने तय किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों के तहत दोनों देश सीजफायर करेंगे। युद्ध हार चुका पाकिस्तान इस निर्णय से अत्यंत खुश था, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के सीजफायर नियमों के कारण उसे अपनी हार छिपाने और बांग्लादेश की मुक्ति को उलझाने का अवसर मिल जाता, जैसा उसने 1948 और 1965 के युद्ध में किया था।

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“उपहार में दूंगा बांग्लादेश

उस समय Gen. JFR Jacob भारतीय सेना के पूर्वी कमान के सेना प्रमुख और मानेक शॉ भारतीय सेना के प्रमुख थे। मानेक शॉ का मत था कि भारतीय सेना को पहले चटगांव और खुलना को जीतना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक भूमि स्वतंत्र बांग्ला सरकार को सौंपी जा सके। पर, Gen. JFR Jacob की योजना कुछ और ही थी। मानेक शॉ ने जब उन्हें फोन कर के चटगांव और खुलना को कब्जे में लेने की योजना बताई, तब जनरल जैकब ने उन्हें समूचे बांग्लादेश को उपहार स्वरूप सौंपने का वचन दिया।

भारतीय सेना के इस उत्कृष्ट सेनाधिकारी का आत्मविश्वास देखिये। उन्होंने उसी समय मानेक शॉ को पाकिस्तानी सेना से “गार्ड ऑफ ऑनर” लेने का आग्रह किया। मानेक शॉ हंस पड़ें, क्योंकि उन्हें पता था कि 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण कराना इतना आसान नहीं है। अकेले 30,000 सैनिक ढाका की रक्षा में तैनात थे, लेकिन फिर भी जनरल अरोड़ा को भेज दिया गया। उसके बाद शुरू हुआ मनोवैज्ञानिक युद्ध। Gen. JFR Jacob सीधे पाकिस्तानी सेना के कैंप में पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्होंने जिस स्पष्टता, निर्भीकता, आत्मविश्वास और साहस से बात की उसने पाकिस्तानियों को विश्वास दिला दिया की ढाका से 30 km दूर मौजूद मात्र 4,000 भारतीय सैनिक ही 30,000 पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ेंगे।

अपने शब्दों से पाक सेनाधिकारियों को डराया

Gen. JFR Jacob ने न सिर्फ अपने तर्क शक्ति से जनरल नियाजी को उनके पराजय की निश्चित तारीख बता दी, बल्कि उनके सैन्य साजो-समान, रणनीति और उनके पोस्ट के बारे में भी पूर्ण जानकारी दे दी। नियाजी और पूरी पाकिस्तानी सेना इससे आश्चर्य चकित थी। जनरल जैकब ने नियाजी को समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए 30 मिनट का समय दिया और हस्ताक्षर करने पर जेनेवा convention के अनुपालन का वचन दिया।

उनके इस खौफ ने न सिर्फ विश्व के पहले पब्लिक सैन्य आत्म समर्पण का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि सुनिश्चित किया कि पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना को “गार्ड ऑफ ऑनर” देगी। पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया। विश्व युद्ध के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था। इस रणनीति और शौर्य के कारण यह घटना और Gen. JFR Jacob भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गए।

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इजरायल ने दिया “हॉल ऑफ ऑनर”

पाकिस्तान के नेशनल डिफेंस कॉलेज ने एक अध्ययन में लिखा था कि जीत का श्रेय वास्तव में पूर्वी कमान के जनरल जैकब की सावधानीपूर्वक तैयारियों और उनके कोर कमांडरों द्वारा कार्यान्वयन को जाता है। Gen. JFR Jacob 1978 में सेना से सेवानिवृत्त हुए और गोवा के राज्यपाल और फिर पंजाब के राज्यपाल के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने सेना में अपने अनुभव पर किताबें भी लिखी हैं, जिसका नाम है- Surrender at Dacca: Birth of a Nation और An Odyssey in War and Peace: An Autobiography । अपने जीवन के उत्तरार्ध के दौरान जैकब नई दिल्ली में बस गए थे।

Gen. JFR Jacob के सैन्य जीवन की इस ऐतिहासिक घटना से आप समझ गए होंगे कि आखिर सैनिक कौन हैं, या सैनिक शब्द का मतलब क्या है? पारंपरिक यहूदी परिवार में जन्में जनरल जैकब 18 वर्ष की आयु में ही आज़ादी पूर्व की ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए। उनका परिवार बगदादी मूल का यहूदी था, जो वहां से पलायन कर भारत के कोलकाता में बस गया था। उनके पिता ने उनके सैनिक बनने का विरोध किया, पर वो अंततः झुक गए।

जनरल जैकब ने खाड़ी देशों से लेकर कई जगह युद्ध लड़ा और अपना शौर्य दिखाया। इजरायल की सरकार ने उन्हें ना सिर्फ “हॉल ऑफ ऑनर” से सम्मानित किया, बल्कि उन्हें अपने यहां बसने का न्योता भी दिया। इस पर Gen. JFR Jacob का जवाब था- “वो बात ठीक है कि मैं एक यहूदी हूं, पर मै जीऊंगा भी एक भारतीय की तरह और मरूंगा भी एक भारतीय की तरह।“ यही एक सैनिक की परिभाषा है!

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