महामना मदन मोहन मालवीय: जिन्होंने सनातनी धरोहर को सुरक्षित करने हेतु एक अभेद्य अकादमिक किले की स्थापना की

महामना ने 'हिंदू राष्ट्रवाद' की संस्कृति को आगे बढ़ाया

काशी हिंदू विश्वविद्यालय

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भारत रत्न महामना पं० मदन मोहन मालवीय आधुनिक भारत के इतिहास का ऐसा प्रसिद्ध नाम है, जिनके कारण भारत की कई पीढ़ियों का जीवनोद्धार हुआ है। महामना ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में शिक्षा के ऐसे केंद्र की स्थापना की, जहां से लाखों की संख्या में विद्यार्थी पढ़कर अपने जीवन में आगे बढ़े हैं। हमारे पड़ोसी देशों के अतिरिक्त खाड़ी देशों में ओमान से लेकर, अफ्रीका महाद्वीप और US, UK सहित विश्व के हर कोने में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों की उपस्थिति है।

भारत की बात करें, तो भारत की प्रशासनिक सेवा से लेकर न्यायालय तक सभी क्षेत्रों में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का दबदबा है। इसके अतिरिक्त काशी हिंदू विश्वविद्यालय बनारस के लोगों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है। वाराणसी के लंका स्थित इस विश्वविद्यालय के कारण आसपास के क्षेत्रों में लोगों को रोजगार मिलता है। यह कहा जा सकता है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की उपस्थिति ने काशी के महत्व को उतना ही बढ़ाया है, जितना पौराणिक मान्यताओं के कारण काशी का महत्व है।

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हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति को बढ़ाया आगे

किंतु काशी हिंदू विश्वविद्यालय महामना मालवीय की दिव्यशक्ति का एक हिस्सा है। उनका व्यक्तित्व विश्वविद्यालय की सीमा से भी बड़ा है। महामना का जन्म 25 दिसंबर 1861, को प्रयागराज में हुआ था। उनके परदादा पं० प्रेमधर श्रीवास्तव मूलतः मालवा क्षेत्र के थे और वहां से आकर प्रयागराज में बसे थे। मालवा से आने के कारण महामना के पूर्वजों ने ‛मालवीय’ नाम धारण किया। धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला जैसे संस्कृतनिष्ठ शिक्षा देने वाले विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने स्कूली शिक्षा जिला स्कूल से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और BA की पढ़ाई की। महामना MA में प्रवेश लेकर संस्कृत की पढ़ाई करना चाहते थे, किंतु घरवालों के दबाव में उन्होंने गवर्नमेंट स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य शुरू कर दिया।

कांग्रेस के निर्माताओं में विख्यात महामना ने उसके द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अन्तिम सांस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया। पार्टी के प्रथम उत्थान में नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीय ही थे, जो गांधी-युग की कांग्रेस में हिन्दू- मुसलमान एवं उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में प्रयत्नशील रहें।

जब वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हुए, उस समय कांग्रेस पर ऐसे भारतीयों का प्रभाव अधिक था, जो पश्चिमी सभ्यता से अत्यधिक प्रभावित थे। तब कांग्रेस के नेता स्वतंत्रता की बात नहीं सोचते थे, बल्कि अंग्रेजी शासन के अधीन रहते हुए ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था जैसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे। महामना ने पाश्चात्यवादी नेताओं के बीच हिंदू राष्ट्रवाद की संस्कृति को आगे बढ़ाया।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना

वर्ष 1905 के बाद लगातार तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमान के बीच टकराव को और ज्यादा बढ़ाने के लिए बंगाल विभाजन किया। बंगाल विभाजन ने मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया और उसी समय मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस में फूट पड़ गई और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, अरबिंद घोष जैसे उग्रवादी नेताओं को कांग्रेस के बाहर कर दिया गया था। ऐसे में हिंदुत्व की बात रखने के लिए कोई राजनीतिक मंच नहीं बचा था। वर्ष 1915 में अंततः हिंदुओं की राजनीतिक आवाज बनने के लिए अखिल भारतीय हिंदू महासभा का गठन हुआ। अखिल भारतीय हिंदू महासभा भी मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित संगठन है, जिसमें सम्मिलित होकर वीर सावरकर ने हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाया।

वर्ष 1934 में जब अंबेडकर दलितों के अधिकारों की मांग को लेकर कांग्रेस से अलग रास्ता अपना रहे थे और दलितों के लिए मुसलमानों की तरह ही पृथक निर्वाचन की मांग उठा दी थी, तब महात्मा गांधी ने अंबेडकर की मांग के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया था। उस समय अंबेडकर को समझा कर गांधी और अंबेडकर के बीच पूना समझौता कराने में तथा दलितों को हिंदू समाज से पूरी तरह कटने से बचाने में सबसे बड़ी भूमिका महामना मदन मोहन मालवीय ने निभाई थी।

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काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की कहानी

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है। वर्ष 1911 में एनी बेसेंट द्वारा स्थापित सेंट्रल हिंदू स्कूल जिसे सेंट्रल हिंदू कॉलेज भी कहा जाता था, उसके प्रांगण में बैठकर महामना ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की योजना का खाका बनाया था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए महामना ने वाराणसी स्थित लंका क्षेत्र के आसपास के गांवों में भूमि अधिग्रहण का दुष्कर कार्य आरंभ किया।

1300 एकड़ में फैले विश्वविद्यालय के लिए बड़ी मात्रा में काशी नरेश श्री प्रभु नारायण सिंह द्वारा भूमि दान दी गई थी। किंतु महामना ने गांव वालों से काफी ज्यादा मात्रा में भूमि भी खरीदी थी। बदले में स्थानीय लोगों ने महामना के समक्ष विश्वविद्यालय में अपने बच्चों के दाखिले और रोजगार का अनुरोध रखा था। महामना ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया, यही कारण है कि आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आसपास की दुकानों में ईश्वर की मूर्ति के साथ महामना की तस्वीर लगी मिल जाती है।

जब महामना के चरणों में गिरा हैदराबाद का नवाब

एक मजेदार किस्सा हैदराबाद के नवाब का है। जब महामना हैदराबाद के नवाब के पास विश्वविद्यालय के लिए चंदा मांगने गए, तो नवाब ने उनसे विश्वविद्यालय के नाम से हिंदू शब्द हटाने की बात कही थी। महामना ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब नवाब ने महामना का अपमान करते हुए उन्हें दान के रूप में अपनी जूती दे दी। नवाब हिंदू पहचान को अपनी जूती के बराबर समझता था। महामना ने उसकी जूती का दान स्वीकार कर लिया और हैदराबाद के चारमीनार पर उसकी जूती की नीलामी शुरू कर दी।

दूर-दूर से लोग नवाब की जूती देखने आने लगे और यह चर्चा फैल गई कि नवाब के पास इतना भी धन नहीं कि वह दान दे सके। अपना मजाक बनता देख नवाब दौड़े-दौड़े महामना के चरणों में आया और उन्हें नीलामी रोकने का अनुरोध किया है। दान में दी हुई जूती वापस ली और बदले में नवाब ने BHU के पास हैदराबाद कॉलोनी बसाई। आज भी उस इलाके का नाम हैदराबाद ही है, जो महामना की सूझबूझ और नवाब के अपमान का प्रतीक है।

2015 में किए गए भारत रत्न से सम्मानित

भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पंडित मालवीय को भारत रत्न से सम्मानित कर, उनके प्रति पूरे भारत की ओर से कृतज्ञता प्रकट की थी। हिंदू संस्कृति के संरक्षण में महामना का अमूल्य योगदान था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में एक ऐसे संस्थान की स्थापना की, जो परंपरागत वैदिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक विज्ञान की पढ़ाई भी कराता है। एक ओर इस विश्वविद्यालय ने काशी की सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर रखा, वहीं दूसरी ओर मेडिसिन और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी इस विश्वविद्यालय ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। महामना ने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वैदिक वास्तुशास्त्र का प्रयोग किया। संभवतः यही कारण है कि आज भी यह विश्वविद्यालय असीमित ऊर्जा का केंद्र है और आप इस ऊर्जा को विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करते ही अनुभव कर पाएंगे। सम्भवतः यह ऊर्जा ही महामना की शक्ति है, उनके आत्मबल का प्रत्यक्षीकरण है!

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