महाराजा विक्रमादित्य का जीवन परिचय, इतिहास और गौरव कथा

महाराजा विक्रमादित्य

महाराजा विक्रमादित्य का संक्षिप्त जीवन परिचय 

महाराजा विक्रमादित्य भारत देश के महान शासकों में से एक थे. उन्हें एक आदर्श राजा रूप में देखा जाता है. इनके पराक्रम के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं जिन्हें सुनकर लोगों को हौसला बुलंद होता है. राजा विक्रमादित्य ने अपनी बुद्धि, अपने पराक्रम, अपने जूनून से आर्यावर्त के इतिहास में अपना नाम अमर किया है. इनके पराक्रम की सैकड़ों कहानिया हैं. इन कहानियों के अलावा में दो और रोचक प्रसंग हैं बैताल पच्चीसी और सिंघासन बत्तीसी है.

इस कहानियों में कई अलौकिक प्रसंग देखने मिलते हैं. इन कहानियों का उद्देश्य जीवन में सफलता और सच्चाई का मार्ग ढूंढना है. बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि वह उज्जैन के एक महान शासकों में से एक रह चुके हैं. इनकी वीरता की वजह से इन्हें शाकरी की उपाधि से भी सन्मानित किया गया.

वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि महाराजा विक्रमादित्य केवल एक कल्पना हैं. महाराजा विक्रमादित्य की जन्म तारीख को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं मिलता. अलग अलग इतिहासकार अलग अलग अटकलें लगाते रहे हैं. लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि इनका जन्म 102 ई पू के नज़दीक ही हुआ था.

संक्षिप्त इतिहास

एक जैन साधू के अनुसार शक शासक ने युद्ध कर कुछ समय के बाद गर्दाभिल्ला को एक जंगल में छोड़ दिया गया, जहाँ पर वह जंगली जानवरों का शिकार हो गया. कहा जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य गर्दाभिल्ला के पुत्र थे. अपने पिता के साथ हुए दुर्व्यवहार को देखते हुए महाराजा विक्रमादित्य ने शक शासक से बदला लेने की ठानी.

इधर शक शासकों को अपनी शक्ति का अंदाजा हो गया था. वो उत्तरी- पश्चिमी भारत में अपना राज्य फैलाने लगे और हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगे थे. शक शासकों की क्रूरता बढती गयी. लगभग सन 78 के नज़दीक महाराजा विक्रमादित्य ने शक शासकों को युद्ध में पराजित कर दिया जिससे विक्रमी संवत की शुरुआत हुई.

आगे चलकर यह एक वीर महाराजा बने. ऐसा कहा जाता है कि इनकी पांच पत्नियां थीं जिनके नाम पद्मिनी, चेल्ल, मदनलेखा, चिल्ल्हदेवी और मलयवती थीं. साथ ही साथ इनके दो पुत्र और दो पुत्रियां भी थीं. इनके बारे में ज़्यादा जानकारी हमें भविष्य पुराण और स्कन्द पुराण में मिलती है. अरब के प्राचीन साहित्य में भी आप इनके बारे में जानकारी टटोल सकते हैं.

बृहत्कथा

बृहत्कथा की रचना लगभग दसवीं से बारवीं सदी के दौरान की गयी थी. इसमें महाराजा विक्रमादित्य के कई किस्से शामिल हैं. प्रथम में इसमें विक्रमादित्य और परिष्ठाना का ज़िक्र किया गया है. इस ग्रन्थ में राजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन की जगह पाटलिपुत्र बताई गयी है. वहीं एक कथा के अनुसार विक्रमादित्य बहुत ही न्याय पसंद व्यक्ति थे. इस न्यायप्रियता को देखते हुए इंद्रदेव ने अपनी न्याय प्रणाली के लिए राय लेने के लिए राजा विक्रमादित्य को स्वर्ग में बुलाया.

राजा इंद्र ने उन्हें सभा में भेजा जहाँ पर नृत्य प्रतियोगिता हो रही थी. जहां दो अप्सराएं थी. राजा इंद्र ने विक्रमादित्य से पूछा कि इनमें से कौन बेहतर है? तो इसका पता लगाने के लिए उन्होने एक तरकीब सूझी. महाराजा विक्रमादित्य ने दोनों अप्सराओं के हाथ में फूल दिया और उसपर एक बिच्छू रखा . विक्रमादित्य ने अप्सराओं को नाचने के लिए कहा और साथ ही नृत्य के दौरान फूल को ऐसे ही खड़ा रखने के लिए कहा.

अब जैसे ही रम्भा ने नृत्य शुरू किया तो उसे बिच्छू ने काट लिया जिसके कारण उसने फूल फेंक दिया और नाचना बंद कर दिया. वहीं दूसरी और जब उर्वशी ने नाचना शुरू किया तब फूल खड़ा ही रहा और बिच्छू बिना कुछ किये सो गया. इस पर विक्रमादित्य ने कहा कि उर्वशी ही बेहतर है. महाराजा विक्रमादित्य की इस बुद्धि को देखकर इंद्र देव बहुत ही आश्चर्यचकित और प्रसन्न हुए. इस बात से खुश होकर इंद्र देव ने विक्रमादित्य को 32 बोलने वाली मूर्तियां भेंट करीं जिनके अपने अपने नाम भी थे.

महाराजा विक्रमादित्य के नव रत्न

प्राचीन समय में नौ रत्नों को रखने की परंपरा थी जिसे अकबर द्वारा भी अपनाया गया था. महाराजा विक्रमादित्य के नौ रत्न इस प्रकार थे:-
बेताल भट्ट ,कालिदास ,शंकु ,अमरसिंह ,वररुचि , क्षपणक , धन्वंतरि , वरामिहिर, घटकपर्रर

महाराजा विक्रमादित्य की गौरव कहानियां

बेताल पच्चीसी

इस कहानी में एक साधु राजा विक्रमादित्य को बिना कोई शब्द कहे एक बेताल जो कि पेड़ पर रहता है को लाने के लिए कहता है. विक्रमादित्य उस बेताल को ढूंढ लेते हैं. जब वह उसे ला रहें होते हैं तो रास्ते में बेताल विक्रमादित्य को हर बार एक कहानी सुनाता है और कहानी के दौरान एक न्यायपूर्ण सवाल बीच पूछता है. और बेताल विक्रमादित्य को श्राप भी देता है कि अगर जानते हुए भी उसने जवाब नहीं दिया तो उसका सर फट जायेगा. इस तरह ना चाहते हुए भी विक्रमादित्य को बेताल के सवालों का जवाब देना पड़ता है. अंत में एक भी शब्द न बोलने का प्रण टूट जाता है और बेताल वापिस पेड़ पर रहने चला जाता है. इस तरह से उसमें पच्चीस कहानियां मौजूद हैं.

सिंहासन बत्तीसी

इसी प्रकार से सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस कहानियां मौजूद हैं जिसमें महाराजा विक्रमादित्य द्वारा राज्य जीतने की कहानी शामिल है. इसमें महाराजा विक्रमादित्य अपना राज्य हार जाते हैं जिसके बाद उनकी 32 मूर्तियां जो राजा इंद्र देव ने उन्हें भेंट की थीं राजा भोज को कहानियां सुनाती हैं और एक सवाल पूछती हैं. ऐसे वह राजा भोज को सिंहासन पर बैठने से रोकती हैं.

ऐसा माना जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य कलियुग के आरम्भ में कैलाश की ओर से पृथ्वी पर आये थे. उन्होंने महान साधुओं का एक दल बनाया जो पुराण और उप पुराण का पाठ किया करते थे. इन साधुओं में गोरखनाथ, भर्तृहरि, लोमहर्सन, सौनाका आदि प्रमुख थे. इस तरह न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य ने अपने पराक्रम से लोगों की रक्षा भी की और साथ ही सदा धर्म स्थापना के कार्य में लगे रहे.

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