दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को सुल्ताना बेगम द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें इस महिला ने लाल किले पर अपना दावा करते हुए कोर्ट से कब्जा दिलाने की मांग की थी। याचिका में सुल्ताना बेगम ने स्वयं को अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा बताया था और इस आधार पर लाल किले पर दावा किया था। याचिका में आरोप लगाया गया कि उनकी संपत्ति को ब्रिटिश प्रशासन द्वारा जबरन छीन लिया गया था। जस्टिस रेखा पल्ली ने याचिका को खारिज कर दिया है और याचिकाकर्ता को कहा है कि उन्होंने कोर्ट में अपील दायर करने में अत्यधिक समय लगा दिया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को समझाया कि कानून कहानी के आधार पर काम नहीं करता जिसमें केवल इतनी बात हो कि कब कैसे क्या हुआ। कोर्ट ने टिप्पणी की कि “दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आपने बिना मामला बनाने की कोशिश किए ही एक याचिका दायर कर दी है। आपकी याचिका में ही कहा गया है कि 1857 में ये हुआ, 1947 में ये हुआ। बस इतना ही। आप कुछ भी कहने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि आपको कोई शिकायत है,”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर कोर्ट यह मान भी ले की सुल्ताना बेगम बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा हैं, तो भी याचिकाकर्ता याचिका दायर करने में हुई देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सकता और इसी आधार पर याचिका खारिज की जा सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता अनपढ़ है इसलिए मामला उठाने में समय लगा।
किंतु कोर्ट ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया। जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा “मेरे विचार में, केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता एक अनपढ़ महिला है, इसका कोई कारण नहीं है कि यदि याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती ईस्ट इंडिया कंपनी की किसी भी कार्रवाई से व्यथित थे, तो इस संबंध में प्रासंगिक समय पर या उसके तुरंत बाद कोई कदम नहीं उठाया गया था।” कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कोई ठोस स्पष्टीकरण देने की मांग की।
सुल्ताना बेगम की याचिका में ब्रिटिश प्रशासन के बाद भारतीय गणराज्य को भी आरोपी बनाया गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भारत सरकार ने उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जा किया है। हास्यास्पद यह है कि सुल्ताना बेगम पहले ही सरकार से पेंशन ले रही हैं। सुल्ताना बेगम की एक बेटी को नौकरी भी भारत सरकार से मिली है। समय समय पर सरकार से ही पेंशन बढ़ाने की मांग भी होती है। सरकार परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी नौकरी की व्यवस्था करना चाहती थी लेकिन क्योंकि मुगलों के वंशज अनपढ़ है इसलिए वह सामान्य टेस्ट भी पास नहीं कर सके। इन लोगों ने हर सरकार से समान रूप से सहायता ली है। 2004 में ममता बनर्जी इस परिवार से मिलने गई थी और ₹50000 की आर्थिक सहायता दी थी।
देखा जाए तो लाल किले पर मुगलों का दावा ऐतिहासिक दृष्टि से भी सही नहीं है। मुगलों ने तो लाल किले को बचाने की शक्ति बहुत पहले खुद ही थी। 1788 में रोहिल्ला सदर गुलाम कादिर लाल किले में घुसा था, उसने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की आंख फोड़ दी थी, मुग़ल शहजादे को वेश्याओं के कपड़े पहनाकर और घूंगरूबांध कर मुगल दरबार में नृत्य करवाया था। मुगल हरम की औरतों को बिना कपड़ों के दिल्ली की सड़कों पर घुमाया था। बाद में मराठा सरदार महादजीशिंदे ने मुगलों की लाज बचाई और गुलाम कादिर को सजा दी।
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1857 के विद्रोह के समय भी मुगल बादशाह नाम मात्र के लिए दिल्ली की सत्ता पर काबिज थे। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय पर लिखी पुस्तक द लास्ट मुगल में लेखक विलियम डेलरिंपल बताते हैं कि मुगल बादशाह की इतनी भी हैसियत नहीं रह गई थी कि वह अपनी इज्जत बचा सके। 1857 में दिल्ली युद्ध के समय अवध रेजिमेंट के विद्रोही सैनिकों ने, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार के हिन्दू थे, मुग़ल बादशाह से कहासुनी होने पर उसकी दाढ़ी खींचकर उसे थप्पड़ जड़ दिए थे।
वह भी तब जब वह अपने मुग़लिया तख्त पर बैठा था। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, सब लिखित इतिहास का भाग है। इसलिए सुल्ताना बेगम का यह दावा की लाल किला पूर्णतः बकवास है। अंत समय में जो मुग़ल अपने पान का पैसा भी अंग्रेजों से लेते थे, वह किसी संपत्ति के मालिक क्या ही होंगे।