सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को अपने एक फैसले में कहा है कि गैर हिंदुओं को आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम मंदिर परिसर में कारोबार करने से नहीं रोका जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अन्य धर्मों को मानने वाले उन दुकानदारों को नीलामी प्रक्रिया में शामिल होने से नहीं रोका जा सकता, जिनकी दुकानें मंदिर परिसर में पहले से मौजूद हैं।
आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और बीवी नागरत्ना की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने 17 दिसंबर को यह फैसला सुनाया। उन्होंने कहा, “किसी भी किरायेदार/दुकान धारक को नीलामी में भाग लेने से केवल उनके धर्म के आधार पर पट्टों के अनुदान से बाहर नहीं किया जाएगा।” अपने फैसले में कोर्ट ने आगे कहा कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार और देवस्थानम प्रबंधन को गैर-हिंदुओं को लाइसेंस या पट्टे देने से रोकने वाले किसी भी अन्य आदेश को रद्द कर दिया जाएगा।
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SC ने आंध्रप्रदेश हाइकोर्ट के फैसले को पलटा
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट सितंबर 2019 के आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ की गई अपीलों की समीक्षा कर रहा था, जिसमें गैर-हिंदुओं को हिंदू धार्मिक संगठनों की दुकानों, मॉल और खुदरा परिसरों के लिए पट्टे और लाइसेंस प्राप्त करने पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आंध्र सरकार से कहा, “आप यह कैसे कह सकते हैं कि गैर हिंदू वहां फूल और खिलौने भी नहीं बेच सकते?”
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “एक बार आप कह सकते हैं कि मंदिर परिसर में शराब या ऐसी कोई दुकान नहीं खोली जा सकती, लेकिन हिंदू के अलावा कोई और दुकान नहीं खोल सकता है, यह कहना उचित नहीं है।” दरअसल, इस मामले में आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने अपना पक्ष रखा था। इस मामले में याचिकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 1980 से श्रीशैलम मंदिर स्थल पर किरायेदारों के रूप में वे लोग अपना व्यवसाय संचालित कर रहे थे, लेकिन अब उनके साथ केवल उनके धर्म के कारण भेदभाव किया जा रहा है।
आंध्र सरकार ने वर्ष 2015 में जारी किया था आदेश
गौरतलब है कि इससे पहले आंध्रप्रदेश सरकार ने केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए मंदिर के बगल की दुकानों की नीलामी में भाग लेने का अधिकार देने का आदेश दिया था। इस मामले को लेकर सितंबर 2019 में सैयद जानी बाशा ने आंध्र सरकार के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने तब आंध्र सरकार के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ता सैयद जानी बाशा ने इसके बाद जीवन के अधिकार का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वर्ष 1980 से पहले सभी दुकानदार वहां अपने प्रतिष्ठान चला रहे थे, लेकिन इस आदेश के बाद उन्हें धर्म के आधार पर सूचीबद्ध किया गया।
आपको बता दें कि श्रीशैलम मंदिर से जुड़ी दुकानों की नीलामी प्रक्रिया को लेकर आंध्र सरकार ने वर्ष 2015 में एक आदेश जारी किया था कि हिंदुओं को छोड़कर किसी अन्य धर्म का व्यक्ति भाग नीलामी में भाग नहीं ले सकता है। यह आदेश उन धार्मिक क्षेत्रों के लिए था, जो आंध्र प्रदेश चैरिटेबल एंड हिंदू धर्म संस्थान एंडोमेंट एक्ट 1987 के तहत आते हैं।
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हिंदुओं को सता रहा है डर
श्रीशैलम मंदिर परिसर को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैलसे पर जमकर प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है। सोशल मीडिया पर भी लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं भी दे रहे हैं। पिछले कुछ समय में गैर हिंदुओं द्वारा थूक जिहाद के कई मामले देखे गए हैं। ऐसे में दक्षिणपंथी समुदाय और हिंदुओं का कहना है कि मंदिर परिसर में गैर हिन्दुओं को सामान बेचने के अधिकार देने के बाद अगर कोई गैर हिन्दू दुकानदार दूषित प्रसाद या फूल (दूषित से उनका कहना थूक लगाकर) बेचता है, तो क्या इससे हिंदू मंदिर अपवित्र नहीं होगा?
आपको बता दें कि ऐसे कई घटना सामने आ चुके हैं, जिसमें कट्टरपंथी मुसलमान थूक लगाकर रोटी बनाते हुए तथा सब्जी व फल बेचते हुए पकडे गए हैं। ऐसे में वहां के हिन्दुओं को यह डर सता रहा है कि मंदिर जैसे पवित्र जगह पर दूसरे धर्म के लोगों को सामान बेचने से हिन्दू आस्था को गहरी चोट लगने की संभवना प्रबल होगी। हालांकि, इस मामले में आंध्रप्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने अदालत को भरोसा दिलाया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को हर हाल में प्राथमिकता दी जाएगी।