ओवैसी बनना चाहते हैं 2021 के कासिम रिजवी, हश्र भी वैसा ही हो सकता है

जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है!

कासिम रिजवी

हाल ही में सोशल मीडिया पर ओवैसी का एक विवादित क्लिप वायरल हो रहा है। उसने एक जगह मानो लोगों को लगभग जिहाद के लिए भड़काते हुए कहा, “मैं तो उन पुलिस के लोगों से कहना चाहता हूं, याद रखना मेरी बात को। हमेशा योगी मुख्यमंत्री नहीं रहेगा और हमेशा मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेगा। हम मुसलमान वक्त के तिमार से खामोश जरूर हैं, मगर याद रखो हम तुम्हारे जुल्म को भूलने वाले नहीं हैं। हम तुम्हारे जुल्म को याद रखेंगे। अल्लाह… अपनी ताकत के जरिए तुम्हारी अंतिम को नेस्तनाबूद करेंगे। और हम याद रखेंगे। हालात बदलेंगे। जब कौन बचाने आएगा तुमको? जब योगी अपने मठ में चले जाएंगे, मोदी पहाड़ों में चले जाएंगे। जब कौन आएगा? हम नहीं भूलेंगे।”

पीएम मोदी ने कहीं न कहीं इसी मानसिकता की ओर संकेत दिया था, जब उन्होंने काशी विश्वनाथ धाम से औरंगजेब की विचारधारा को नष्ट करने का संकल्प लिया था। इसी परिप्रेक्ष्य में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी ट्वीट किए, “किसे धमका रहे हो मियां? याद रखना जब-जब इस वीर भूमि पर कोई औरंगजेब और बाबर आएगा तब-तब इस मातृभूमि की कोख से कोई ना कोई वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप और मोदी-योगी बन खड़ा हो जाएगा। सुनों हम ना डरे थे मुगलों से ना जिन्नावादियों से तो तुमसे क्या खाक डरेंगे?”

 

परंतु यह कोई नई बात नहीं, असदुद्दीन ओवैसी आज वही कर रहे हैं जो इनके पूर्वज, सैयद कासिम रिजवी हैदराबाद प्रांत में किया करते थे। जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो लगभग सभी प्रांत विलीनीकरण के लिए तैयार थे, कुछ अपनी इच्छा से, तो कुछ कूटनीति से। परंतु तीन राज्य ऐसे भी थे जिनके लिए सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प था, और हैदराबाद भी इनमें से एक था।

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कासिम रिजवी एक कट्टरपंथी मुसलमान था, जिसके लिए निज़ाम का शासन सर्वोपरि था। इसके लिए वह हैदराबाद के एक करोड़ हिंदुओं का नरसंहार करने तक को तैयार था। अप्रत्यक्ष तौर पर निज़ाम शाही ने कासिम रिजवी और उसके अनुयाई यानी रजाकारों को बढ़ावा देना शुरू किया। निज़ाम शाही की आधिकारिक फौज के अलावा ‘रजाकारों’ की इस सेना के दो प्रमुख उद्देश्य थे – निज़ाम शाही को कायम रखना और गैर मुस्लिमों, विशेषकर हिंदुओं पर अत्याचार को बढ़ावा देना। सरदार फिल्म का यह अंश दिखाने के यह पर्याप्त है कि कासिम यदि सफल होता तो आज भारत की स्थिति क्या होती।

जिस प्रकार से मोपला नरसंहार की वास्तविकता का उल्लेख करने में वामपंथियों को सांप सूंघ जाता है, ठीक उसी प्रकार से हैदराबाद में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों का उल्लेख करने में वामपंथी बगलें झाँकते दिखाई देते हैं। जो वामपंथी आज ‘Stop Hindi Imposition’ की तख्ती गले में लटकाए घूमते हैं, वही निज़ाम शाही, विशेषकर कासिम रिजवी के रजाकारों द्वारा हैदराबाद की जनता पर जबरदस्ती उर्दू थोपे जाने पर मौन व्रत साध लेते हैं, जबकि अधिकांश जनता या तो तेलुगु या फिर मराठी, और कुछ नहीं तो हिन्दी में अवश्य वार्तालाप करती थी।

परंतु कासिम रिजवी का अंत बहुत शानदार नहीं था। जब ऑपरेशन पोलो के पश्चात हैदराबाद प्रांत को स्वतंत्र कराया गया और भारत में उसे शामिल किया गया, तो कासिम रिजवी को हिरासत में लिया गया, जहां उसकी जमकर खातिरदारी हुई। यदि जवाहरलाल नेहरु की कृपा ना हुई होती, तो कासिम रिजवी मृत्यु तक कारागार में सड़ रहा होता। लेकिन यदि ओवैसी उद्यत हैं, तो वे भी अपने पूर्वज की भांति जल्द ही हवालात की हवा खायेंगे।

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