विजय दिवस पर PM मोदी ने किया साफ़, 1971 युद्ध “इंदिरा विजय” नहीं “सेना विजय” है

1971 के नकली Heroes को मोदी सरकार का टाटा बाय-बाय!

1971 युद्ध

बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के ऐतिहासिक युद्ध को 50 वर्ष बीत चुके हैं। 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की पूर्वी कमांड को घुटने टेकने पर मजबूर किया था और सरेंडर के कागज पर जनरल नियाजी के हस्ताक्षर लिए थे। 93 हजार युद्ध बंदियों के साथ पाकिस्तान का आत्मसमर्पण विश्व युद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर हुआ सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। भारत के वीर सैनिकों ने मात्र 13 दिन के अंदर पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया था, वह भी तब जब पाकिस्तान को ईरान, सऊदी अरब, जॉर्डन सहित पूरा अरब जगत समर्थन दे रहा था। श्रीलंका और चीन जैसे भारतीय पड़ोसी, भारत के विरुद्ध खड़े थे और अमेरिका तथा ब्रिटेन जैसी वैश्विक शक्तियों ने युद्ध में खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था तथा अपनी नौसेना के बेड़े को हिन्द महासागर में भारत की घेराबंदी के लिए भेज दिया था।

इस युद्ध की स्वर्णिम वर्षगांठ के उत्सव पर सरकार ने विजय दिवस को उत्सव का रूप दे दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विजय दिवस पर आयोजित उत्सव में हिस्सा लिया। लोकसभा तथा राज्यसभा में उन सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई जो युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस अवसर पर कहा कि इन सैनिकों ने भारत की भावी पीढ़ियों को प्रेरित किया है। वहीं राज्यसभा में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सैनिकों को याद करते हुए कहा कि उन्होंने साहस का निडरतापूर्ण प्रदर्शन किया था।

किंतु गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी इस अवसर पर प्रसन्न नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस और उसके समर्थक पत्रकार, कथित बुद्धिजीवी आदि 1971 के युद्ध की वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के निमंत्रण ने इंदिरा गांधी का नाम ना लिखे होने के कारण अप्रसन्न हैं

कांग्रेस सांसद और गांधी परिवार के राजकुमार राहुल गांधी ने कहा “बांग्लादेश युद्ध को लेकर आज दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया गया। उस समारोह में इंदिरा गांधी का कोई जिक्र नहीं था। जिस महिला ने इस देश के लिए 32 गोलियां लीं, उसका नाम निमंत्रण में नहीं था क्योंकि यह सरकार सच से डरती है।”

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वहीं, इन दिनों गांधी कार्ड की राजनीतिक असफलता के बाद महिला कार्ड खेलने में व्यस्त भूमाफिया रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी श्रीमती प्रियंका वाड्रा ने कहा, “हमारी पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी को भाजपा सरकार के विजय दिवस समारोह से बाहर रखा जा रहा है। यह उस दिन की 50वीं वर्षगांठ पर है जब उन्होंने भारत को जीत दिलाई और बांग्लादेश को आजाद कराया। @narendramodi जी, महिलाएं आपकी बातों पर विश्वास नहीं करतीं। आपका संरक्षणवादी रवैया अस्वीकार्य है। अब समय आ गया है कि आप महिलाओं को उनका हक देना शुरू करें।”

 

देखा जाए तो सरकार द्वारा इंदिरा गांधी को नजरअंदाज करना गलत भी नहीं है। 1971 के युद्ध के बाद विजय का पूरा श्रेय इंदिरा गांधी द्वारा ले लिया गया था और इसमें उनके द्वारा स्थापित प्रचारतंत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण 1971 युद्ध के वास्तविक नायकों को उनका उचित सम्मान आज तक नहीं मिला था। इंदिरा गांधी ने तो अपने राजनीतिक हित के लिए भारतीय सेनाओं को बिना तैयारी ही युद्ध में झोंकने का फैसला कर लिया था, लेकिन  सैन्य प्रमुख फील्ड मार्शल सैम मानिकशॉ ने उनसे तैयारी के लिए नम्बर तक का समय मांगा, जिसे अंततः इंदिरा गांधी ने स्वीकार कर लिया।

कांग्रेस समर्थक चंद्रशेखर दासगुप्ता ने बांग्लादेश निर्माण पर पुस्तक ‛1971’ लिखी है। पुस्तक में यह तर्क दिया गया है कि इंदिरा गांधी ने अपने मंत्रियों को समझाने के लिए सैम मैनिकशॉ को प्रेजेंटेशन देने को कहा जिससे उनके मंत्री समझ सकें कि युद्ध की तैयारी में समय लगेगा। इंदिरा गांधी एक तानाशाह प्रवृत्ति की महिला थी और कम से कम उनके मंत्रियों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें किसी भी मुद्दे को समझाने के लिए इंदिरा गांधी को किसी तीसरे व्यक्ति की आवश्यकता हो। फील्ड मार्शल स्वर्गीय सैम मैनिकशॉ ने तो स्वयं कहा था कि हमला करके की उत्तेजना इंदिरा गांधी में थी। 1971 के युद्ध के बाद इंदिरा द्वारा ने सिक्किम अधिग्रहण किया, कश्मीर में अब्दुल्ला की शक्ति को बलपूर्वक दबाया, पंजाब में समस्या खड़ी की और फिर स्वयं ही खालिस्तानीयों को कुचला, यह उदाहरण बताते हैं कि इंदिरा अत्यंत महत्वकांक्षी महिला थीं। ऐसे में इस बात को अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं है कि स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने सेना पर बिना तैयारी के ही युद्ध छेड़ने का दबाव बनाया होगा और युद्ध में जल्दबाजी में ना कूदने का निर्णय सैम मैनिकशॉ का रहा होगा।

फील्ड मार्शल मैनिकशॉ के अतिरिक्त दूसरा महत्वपूर्ण नाम R N काओ का होना चाहिए जो उस समय R&AW के चीफ थे। उन्होंने बांग्लादेशियों की मुक्तिवाहिनी सेना के गठन, उसकी तैयारी के साथ ही उसे सैन्य संसाधन उपलब्ध कराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। भारतीय खुफिया एजेंसियों के कारण ही बांग्लादेश में हो रहे नरसंहार की रिपोर्ट दुनिया तक पहुंची। उन्होंने ही प्रताड़ित बंगालियों को मदद देकर उन्हें लड़ने लायक बनाया, जिससे गृहयुद्ध के हालात पैदा हुए और अंततः भारत को सैन्य हस्तक्षेप का अवसर मिला।

इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान पर हमले का प्रस्ताव अप्रैल 1971 में रखा था लेकिन सुरक्षा एजेंसियों और सेना के दबाव में इस मुहिम को 1971 के अंत तक टालना पड़ा। इस दौरान भारतीय एजेंसियों ने रूस को अपने पक्ष में किया और उससे भी महत्वपूर्ण बात की उन्होंने चीन की सीमा पर पर्याप्त सैन्य तैयारी कर ली। यही कारण था कि अमेरिका के बार-बार उकसाने पर भी चीन ने पाकिस्तान के पक्ष में भारत के विरुद्ध नया मोर्चा नहीं खोला। ये भारतीय खुफिया एजेंसियों और सेना की उपलब्धि है कि भारत 1971 युद्ध में विजयी रहा। अन्यथा इंदिरा गांधी के प्लान से चलने पर भारत को 1962 की तरह ही हार का सामना करना पड़ता, भले ही व्यक्तिगत स्तर पर हमारे सैनिक अदम्य साहस का परिचय देते।

इंदिरा गांधी ने युद्ध में मिली उपलब्धियों को गवाया अवश्य। उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तान में भारतीय सेना द्वारा कब्जाए गए इलाकों को, पाकिस्तानी युद्धबंदियों को बिना किसी महत्वपूर्ण लाभ के छोड़ दिया। शिमला समझौता हुआ भी तो वह इतना कमजोर था कि पाकिस्तान आए दिन उसका उल्लंघन करता है और कश्मीर के मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहता है। ऐसे में मोदी सरकार ने 1971 युद्ध के लिए इंदिरा जी को मिलने वाली अनावश्यक वाहवाही को समाप्त करके एक अच्छा कदम उठाया है।

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