पीएम मोदी के काशी विश्वनाथ धाम के उद्घाटन से उदारवादी खेमे में मची तबाही

बरनोल की खपत बढ़ने वाली है!

काशी कोरिडोर उद्घाटन

विगत दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र काशी में स्वप्न परियोजना काशी कोरिडोर का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री इस भव्यता का लोकार्पण करने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे थे। इस अवसर पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री द्वारा श्री काशी विश्वनाथ धाम कोरिडोर के उद्घाटन की पूर्व संध्या पर बनारस मानो रंगीन रोशनी में नहाया था। ऐसा लगा जैसे बाबा विश्वनाथ के दरबार की दिव्यता को देखने के लिए सूर्य भी अस्त नहीं  हुआ। वहीं, राष्ट्र गौरव का यह पल कुछ तथाकथित उदारवादियों को रास नहीं आया और इसकी निंदा करने को आतुर हो गए।

PM मोदी ने काशी में किया राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित

बता दें कि काशी पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा में डुबकी लगाई। बाबा के नगर में प्रवेश करने से पहले उनके प्रहरी काल भैरव से आज्ञा ली। काशी कोरिडोर उद्घाटन से पहले दरबार में हाजिरी लगाई। बाबा के आगे शीश झुकाकर आपने आने की सूचना दी। उनके सेवकों पर पुष्पवर्षा  की। बाबा के दरबार का प्रोटोकॉल समझते हुए ज़मीन पर बैठकर उनका अभिवादन किया। प्रसाद ग्रहण किया और तृप्त  हुए। रात को दोनों सेवकों यानी प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी ने बाबा के नगरी का प्रहरी बनने का सौभाग्य भी प्राप्त किया। भव्य समारोह हुए। 3,000 से अधिक विभिन्न धार्मिक मठों, कलाकारों और अन्य उल्लेखित व्यक्तित्वों से जुड़े लोग इस भव्य उद्घाटन के साक्षी बनें।

काशी कोरिडोर उद्घाटन समारोह को राज्य में 51,000 से अधिक स्थानों और देश के अन्य हिस्सों में लाइव स्ट्रीम किया गया और वाराणसी के सभी शिव मंदिरों में जलाभिषेक किया गया। इसके अलावा मंदिर के इतिहास के बारे में एक पुस्तिका के साथ-साथ प्रसाद के 8 लाख पैकेट बांटे गए। जनता भी कम सौभाग्यशाली नहीं महसूस कर रही थी, जो अपने मतों के सही प्रयोग से राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित होते देख रही थी।

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काशी की भव्यता देख उदारवादी खेमे में मची तबाही

ऐसे में, कुछ तथाकथित उदारवादियों को यह बात अच्छी नहीं लगी। लगे धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने। इसे बहुलतावाद से जोड़ने लगे। कारवां की पत्रकार साहिबा विद्या कृष्णन ने इसे सरकारी पैसों का दुरुपयोग बता दिया। यहां तक कि उन्होंने इसकी निंदा करने को एक पत्रकार के उत्तरदायित्व से भी जोड़ा। काशी का कायाकल्प करनेवाली यह सरकारी परियोजना उन्हें सरकार के पैसों का सदुपयोग नहीं लगती या शायद महाकाल भक्तों को भारत का करदाता नागरिक ही नहीं मानती। NDTV के पत्रकार श्रीनिवास जैन ने तो इसे संविधान विरोधी बता दिया। उनके ट्वीट को देखकर लगता है, वो इस भव्य उद्घाटन से ज्यादा इस बात से दूखी हैं कि ये सारे पुण्य और विकास कृत्य मोदी के हाथों क्यों हो रहें है?

द वायर के पत्रकार एमके वेणु के विचार भी कुछ ऐसे ही हैं। पता नहीं कुछ नेता कैसे राष्ट्र सेवकों के मृत्यु की कामना कर खुश हो लेते हैं। एक सच्चे सनातनी के लिए तो बनारस में मृत्यु ही परम सौभाग्य है। मोदी-योगी तो सबसे सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने बाबा के दरबार को संवारने का पुण्य पाया। इन तथाकथित पत्रकारों को धरमनिर्पेक्षता पर एक मानक पाठयपुस्तक पढ़ने की जरूरत है, तभी उन्हें भारत के धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के बारे में ज्ञान होगा। उन्हें धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता के अंतर को भी समझना होगा अन्यथा वो ऐसा भ्रम फैलाते रहेंगे।

किन्तु यह उनका दुर्भाग्य ही है कि मोदी और योगी के साथ मिलकर भारत की जनता उनके ढोंगी धर्मनिरपेक्षता के भ्रमजाल को तोड़ती रहेगी। इसके साथ-साथ ऐसे पत्रकारों का गुट और उदारवादी गैंग का सफ़ाया होता रहेगा।

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