कुतुब मीनार परिसर में एक प्राचीन हिंदू विरासत के अवशेष दबे हुए हैं

कुतुब मीनार नहीं विष्णु स्तंभ कहिए!

कुतुब मीनार हिंदू

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दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब मीनार भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह हर साल हजारों आगंतुकों को आकर्षित करता है। हम सभी ने पढ़ा है कि कुतुब मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुब उद-दीन-ऐबक, उनके दामाद इल्तुतमिश और फिरोज शाह तुगलक ने कराया था। कहा जाता है कि 73 मीटर लंबा कुतुब मीनार एक प्रहरीदुर्ग या विजय मीनार के रूप में बनाया गया था, लेकिन कई लोगों का दावा है कि यह मीनार कभी हिंदू मंदिर था। यह सबूतों के साथ अपने दावों को स्थापित भी करता है। इसलिए आज हम आपके सामने 5 पुख्ता सबूत लेकर आए हैं, जो बताते हैं कि कुतुब मीनार कभी हिंदू मंदिर था।

परिसर की दीवारों पर मंदिर की घंटियां

इस्लाम में घंटियों को शैतानी माना जाता है और कहा जाता है कि ये खुद शैतान का वाद्य यंत्र है। अब यह समझाना कठिन है कि एक मुस्लिम शासक को घंटियों से गहरा प्रेम क्यों है, क्योंकि कुतुब परिसर की दीवारें घंटियों से पटी पड़ी है। यहां खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई थी। हिंदूओं के इन धार्मिक प्रतिकों को आज भी देखा जा सकता है।

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कुतुब मीनार बनाने का कोई कारण नहीं

कुछ का कहना है कि इसे एक प्रहरीदुर्ग के रूप में बनाया गया था, जबकि अन्य कहते हैं कि यह मुसलमानों के लिए अपने भगवान की पूजा करने के लिए बनाया गया था, लेकिन निर्माण के बाद वहां कभी भी नमाज नहीं पढ़ी गई!  वे 73 मीटर ऊंचे टॉवर को बनाने के उचित कारणों की  व्याख्या नहीं कर पातें। आखिर, बिना कारण तीन शासकों के कार्यकाल में अथक श्रम कर इसका निर्माण क्यों कराया गया?

परिसर में हिंदू वास्तुकला

कुतुब मीनार स्थापत्य कला से घिरी हुई है, जो इस्लामी नहीं लगती। कुतुब परिसर के खंभों को हिंदू शैली में डिजाइन किया गया है। खंभों पर खुदी हुई घंटियां हैं, घंटियां बिल्कुल वैसी ही दिखती हैं जैसी हिंदू मंदिर में इस्तेमाल की जाती हैं। बताया जाता है कि परिसर में भगवान गणेश की एक मूर्ति भी है और वास्तुकला में रामायण की कथा को भी दर्शाया गया है।

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ऐबक ने 250 मील दूर जगह क्यों चुना?

कुतुब उद-दीन-ऐबक द्वारा कुतुब मीनार के निर्माण का दावा इसलिए भी झूठा लगता है, क्योंकि वह लाहौर में रहा करता था और लाहौर दिल्ली से 250 मील दूर है। ऐसे में अगर कुतुब उद-दीन-ऐबक एक वॉच टावर, एक विजय टावर या कोई महत्वपूर्ण वास्तुकला बनाना चाहता था, तो उसने अपने निवास से 250 मील दूर जगह क्यों चुना?

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मीनार के आसपास हिंदू निर्माण

अगर हम कुतुब मीनार के हवाई दृश्य को देखें तो पाएंगे कि मीनार हिंदू इमारतों से घिरी हुई है। यह समझाना कठिन है कि हिंदू वास्तुकला वहां क्यों है। हम सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों ने इस्लामी वर्चस्व जमाने के लिए कई हिंदू मंदिरों को तबाह कर दिया था, इसलिए अगर हम कुतुब मीनार को हिंदू मंदिरों पर बने इस्लामी ढांचों  में से एक पाते हैं, तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी।

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कुतुब मीनार की सच्चाई?

कुतुब मीनार को इस्लाम के जन्म से बहुत पहले चौथी सदी के महान शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बनवाया था। इतिहास के मशहूर गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया, जिसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था। उस परिसर में कभी 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर भी हुआ करते थे। ये मंदिर जैन तीर्थंकरों के साथ ही भगवान विष्णु व शिव और गणेश जी के मंदिर थे।

प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर द्वारा स्थापित एक वेधशाला का अवलोकन टॉवर था। ऐसा अनुमान है कि इस वेधशाला की स्थापना चौथी शताब्दी ईस्वी से छठी शताब्दी ईस्वी के दौरान की गई थी। वेधशाला ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख शोध प्रदान किया, जहां ग्रहों और सितारों की गति के बारे में कई गणनाएं की गईं और वैदिक सिद्धांतों को मान्य किया गया। यह निर्णायक सबूत किसी भी वैसे सिद्धांत या अटकलों को समाप्त कर देते हैं कि यह टावर कभी किसी मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा बनाया गया था। उन्होंने केवल हमारी प्राचीन स्थापत्य और वैज्ञानिक विरासत को नुकसान पहुंचाने, विकृत करने और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को बर्बाद करने में अपनी भूमिका निभाई तथा परिवर्तन और विकृतिकरण के इस घनघोर कृत्य को अंज़ाम दिया।

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निष्कर्ष

उपर्युक्त तथ्यों और साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह कोई क़ुतुब मीनार नहीं, बल्कि विष्णु स्तंभ है। इस्लाम में कुतुब का मतलब “धुरी” होता है, जो साफ-साफ दर्शाता है कि इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष और खगोलीय गणना के लिए होता था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत के प्रथम वंश गुलाम वंश की स्थापना की। वह मोहम्मद गोरी का गुलाम था और हिन्दू मंदिरों को तोड कर हिन्द को इस्लाम में परिवर्तित करने को अपना कर्तव्य और स्वामी भक्ति समझता था। इसलिए इसे कुव्वत-ए-इस्लाम कहा गया जिसका अर्थ है ‘इस्लाम की ताकत’

अगर हिन्दू अपनी आंखों से पर्दे हटाएंगे तो समझ जाएंगे कि इस्लामी आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को तोड़ने से इतर मंदिरों को मस्जिद में बदलने का प्रथम उदाहरण विष्णु स्तंभ बना। मंदिर को तोड़कर आप सिर्फ इस्लाम की बर्बरता देख सकते हैं, लेकिन इतने शानदार वास्तुकला को इस्लामिक बता कर उन्होंने इस्लाम को महिमामंडित करने की सोची। आप खुद सोचिए, इतने सालों से राज करनेवाले गौरवशाली शासकों और पद्मनाभ मंदिर के निर्माताओं की वास्तुकला क्या बर्बर आक्रांताओं से भी पिछड़ी थी?

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