पूर्व CJI रंजन गोगोई ने बताया कि कैसे हिंदू-विरोधी तत्वों ने उन्हें राम मंदिर पर निर्णय लेने से रोका

बहुत बाधाओं को पार कर बन रहा है 'राम मंदिर'!

न्यायमूर्ति गोगोई

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एक बार फिर से चर्चा में हैं। 3 अक्टूबर, 2018 से 17 नवंबर, 2019 तक वो भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने 19 मार्च, 2020 को राज्यसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली। गोगोई असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशब चंद्र गोगोई के पुत्र हैं। देश में लगभग 27 साल से लंबित पड़े राम जन्म भूमि विवाद पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ही फैसला सुनाया था। हाल ही में, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने 8 दिसंबर को प्रकाशित अपनी नई आत्मकथा में इस बात का खुलासा किया है कि उन्हें राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने से कैसे रोका गया? पुस्तक में, गोगोई ने उल्लेख किया है कि कैसे एक निश्चित, अज्ञात प्रभावशाली व्यक्ति कोर्ट के Compound में घुसकर सुनवाई को बाधित करना चाहता था?

वह निर्णय ऐतिहासिक था क्योंकि..

न्यायमूर्ति गोगोई अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि दोपहर के आसपास, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से एक कागज की पर्ची मिली, जिसमें कहा गया था कि अयोध्या मामले में एक पक्ष का प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करने की अनुमति मांग रहा था तब न्यायमूर्ति गोगोई ने अपने सहयोगियों को संभावित व्यवधान के बारे में सचेत किया। पूर्व CJI ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है, “जस्टिस बोबडे, जो मेरे दाईं ओर थे और जस्टिस चंद्रचूड़ मेरी बाईं ओर थे उन्होंने नोट (टिपण्णी) के बारे में पूछा क्योंकि पांच-न्यायाधीशों की बेंच द्वारा सुनवाई के बीच रजिस्ट्रार से नोट प्राप्त करना कुछ असामान्य है। चूंकि यह एक प्रशासनिक मामले से संबंधित था, इसलिए मैंने उन्हें उसी के अनुसार बताया।”

यह महसूस करते हुए कि व्यक्ति व्यवधान पैदा करने की अनुमति मांग रहा था, न्यायमूर्ति गोगोई ने महासचिव को एक हस्तलिखित उत्तर वापस भेज दिया। जिसमें कहा गया था कि “किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को न्यायालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।” वहीं, न्यायमूर्ति गोगोई ने भी पिछले कुछ दिनों में एक दुर्लभ अंतर्दृष्टि की पेशकश की, जिससे राम मंदिर निर्माण का ऐतिहासिक निर्णय लिखा गया। जिसे उन्होंने ‘भारत की न्यायपालिका के लिए एक अमूल्य योगदान देने का अवसर’ करार दिया।

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पूर्व CJI को उत्तर-पूर्वी पहचान के कारण निशाना बनाया गया

बता दें कि न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी पुस्तक में बताया है कि शीर्ष अदालत के पांच न्यायाधीशों के बीच चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया था कि राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को भूमि आवंटित करने और मुस्लिम पक्षों को पांच एकड़ वैकल्पिक भूखंड की अनुमति दी जानी चाहिए। हालांकि, एक बार ऐसा करने के बाद, पांचों न्यायाधीशों में से कोई भी एकजुट नहीं रहा। कथित तौर पर, यह न्यायमूर्ति गोगोई थे जिन्होंने अन्य न्यायाधीशों को सुझाव दिया कि न केवल निर्णय एकमत होना चाहिए बल्कि यह केवल एक ही निर्णय होना चाहिए और लेखक के नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि रंजन गोगोई के राज्यसभा के लिए नामांकन के बारे में बहुत कुछ कहकर विपक्ष ने उनकी ईमानदारी को धूमिल करने का प्रयास किया है। वहीं, जब वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए तो लॉबी के प्रिय बन गए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जजों ने बेंचों के आवंटन को लेकर तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा का विरोध किया था। फिर रंजन गोगोई की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश तौर पर उदारवादी गुटों के बीच बहुत धूमधाम से हुई, लेकिन जल्द ही यह तिरस्कार में बदल गई क्योंकि गोगोई ने अपने कार्यकाल के दौरान यथास्थिति को बदल दिया और उपरोक्त राम मंदिर और राफेल जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों की अध्यक्षता की। तब से, जस्टिस गोगोई पर लगे झूठे आरोपों को लुटियन मीडिया द्वारा हवा दी गई है। हालांकि, जस्टिस गोगोई ने अपने हाल के एक साक्षात्कार में कहा कि “उन्हें उनकी उत्तर-पूर्वी पहचान के कारण निशाना बनाया गया है।”

पूर्व CJI का निर्णय इतिहास में हुआ दर्ज 

बताते चलें कि रंजन गोगोई को 12 फरवरी, 2011 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। एक साल बाद, उन्हें 23 अप्रैल, 2012 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। राम मंदिर पर फैसले के बाद से हीं वो कुछ लिबरल लोगों के निशाने पर आ गए थे। ऐसे में, जस्टिस गोगोई के खिलाफ मीडिया और नागरिक समाज के कुछ वर्गों का प्रतिशोध जैसा भी रहा हो किन्तु पूर्व CJI ने इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज कराया है और पीढ़ियां उन्हें उनके द्वारा लिए गए फैसलों (विशेष तौर पर राम जन्म भूमि विवाद) के कारण याद रखेगी।

 

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