शरद गोविन्दराव पवार जैसे राजनीतिज्ञ संसार में एक ही बार जन्म लेते हैं और इनके जैसे प्राणी आपको कहीं नहीं मिलेंगे। कोई इन्हें ‘चाणक्य का शिष्य’ बताता फिरता है, तो कोई इन्हें राजनीति का ‘आदर्श विद्यार्थी’ कहता है परन्तु क्या लाल कृष्ण आडवाणी के बाद भारत के दूसरे स्थायी ‘पीएम इन वेटिंग’ शरद पवार वास्तव में इन उपमाओं के योग्य रहे हैं?
शरद पवार का जन्म आज ही के दिन यानी 12 दिसंबर 1940 को ब्रिटिश इंडिया के बॉम्बे प्रेसिडेंसी के बारामती जिले में हुआ था। राजनीति इनके रक्त में बहती थी क्योंकि इनका परिवार सहकारिता यानी कोआपरेटिव संगठन स्तर पर ही सही परन्तु राजनीति से भली भांति परिचित था। छात्र राजनीति में विशेष रूचि रखने वाले शरद पवार ने वर्ष 1958 में ही युवा कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया था। केवल 27 वर्ष की आयु में उन्होंने बारामती से चुनाव लड़ते हुए 1967 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड विजय प्राप्त की और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
पलटीमार हैं शरद पवार!
कहने को शरद पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं और कई पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक उन्हें ‘राजनीतिक चाणक्य’ की उपाधि भी देते आये हैं। वास्तविकता में तो शरद पवार ऐसे पलटीमार हैं कि स्वयं नीतीश कुमार भी चक्कर खा जायेंगे। इसकी नींव वर्ष 1977 के चुनावों से पड़ी थी। तब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस बुरी तरह से हार चुकी थी और आन्तरिक मतभेद के कारण कांग्रेस दो गुटों में बंट गई, देवराज उर्स वाली कांग्रेस (U]) और इंदिरा वाली कांग्रेस (I)। शरद पवार ने तुरंत देवराज उर्स वाले कांग्रेस यू का हाथ थामा लेकिन जब 1980 के अंत में बालासाहेब ठाकरे और उनकी शिवसेना का वास्तविक उदय होने लगा तो ‘महाराष्ट्र में कांग्रेस संस्कृति’ के बचाव के नाम पर बंधु तुरंत वापिस आ गए।
परन्तु ये तो कुछ भी नहीं था। जब 1998 में कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व संकट उत्पन्न हुआ और सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात सामने आई तो शरद पवार, तारिक अनवर और पी ए संगमा ने विद्रोह कर दिया। तीनों के तीनों पार्टी से निकाल दिए गए और शरद ने NCP की स्थापना की परन्तु शरद इतने कमज़ोर निकले कि 2004 में तुरंत UPA का दामन थाम लिया और कृषि मंत्रालय का पद संभाला। इतने दुर्बल और पलटीमार शिष्य तो आचार्य चाणक्य कभी न स्वीकारते!
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विपक्ष के स्थायी ‘PM इन वेटिंग’ हैं शरद पवार!
क्या आप जानते हैं कि शरद पवार और लाल कृष्ण आडवाणी में क्या समानता है? दोनों अपने पार्टी के सबसे आक्रामक नेताओं में से एक हैं, दोनों ही प्रधानमंत्री बनने के योग्य थे परन्तु दोनों आज तक कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और सदैव ‘PM इन वेटिंग’ के टैग लगाए घूमते रहे जिसके लिए दोनों ही स्वयं दोषी हैं।
उदाहरण के लिए सन् 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में अर्जुन सिंह और शरद पवार शामिल थे, लेकिन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव बने। इस मामले में कांग्रेस नेता एन के शर्मा ने बताया कि सोनिया गांधी पहले पी वि नरसिम्हा राव को अध्यक्ष पद देने को राजी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने ही सोनिया को राव के नाम पर सहमति दिलाई। नतीजन शरद पवार का अध्यक्ष पद के साथ ही पीएम बनने का सपना पहली बार टूटा था।
इसी भांति 2019 में भी इनके पास एक अवसर आया, जब भाजपा तीन राज्य हारकर कथित तौर पर बैकफुट पर आ चुकी थी। वहीं, तीसरे मोर्चे की सरगर्मी फिर से प्रारंभ हो गई थी। शरद पवार ये मानते थे कि 2014 में कांग्रेस की हार राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई थी इसलिए 2019 में कांग्रेस उन्हें मौका नहीं देगी। आरजेडी, टीएमसी, टीडीपी, सपा, बसपा, आप जैसी पार्टियों के साथ पवार ने अनेकों बैठकें कीं। पवार 2019 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद को विपक्षी दलों से पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करवाना चाहते थे, लेकिन एक बार फिर उनके हाथ केवल निराशा ही लगी।
एक कुशल राजनीतिज्ञ नहीं हैं पवार!
लेकिन शरद पवार की सबसे बड़ी भूल तो यह है कि वे बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हैं। ये आदत अभी की नहीं है, ये 1990 से चली आ रही है। जब देश ब्लैक फ्राइडे ब्लास्ट से थर्रा गया था तो शरद पवार ने जानबूझकर 13वें ब्लास्ट का झूठ गढ़ा, जो एक मस्जिद के पास होना था, ताकि ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ बना रहे। इसके अलावा जब पुलवामा हमले के प्रत्युत्तर के रूप में भारतीय वायुसेना ने बालाकोट सहित पाकिस्तान में स्थित कई आतंकी ठिकानों पर हमला किया, तो शरद पवार ने दावा किया कि हमले कश्मीर में हुए, पाकिस्तान में नहीं।
लेकिन हद तो तब हो गई जब शरद पवार ने दावा किया कि वीर सावरकर गौमांस भक्षण का समर्थन करते थे, जिसका किसी ऐतिहासिक पुस्तक में कहीं कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे व्यक्ति को एक राजनीतिक रत्न की संज्ञा देना आधुनिक राजनीति के चाणक्य और प्रचंड विद्वानों का घोर अपमान करने जैसा है।
ऐसे में, शरद पवार कुछ भी हो सकते हैं, परन्तु वो एक कुशल राजनीतिज्ञ तो दूर-दूर तक नहीं है। यदि ऐसे होते, तो वे अब तक एक बार चाहे दो दिन के लिए ही सही, पर देश के प्रधानमंत्री अवश्य बन गए होते। लेकिन नक़ल करने के लिए भी अकल चाहिए, जो शरद बाबू में कतई नहीं!