श्वेत क्रांति के जनक
वर्गीज कुरियन श्वेत क्रांति के जनक थे. उन्होंने देश में दुग्ध उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी कम्पनी अमूल की स्थापना की. अमूल के चेयरमेन श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन के एक्सपेरिमेंटल पैटर्न पर यह ऑपरेशन फ्लड आधारित था. इस कारण इन्हें ही एनडीडीबी (NDDB) का चेयरमेन भी बनाया गया था. तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में कई अन्य कम्पनियों ने और अमूल के इंफ्रास्ट्रक्चर एरेंजमेंट और रिसोर्स के मनेजमेंट के साथ नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड को शुरू किया.
आजादी के बाद हरित क्रांति और श्वेत क्रांति ही वो दो क्रांतियाँ थी. जिनके कारण भारत की आर्थिक स्थिति में बड़े बदलाव आये. इस क्रांति को ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है. जो कि आगे चलकर श्वेत क्रांति के रूप में जाना गया. देश में श्वेत क्रान्ति 1970 में शुरू हुई थी. श्वेत क्रांति के जनक डॉक्टर वर्गीज कुरियन द्वारा भारत में श्वेत क्रांति दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू हुई थी. ताकि देश दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन सके. इससे डेयरी इंडस्ट्री में काफी बदलाव आये और गरीब किसानों को रोजगार मिला. इस कार्यक्रम से देश में स्वस्थ जानवरों की संख्या बढ़ गई, दुग्ध उत्पादन बड़ा, नई मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी किया जाने लगा.
इस क्रान्ति का उद्देश्य भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाले देशों की श्रेणी में लाना था. और इसी प्रोग्राम ने एक समय तक दूध की कमी से जूझने वाले भारत को दुनिया में दुग्ध उत्पादन में अग्रणी बनाया.
श्वेत क्रांति क्या है?
इसमें पूरे भारत में 700 से अधिक कस्बों और शहरों में उत्पादकों को उपभोक्ताओं से जोड़ने वाला एक राष्ट्रीय दूध ग्रिड बनाया. जहां बिचौलियों को खत्म करना और उत्पादकों को इसका पूरा फायदा पपुंचाना था. ऑपरेशन फ्लड के आधार पर ग्राम दुग्ध उत्पादकों की सहकारी समितियां हैं जो दूध की खरीद करती हैं और इनपुट और सेवाएं प्रदान करती हैं. जिससे सभी सदस्यों को आधुनिक प्रबंधन और तकनीक उपलब्ध होती है.
श्वेत क्रांति काल का उद्देश्य भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना था. आज भारत विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है और डॉ वर्गीज कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है.
भारत में श्वेत क्रांति का इतिहास
श्वेत क्रांति के जनक डॉक्टर वर्गीज कुरियन द्वारा ही एक अलग से एजेंसी “इंडियन डेयरी कोरोपोरेशन” (IDC) बनाई गयी, जिससे ओपरेशन फ्लड को ग्रांट मिल सके. और इस तरह से मिल्क प्रोडक्शन जो कि योजना की शुरुआत में 22,000 टन था वो 1989 तक मिल्क पाउडर प्रोडक्शन 1,40000 टन तक पहुच गया. इस श्वेत क्रान्ति के कारण 1950-51 में जहाँ दुग्ध उत्पादन 17 मिलियन टन था वो 2001 -02 तक 84.6 मिलियन टन तक पहुँच गया.
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श्वेत क्रांति के चरण
पहला चरण- यह चरण जुलाई 1970 में शुरू हुआ था, जो कि 1980 तक चला था. इसका उद्देश्य 10 राज्यों में 18 मिल्क शेड्स लगाना था. इस चरण के अंत तक 1981 में 13,000 गाँवों में डेयरी को आपरेटिव विकसित हो चुके थे, जिनमें से 15,000 किसान शामिल थे. इस चरण में यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी द्वारा गिफ्ट दिए गये स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर की सेल की गई थी और इससे ही आर्थिक सहायता मिली थी.
दुसरा चरण- 1981 से 1985 तक चले इस चरण का उद्देश्य पहले चरण को ही आगे बढाते हुए कर्नाटक,राजस्थान और मध्य-प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाना था. 1985 में इस चरण के अंत तक 136 मिल्क शेड्स बन गए, जो की 34,500 गाँवों तक फैले थे और 43000 गाँवों में 4.25 मिलियन तक दूध का उत्पादन होने लगा. 1989 तक घरेलू दुग्ध उत्पादन भी 22000 टन हो गया.
तीसरा चरण- लगभग 10 साल यानी 1985-1996 तक चला. इस चरण ने सहकारी समितियों को विस्तार करने में सक्षम बनाकर कार्यक्रम को अंतिम रुप दिया. दूध की बढती मात्रा की खरीद और बाजार के लिए आवश्यक बुनियादी ढ़ांचे को भी मजबूत करता है.
श्वेत क्रांति के लाभ
– श्वेत क्रांति से 40 वर्ष में 20 मिलियन मैट्रिक टन से 100 मिलियन मैट्रिक टन हो गया.
– इस क्रांत् ने देश के किसानों को ज्यादा से ज्यादा जानवर रखने को प्रोत्साहित किया. जिसके कारण देश में 500 मिलियन तक भैंसे और मवेशी हो गए.
– डेयरी कोपरेटिव मूवमेंट देश के सभी हिस्सों में हुआ जिसका फायदा 22 राज्यों के 180 जिलों के 125000 गांवों को मिला.
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