हर औरंगज़ेब के लिए एक शिवाजी आयेंगे- PM मोदी ने किया काशी विश्वनाथ धाम का भव्य उद्घाटन

ये नया भारत है बंधुओं!

PM Modi

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यहां मौत मातम नहीं है, जश्न है, सौभाग्य है

एकांत माया है यहां और कोलाहल ही वैराग्य है।

बनारस को स्वर्ग नहीं, स्वर्ग से ऊपर मानते हैं

सिर्फ पुण्यात्मा नहीं, यहां साक्षात शिव निवास करते हैं।।

बनारस के बारे में लिखीं यह पंक्तियां कोई काव्य नहीं बल्कि खरा सच है, तथ्य है। जो स्वयं तीनों लोकों के सत्ताधीश की नगरी हो, वह निश्चित ही स्वर्ग से ऊपर ही है। इस नगर के आगे इतिहास की तारीख धुंधली पड़ती है और मानव सभ्यता का अस्तित्व छोटा। काशी समय से भी पुरानी है और वैभव में इस समग्र सृष्टि से वृहद। कितने गाजी आए, कितने गाजी गए परंतु, काशी भव्य से भव्यतम् होती चली गई।

औरंगजेब के क्रूर शासनकाल में जब मुगलिया सल्तनत अपने चरम पर था, तब भी काशी की सत्ता शिखर पर रही। यह सत्ता है- अस्तित्व, अंत, आरंभ, अनंत और सृष्टि संतुलन को बनाए रखने वाले देवाधिदेव महादेव की। कहते हैं काशी नगरी उनके त्रिशूल पर टिकी हुई है। अतः इसके अस्तित्व और संतुलन को कोई भी शक्ति हिला नहीं सकती। इसी शक्ति के सामने शीश झुकाने और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करने 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, भोलेनाथ के दरबार में पहुंचे थे।

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क्या है काशी परियोजना?

339 करोड़ रुपये की इस परियोजना की नींव पीएम मोदी ने 8 मार्च, 2019 को रखी थी। कोविड महामारी के बावजूद, योजना को निर्धारित समयावधि से तीन महीने पहले ही पूरा कर लिया गया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की परिकल्पना तीर्थयात्रियों के लिए काशी विश्वनाथ दर्शन हेतु मार्ग को सुलभ बनाने के लिए की गई थी, जिन्हें गंगा में डुबकी लगाने और महादेव का जलाभिषेक करने के लिए भीड़भाड़ वाली सड़कों से गुजरना पड़ता था। महादेव ने अपने भक्तों के मार्ग को सुगम बनाने का ये सौभाग्य पीएम मोदी और सीएम योगी को सौंपा, जिन्होंने इसे बखूबी पूरा भी किया है।

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कहा जाता है कि “ कर्ता करें ना कर सके, शिव करे सो होय।“ सारे कार्य तो शिव के निमित्त सिद्ध हुए पर, महादेव ने श्रेय का सौभाग्य अपने साधकों को दिया जैसे उन्होंने कभी महाराज रणजीत सिंह और अहिल्याबाई होल्कर को दिया था। कोविड जैसी वैश्विक महामारी भी बाधा नहीं बन पाई और यह कार्य निर्धारित समयावधि से भी तीन साल कम समय में ही पूरा हो गया।

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काशी परियोजना का महत्व

इस परियोजना में मंदिर के आसपास की 300 से अधिक संपत्तियों की खरीद और अधिग्रहण शामिल है। इस प्रयास में करीब 1,400 दुकानदारों, किरायेदारों और मकान मालिकों का पुनर्वास सौहार्दपूर्ण ढंग से किया गया। पुरानी संपत्तियों को नष्ट करने की प्रक्रिया के दौरान, 40 से अधिक प्राचीन मंदिरों को फिर से खोजा गया। इन मंदिरों का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण किया गया है, जबकि यह सुनिश्चित किया गया है कि मूल संरचना में कोई बदलाव न हो।

इसमें 23 इमारतों जैसे पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, भोगशाला, सिटी म्यूजियम, व्यूइंग गैलरी, फूड कोर्ट का उद्घाटन परियोजना के हिस्से के रूप में किया जाएगा। यह परियोजना लगभग 5 लाख वर्ग फुट में फैली हुई है, जबकि पहले परिसर लगभग 3,000 वर्ग फुट तक ही सीमित था। मंदिर के लिए जानेवाली सड़कों पर स्थित इमारतों के मुखौटे हल्के गुलाबी रंग में चित्रित किए गए हैं।

काशी परियोजना का सांकेतिक महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भव्यता का लोकार्पण करने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी काशी पहुंचे। पीएम मोदी द्वारा श्री काशी विश्वनाथ धाम गलियारे के उद्घाटन की पूर्व संध्या पर बनारस मानो रंगीन रोशनी से नहा उठा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे बाबा विश्वनाथ के दरबार की दिव्यता को देखने के लिए सूर्य भी अस्त नहीं हुआ है।

बाबा के नगर में प्रवेश करने से पहले पीएम ने उनके प्रहरी काल भैरव से आज्ञा ली। फिर गंगा में डुबकी लगा कर शुद्ध हुए, जिसके बाद उद्घाटन से पहले दरबार में हाजिरी लगाई। बाबा के आगे शीश झुकाकर अपने आने की सूचना दी, उनके सेवकों पर पुष्पवर्षा की। बाबा के दरबार का प्रोटोकॉल समझते हुए ज़मीन पर बैठकर उनका अभिवादन किया। प्रसाद ग्रहण किया और तृप्त हुए। रात को पीएम मोदी और सीएम योगी ने बाबा की नगरी का प्रहरी बनने का सौभाग्य भी प्राप्त किया।

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भव्य लोकार्पण समारोह हुआ, 3,000 से अधिक विभिन्न धार्मिक मठों, कलाकारों और अन्य उल्लेखित व्यक्तित्वों से जुड़े लोग इस भव्य उद्घाटन के साक्षी बनें। उद्घाटन समारोह को राज्य में 51,000 से अधिक स्थानों और देश के अन्य हिस्सों में लाइव स्ट्रीम किया गया और वाराणसी के सभी शिव मंदिरों में जलाभिषेक किया गया। इसके अलावा मंदिर के इतिहास के बारे में एक पुस्तिका के साथ-साथ प्रसाद के 8 लाख पैकेट बांटे गए।

पता नहीं कुछ नेता कैसे ऐसे राष्ट्र सेवकों के मृत्यु की कामना कर खुश हो जाते हैं। एक सच्चे सनातनी के लिए तो बनारस में मरना ही परम सौभाग्य है। मोदी-योगी तो सबसे सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने भोलेनाथ के दरबार को संवारने का पुण्य पाया! जनता भी कम सौभाग्यशाली नहीं है, जो अपने मतों के सही प्रयोग से राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित होते देख रही है!

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