सोनपुर मेला का इतिहास, कथा और महत्व आपको जानना जरूरी है

सोनपुर मेला

विश्व का सबसे बड़ा मेला ‘सोनपुर मेला’

बिहार के सारन जिले में लगने वाला सोनपुर मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा में लगया जाता हैं. इस मेले को ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता है. सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हैं. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हर साल लगने वाला यह मेला मुख्यतः पशु मेला है जिसमें आमतौर से पशुओं की खरीद बिक्री होती है. बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक लगने वाला विश्व प्रसिद्ध सालाना सोनपुर मेला शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा मेला है, जहां खरीद-बिक्री के लिए सुई से लेकर हाथी तक उपलब्ध होते हैं.

प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं. सरकार भी इस मेले की महत्ता बरकरार रखने को लेकर हरसंभव प्रयास में लगी है. वहीं कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना के साथ पवित्र गंगा और गंडक नदी में डुबकी लगाने आते हैं. आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के रंग में सराबोर सोनपुर मेले में बदलते बिहार की झलक भी देखने को मिलती रही है.

जानवरों और पक्षियों की खरीद-बिक्री

इस मेले की खासियत यह है कि सोनपुर मेला पवित्र गंगा और गंडक नदी के संगम स्थल पर आयोजित होता है और कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु नदी में डुबकी लगाने आते हैं, जो इस दौरान मेले का हिस्सा भी बनते हैं. यहां आपको सैंकड़ों तरह के जानवर और पक्षी देखने को मिल जाएंगे जो यहां बिक्री के लिए लाए जाते हैं. सोनपुर मेला भले ही पशु मेला हो लेकिन जानवरों के अलावा भी एक पर्यटक की दृष्टि से यहां देखने लायक काफी कुछ है

क्या है मान्यता

गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा के साथ-साथ कई धार्मिक व पौराणिक मान्यताएं भी हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल ‘गजेंद्र मोक्ष स्थल‘ के रूप में भी चर्चित है.कहा जाता है कि भगवान के दो भक्त हाथी और मगरमच्छ के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए. कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे मगरमच्छ ने अपने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया.

कई दिनों तक युद्ध चला एवं जब हाथी कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन आकर अपना सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को समाप्त कराया. इस स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था, इस कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है. इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान राम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था.

सोनपुर मेला इतिहास

कहा जाता है कि एक जमाने में सोनपुर मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था. कभी यहां मौर्यकाल से लेकर अंग्रेज के शासन काल तक राजा-महाराजा हाथी-घोड़े खरीदने आया करते थे मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने (340 ई॰पु॰ -298 ई॰पु), वहीं मुगल अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी से यहां हाथियों की खरीददारी करने आया करते थे. सन् 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े के बड़ा अस्तबल भी बनवाया था.

एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा हुआ करता था. वहीं आज भी सोनपुर पशु मेला में आज भी नौटंकी और नाच देखने के लिए भीड़ उमड़ती है. समय के बदलते प्रभाव के असर से हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, पशु बाजारों से हटकर अब आटो एक्स्पो मेले का रूप लेता जा रहा है.

पिछले कई वर्षों से इस मेले में कई कंपनियों के शोरूम तथा बिक्री केंद्र यहां खुल रहे हैं. मेले के दौरान लगने वाले स्टॉल्स में देश के अलग-अलग हिस्सों और राज्यों से आए लोग हैंडीक्राफ्ट्स, जूलरी, पेंटिग्स और पॉटरी जैसी चीजों का प्रदर्शन करते हैं.

इसके अलावा यहां लोक-संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम, मैजिक शो और लाइव म्यूजिक इवेंट भी आयोजित होता है. सोनपुर मेले के प्रति विदेशी पर्यटकों में भी खास आकर्षण देखा जाता है.विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्विस कॉटेजों को निर्माण किया जा रहा है.मेले की महत्ता को बढ़ाने के लिए सरकार यहां विशेष रुप से ध्यान दे रही है.

2020 में क्यों आयोजित नहीं हुआ सोनपुर मेला?

कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण वर्ष 2020 में सोनपुर मेला आयोजित नहीं किया गया था.

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