सुकेश चंद्रशेखर एक चोर है लेकिन क्या मास्टर चोर है

सुकेश चंद्रशेखर की शैली अपने आप में एक कला है कला!

वर्तमान में ED यानी प्रवर्तन निदेशालय ने सुकेश चंद्रशेखर के विरुद्ध 200 करोड़ की हेराफेरी के सम्बन्ध में चार्जशीट दायर की हैl इसी सम्बन्ध में इनसे पूछताछ के दौरान बॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्रियों जैक्लीन फर्नान्डीज़ और नोरा फतेही से इनके संबंधों पर भी पूछताछ हुईl इसपर सुकेश ने न केवल बेधड़क अपनी गतिविधियों की चर्चा की, अपितु ये भी दावा किया कि उन्होंने नोरा और जैक्लीन को अनेकों महंगे उपहार भेंट किये हैंl

सूत्रों के अनुसार, सुकेश ने ED को बताया कि उसने अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज को 52 लाख रुपये का घोड़ा और 9 लाख रुपये की एक फारसी बिल्ली उपहार में दी थी। इसके अलावा चार्जशीट में एक्ट्रेस नोरा फतेही के नाम का भी जिक्र किया गया है, क्योंकि नोरा को सुकेश द्वारा एक महंगी कार गिफ्ट की गई थीl

ऐसे ही सुकेश चंद्रशेखर 200 करोड़ की हेराफेरी का प्रोफेशनल नहीं बना है l इनकी सेटिंग ऐसी है कि तिहाड़ में भी इनकी फुल ऐश थीl जिस बैरक में बारह लोग एक साथ होने चाहिए, वो इन्हें अकेले मिला था, और जेल से भी इनकी रंगदारी में कोई कमी नहीं थी, क्योंकि कीमत सबकी होती है भैयाl

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट्स के अनुसार तिहाड़ जेल के अफसरों की कृपा से सुकेश चंद्रशेखर का रंगदारी का धंधा जेल में भी जारी थाl इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि जेल में चंद्रशेखर अकेले एक बैरक का उपयोग करते थे,  जिसे दर्जनों अन्य कैदियों के साथ साझा किया जाना चाहिए था। इसके अतिरिक्त उसके पास एक मोबाइल फोन है और उसे छिपाने के लिए उसके बिस्तर के आस-पास के क्षेत्र को पर्दों से ढक दिया गयाl

इसके अतिरिक्त इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि सुकेश चंद्रशेखर कथित तौर पर एक मोबाइल फोन के लिए दो हफ्ते पर 60-75 लाख रुपये दे रहा था, जिसका इस्तेमाल वह ठगी जैसे अपराध के लिए करता था। उसकी सभी गतिविधियों और उसे प्रदान की जाने वाली सारी सुविधाओं को छिपाने के लिए उसकी जेल की कोठरी को बेडशीट से ढक दिया गया है, ताकि सीसीटीवी कैमरे में उसकी अवैध गतिविधि पकड़ में ना आ सके।

सुकेश चंद्रशेखर एक अनुपम उदाहरण है कि कैसे इस भ्रष्टतंत्र का उपयोग अपने निजी हित के लिए किया जा सकता हैl निस्संदेह वह सही व्यक्ति नहीं है और कानून का उल्लंघन करने के लिए वह उचित दंड भुगतेगा, लेकिन उसके तौर तरीकों से भ्रष्ट्राचार रोधी एजेंसियां अवश्य सीख ले सकती हैं कि कैसे भ्रष्ट व्यक्तियों और उनकी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण लाया जा सकें, क्योंकि कभी-कभी लोहा ही लोहे को काटता हैl

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