प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन 13 दिसंबर 2021 को किया जाएगा। काशी विश्वनाथ की भव्यता को पुनः प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से इस प्रोजेक्ट की नींव रखी गई थी। किंतु काशी विश्वनाथ की कहानी भारत के संघर्ष की गाथा है, जिसका एक अध्याय अब भी लिखा जाना बाकी है।
मोहम्मद गोरी ने अपने गुलामों के माध्यम से भारत में इस्लामिक राज्य की स्थापना की। इल्तुतमिश जब दिल्ली के सिंहासन पर बैठा, तो उसे मौलानाओं ने भारत में हिंदुओं के विरुद्ध जिहाद छेड़ने की सलाह दी, लेकिन उसने तब यह कहते हुए इनकार किया कि मुसलमान अभी संख्या में कम हैं। तब से लगभग 500 वर्षों तक हिन्दुओं ने मुसलमानों के विस्तार को रोकने का प्रयास किया।
सन् 1658 में औरंगजेब मुगलिया सल्तनत का प्रमुख बना। अपने पिता के काल में ही औरंगजेब ने ओरछा के पवित्र मंदिर को नष्ट किया था, किंतु भोग विलास में लिप्त शाहजहां ने उसका विरोध नहीं किया और न ही तात्कालिक हिंदू शासकों ने। जिसका परिणाम यह हुआ कि औरंगजेब एक पागल हाथी की तरह मुगल साम्राज्य के अधीन रह रहे हिंदुओं को कुचलने के लिए आगे बढ़ गया।
अहमदाबाद के चिंतामन मंदिर से प्रारंभ करके उसने गुजरात सहित पूरे भारत में मंदिरों का विध्वंस शुरू किया। मथुरा के बाद मुगलिया सेना काशी विश्वनाथ की ओर बढ़ी। आलमगीर ने छत्रपति शिवाजी महाराज के आगरा किले से भाग निकलने का क्रोध, काशी विश्वनाथ मंदिर पर निकाला और सन् 1669 में काशी विश्वेश्वर महादेव मंदिर को तोड़ दिया।
मराठों ने निकाल दी थी औरंगजेब की अकड़
इतिहासकारों ने इतिहास के इस पृष्ठ को अतीत से मिटाने का अथक प्रयास किया। कहा जाता है कि मुगलिया सेना के मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व ही मंदिर के मुख्य पुजारी, ज्योतिर्लिंग की पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए, उसे लेकर बगल में स्थित ज्ञानवापी कुएं में कूद गए। कई अन्य कहानियां और भी हैं, जिसे मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा जांच का विषय नहीं माना गया।
विश्वेश्वर मंदिर के तोड़े जाने की घटना ने आलमगीर औरंगजेब के पतन की शुरुआत सुनिश्चित कर दी थी। महादेव का क्रोध छत्रपति शिवाजी राजे की तलवार में साक्षात उतर गया और मराठों ने इस्लामिक शासन की नींव खोदना शुरू कर दिया। यदुनाथ सरकार सहित अन्य प्रमुख इतिहासकार यही मानते हैं कि काशी विश्वनाथ के विध्वंस ने छत्रपति शिवाजी महाराज के इस दृढ़ निश्चय को और मजबूत बनाया कि भारत में हिंदवी साम्राज्य की स्थापना ही शांति का एकमात्र विकल्प है।
मराठों के अथक संघर्ष ने औरंगजेब को दिल्ली छोड़ दक्कन के पठार में घूमने पर विवश कर दिया और अंततः वह दक्कन में ही मर गया। मराठों के संघर्ष ने दिल्ली का पूरा खजाना खाली कर दिया, मुगलिया सल्तनत जर्जर हो गई, साम्राज्य टूट कर बिखरने लगा, औरंगजेब को आगरा की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई। मराठों, राजपूतों, अहोमों और सिखों के संयुक्त प्रयास ने मां भारती को दासता से मुक्त होकर थोड़े समय के लिए स्वतंत्रता के साथ सांस लेने का अवसर दिया।
अहिल्याबाई होल्कर ने की पुन: स्थापना
पेशवा साम्राज्य के अंतर्गत हिंदुओं की मुक्ति वाहिनी सेना ने जब दिल्ली में प्रवेश किया और पूरे उत्तर भारत को मुगलिया चंगुल से छुड़ाया, तब अंततः सन् 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर की पुनः स्थापना की गई। अहिल्याबाई होल्कर ने विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिसपर बाद में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। एक कथा यह भी है कि औरंगजेब के आक्रमण के समय विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग को मुख्य मंदिर से हटाकर बगल की एक झोपड़ी में छुपा दिया गया था और उसी स्थान पर बाद में काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना हुई।
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पीएम मोदी के नेतृत्व में बदल रहा है कायाकल्प
मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण काशी विश्वनाथ पुनः अपने गौरव को प्राप्त कर रहा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में कुल 24 भवन बनाए जा रहे हैं। इस परिसर में मंदिर चौक, मुमुक्षु भवन, सिटी म्यूज़ियम, वाराणसी गैलरी, यात्री सुविधा केंद्र, आध्यात्मिक पुस्तक केन्द्र, पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक भवन, जलपान केन्द्र, अन्न क्षेत्र और दुकानें नजर आएंगी। गंगा घाट से लेकर मुख्य मंदिर के गर्भगृह तक सब कुछ भव्य ही भव्य होगा।
एक अंतिम अध्याय बचा रह गया है, वह ज्ञानवापी मस्जिद का है, जिसे मुख्य मंदिर को तोड़कर बनाया गया था और जिसके साक्ष्य आज भी आंखों से देखे जा सकते हैं। काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद अयोध्या के विवाद से अलग है, क्योंकि काशी विश्वनाथ के दावे के पीछे पर्याप्त पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य भी मौजूद हैं। ऐसे में क्या ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मुख्य मंदिर का पुनर्निर्माण संभव हो पाएगा, यह देखने योग्य होगा। यदि ऐसा हुआ तो हिन्दुओं के संघर्ष गाथा का यह अंतिम पृष्ठ पूरा हो जाएगा!
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