त्रिवेणी और सरस्वती सिन्धु सभ्यता- CSIR NGRI के अध्ययन से होगा एक महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन

प्रयाग में बहने वाली सरस्वती के प्रमाण भी सामने आ गए हैं!

सरस्वती सभ्यता

नदीतमा, वेदों में सरस्वती नदी को यही संज्ञा दी गई है जिसका अर्थ होता है नदियों में सर्वश्रेष्ठ। ऋग्वेद की अनेक ऋचाएं, सरस्वती नदी की प्रशंसा में लिखी गई हैं। सरस्वती नदी को हिंदू मान्यताओं में देवी सरस्वती का स्थान दिया गया है जिन्हें ज्ञान की देवी माना जाता है। सरस्वती नदी को लेकर दो मान्यताएं प्रसिद्ध हैं। प्रथम सरस्वती नदी सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य नदी थी और वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार सरस्वती के किनारे ही हुआ था, जिससे इस सभ्यता को सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है। सरस्वती को लेकर दूसरी बात प्रयागराज से जुड़ी है और माना जाता है कि सरस्वती नदी गंगा और यमुना के संगम में अदृश्य रूप से मिलती है।

वर्षों तक इतिहासकारों तथा वामपंथी विचारकों ने इन मान्यताओं को लेकर हिंदुओं का मजाक उड़ाया क्योंकि इन्हें सिद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं थे। बाद में सिंधु सभ्यता के क्षेत्र में वास्तव में बहने वाली एक नदी का प्रमाण तो मिला और सरस्वती की ऐतिहासिकता सिद्ध हुई किंतु प्रयागराज की कथा अब भी एक मिथक बनी हुई थी। किंतु अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि एक हालिया शोध में यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध हो गई है कि संगम क्षेत्र में एक तीसरी नदी भी भूमि के नीचे से बहती है जिसके बारे में वर्षों से ऋषियों द्वारा लोगों को बताया गया था। इस शोध को इंटरनेशनल पीर रिव्यू की रिसर्च में मान्यता भी मिल गई है।

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प्राचीन नदी की पुष्टि करती है CSIR-NGRI की रिपोर्ट 

Council Of Scientific And Industrial Research–National Geophysical Research Institute (CSIR-NGRI) ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया है कि प्रयाग क्षेत्र में संगम के निकट 45 किलोमीटर लंबी 4 किलोमीटर चौड़ी और 15 मीटर गहरी नदी का प्रमाण मिला है, जो आज भी प्रवाहमान है। जब यह नदी पूरी तरह पानी से भर जाती है तो भूमि के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाती है। इस नदी के पास 1000 MCM स्टोरेज की क्षमता है और किसी भी समय भूजल स्तर को बढ़ाने की अद्भुत क्षमता रखती है। CSIR-NGRI की रिपोर्ट को एडवांस अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

इस खोज के पीछे वास्तविक कारण नदी की वास्तविकता का पता करना नहीं था, बल्कि वैज्ञानिकों ने गंगा के गिरते जलस्तर के बारे में छानबीन शुरू की थी। दुनिया की कई नदियों में जलस्तर गिर रहा है। बड़ी नदियों के निचले स्तर पर एक्वीफर सिस्टम होता है। यह गंगा में भी है और इसके कारण ही बड़े पैमाने पर भारत के उत्तरी मैदान में जल आपूर्ति होती है। पिछले कई वर्षों में गंगा पर जलापूर्ति के लिए दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जिस कारण गंगा के जलस्तर में कमी हो रही है। यह सतह पर नहीं दिखती लेकिन नीचे स्थित एक्वीफर सिस्टम प्रभावित कर रही है।

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गंगा यमुना में जल स्तर को संतुलित रखती है यह नदी

गंगा यमुना दोआब क्षेत्र में यह समस्या किस प्रकार पर्यावरण को प्रभावित कर रही है इसकी जांच के लिए CSIR-NGRI की टीम ने शोध शुरू किया। वैज्ञानिक सुभाष चंद्र, वीरेंद्रएम तिवारी, मुलावाडाविद्यासागर आदि कई वैज्ञानिक इसमें शामिल हैं। इन लोगों ने हेलीकॉप्टर की सहायता से पूरे क्षेत्र की मैपिंग के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे शुरू किया। कई उड़ानों के बाद टुकड़े टुकड़े में हुए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक्स सर्वे को एक साथ मिलाकर जब इस पूरे क्षेत्र का एक नक्शा बनाया गया तो यह आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया।

अब तक जितने रिपोर्ट सामने है, इस अदृश्य नदी के उद्गम के संदर्भ में पर्याप्त बातें नहीं कही जा सकती लेकिन यह तय है कि, यह नदी 12 महीने जल से भरी रहती है और गंगा यमुना में जल स्तर को संतुलित रखती है।

इस जांच के बाद अंतरराष्ट्रीय पीर रिव्यू ने प्राचीन नदी की प्रामाणिकता की पुष्टि की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह दृश्य नदी उसी स्थान पर मिली है जहां पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सरस्वती नदी के बहने की बात कही गई थी। इस रिसर्च को बाद में American Geophysical Union (AGU) में भी छापा गया है। इन शोधों ने सरस्वती की प्रामाणिकता को सिद्ध कर दिया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अग्रिम जांच से यह बात सिद्ध हो सकती है कि इस अदृश्य नदी का उद्गम हिमालय में ही है क्योंकि गंगा और यमुना का उद्गम हिमालय में ही है।

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शोध का निर्देशन NGRI के निदेशक डॉ० वीरेंद्रएम तिवारी ने किया है। उन्होंने बताया ‛जिस गहराई पर नदी की खोज की गई थी और ड्रिलिंग प्रक्रिया के बाद प्राथमिक विश्लेषण को देखते हुए, ऐसा लगता है कि नदी 10 से 12,000 साल पुरानी होने की संभावना है। हालांकि, केवल आगामी शोध ही नदी की वास्तविक आयु के बारे में जानकारी दे पाएंगे।’

हरियाणा सरकार ने हाल में सरस्वती नदी के पुनर्जीवन के लिए 800 करोड़ के प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। हरियाणा के उन क्षेत्रों में जहां सरस्वती के बहने के प्रमाण मिले हैं, उनके लिए यह प्रोजेक्ट था। वहीं अब प्रयाग में बहने वाली सरस्वती के प्रमाण भी सामने आ गए हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को व्यापक स्तर पर एक प्रोजेक्ट को शुरू करना चाहिए जिसके अंतर्गत भारत के पश्चिमोत्तर व उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में मौजूद सरस्वती सभ्यता के सभी प्रामाणिक तथ्यों को एक साथ लेकर शोध की जाए।

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