जब मुलायम ने फंसाया था योगी को: CM योगी बनाम अखिलेश के झगड़े की जड़ें अतीत से जुड़ी हैं

समय का चक्र बदलता है बंधु!

उत्तर प्रदेश सरकार

उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होना है कि उससे पहले प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजीव राय और अखिलेश यादव के करीबी रहे OSD जैनेंद्र उर्फ नीटू यादव के ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भड़के हुए हैं। उन्होंने वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार पर सपा नेताओं के फोन टैप करने का आरोप लगाया है। हालांकि, आयकर विभाग की छापेमारी के बाद बेनामी संपत्ति के कई कागजात मिले हैं। वहीं, सपा प्रमख को लगता है कि उन पर कार्यवाही राजनीतिक बदले की भावना से हो रही है। एक समय था जब समाजवादी पार्टी ने तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ पर गोरखपुर दंगे में राजनीतिक स्वार्थ हेतु झूठे आरोप लगाए थे।

गोरखपुर दंगे में समाजवादी पार्टी ने फैलाया था झूठ

दरअसल, अखिलेश यादव के अनुसार भाजपा को हार का डर सता रहा है जबकि तमाम सर्वे यह दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की वापसी लगभग सुनिश्चित है। अखिलेश यादव के आरोप एक दूसरी कहानी की पटकथा की ओर इशारा करते हैं, जब योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद के कारण उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उनके विरुद्ध गैरकानूनी कार्यवाही की थी। यह घटना वर्ष 2007 की है जब ठंड के मौसम में उत्तर प्रदेश का राजनीतिक वातावरण गर्म हो उठा था। गोरखपुर में एक हिंदू की मोहर्रम के दिन हत्या कर दी गई थी।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का क्षेत्र सांप्रदायिक हिंसा के लिए बदनाम हो गया था। वहीं, गोरखपुर अपने गोरखनाथ पीठ के कारण हिंदुओं की शक्ति का गढ़ माना जाता था। गोरखपुर धाम के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ पांच बार इस जगह से सांसद रह चुके हैं। गोरखपुर हिंदू युवा वाहिनी के कार्यों की केंद्रस्थली भी थी। मुलायम सरकार में मुस्लिम कट्टरपंथियों का हौसला बुलंद था, जिसका परिणाम जनवरी 2007 में गोरखपुर हत्याकांड के रूप में सामने आया।

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योगी आदित्यनाथ ने इस हत्याकांड के विरुद्ध एक रैली का आयोजन किया तथा हत्याकांड की आलोचना की। रैली में जाने से पूर्व ही मुलायम सरकार द्वारा योगी आदित्यनाथ सहित हिंदू युवा वाहिनी के कई बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी के पीछे तर्क यह दिया गया कि योगी की रैली से गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगे फैल सकते थे। हालांकि, योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी ने सांप्रदायिकता की आग को और भड़का दिया, जिससे यह हिंसा प्रदेश में बड़े पैमाने पर शुरू हो गई।

झूठे आरोप में फंसाना है विपक्ष का मुख्य एजेंडा

योगी आदित्यनाथ को अकारण ही 11 दिनों तक जेल में बंद रखा गया। बाद में एक जिला न्यायालय ने अपने फैसले में योगी आदित्यनाथ कि 24 घंटे से अधिक की गिरफ्तारी को गैरकानूनी घोषित किया तथा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की दलीलों के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई। अपनी गिरफ्तारी के बाद जब योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे, तो वहां उन्होंने प्रदेश सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। योगी आदित्यनाथ ने संसद में कहा कि “उन्हें गिरफ्तार करने के पीछे प्रदेश सरकार की मंशा उनको मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़ित करने तथा उनका अपमान करने की थी।” अपने वक्तव्य में योगी आदित्यनाथ फूट-फूटकर रोए थे।

उस समय योगी आदित्यनाथ के रोने की घटना का समाजवादी तथा कांग्रेसियों द्वारा मजाक बनाया गया था। वहीं, समय का चक्र घुमा और 10 वर्ष बाद साल 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए। आज उसी योगी आदित्यनाथ के शासन में माफ़िया जगत घुटनों पर है, जिन्हें सपा के कार्यकर्ता डरपोक कहते थे। योगी के शासन में आने के बाद उत्तर प्रदेश में अब दंगाई उनसे डरते हैं।

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ऐसे में, कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव का वक्तव्य उनकी अपनी मानसिकता को प्रदर्शित करता है, जो उन्हें उनके पिता से विरासत में मिली है। विरोधियों को झूठे आरोप में फंसाना सपा, कांग्रेस, आरजेडी जैसे विपक्षी दलों की राजनीति का मुख्य एजेंडा है।

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