कोणार्क सूर्य मंदिर में पूजा फिर से शुरू होनी चाहिए, यह कोई पिकनिक स्थल नहीं है

कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतम है!

कोणार्क का सूर्य मंदिर

सनातन धर्म विश्व का सबसे उत्तम धर्म है, जिसकी सभ्यता और संस्कृति का अपना एक महत्त्व है। सनातन धर्म युगों से सत्य और कर्म का मार्ग दिखाता आया है। हिन्दू अपनी आस्था के अनुसार मंदिरों में ईश्वर का ध्यान करते हैं और प्रार्थना करते हैं। भारत देश जिसमें बहुसंख्यक हिन्दू आबादी सबसे अधिक है और प्राचीन सभ्यता के अनुसार देश में ऐसे कई प्रसिद्द मंदिर है। एक ऐसा हीं मंदिर है, जिसका इतिहास बहुत ही रोचक रहा है और वह है कोणार्क का सूर्य मंदिर।

कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। कोणार्क शब्द ‘कोण’ और ‘अर्क’ शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य, जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से है। यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो सूर्य भगवान को समर्पित है। यह ओडिशा राज्य का आध्यात्मिक केंद्र होने के साथ-साथ प्राचीन निर्माण कला का सच्चा उदाहरण भी है। यह  ओडिशा राज्य के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जहां हर साल दुनिया भर से हजारों लोग आते हैं। इस प्रसिद्द मंदिर को लेकर प्राचीन सभ्यता से एक कहानी प्रसिद्द है।

क्या है कोर्णाक मंदिर का इतिहास ?

दरअसल, इस मंदिर में पूजा नहीं होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि इस मंदिर के संस्थापक राजा नरसिंहदेव (प्रथम) ने मंदिर को पूरा करने के लिए एक समय सीमा तय की थी और कहा था कि अगर बिशु महाराणा और श्रमिक मंदिर बनाने में विफल रहे तो उन्हें राजा द्वारा दंडित किया जाएगा। हालांकि, मंदिर निर्माण के समापन के अंतिम दिन ‘दधी नौटी’ नामक ताज पत्थर गलती से गिर गया और समय सीमा के अनुसार काम पूरा नहीं हो पाया।

वहीं, मुख्य वास्तुकार बिशु महाराणा इस मंदिर को बनाने के लिए दिन-रात काम करने वाले 1200 श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर अवसाद में थे। इस बीच अचानक एक लड़का बिशु महाराणा के पास आया, जो कि 12 साल का था, जिसका नाम धर्मपद था और उसने बताया कि वह उसका बेटा है क्योंकि वह इस मंदिर को बनाने में पिछले 12 साल से व्यस्त था। इसलिए वह इससे पहले अपने पिता से कभी नहीं मिल पाया किन्तु इस 12 साल के बेटे ने राजा द्वारा 1200 मजदूरों की जान बचाने के लिए दधी नाथी को ठीक करने का कदम उठाया।

लेकिन बिशु महाराणा का कहना था कि “जब राजा को पता चलता है कि 1200 कुशल श्रमिकों के बजाय 12 साल का एक बच्चा मंदिर निर्माण के पीछे जिम्मेदार है, तो वे श्रमिकों को भी मार सकते हैं। तब धर्मपद ने चंद्रभावा नदी में मंदिर के ऊपर से अपना जीवन बलिदान करने और श्रमिकों के जीवन को बचाने का फैसला किया।”

वहीं, महान कवि व नाटकार रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस मन्दिर के बारे में लिखा है कि- “कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।”

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भारतीय मंदिरों का जीर्णोद्धार करना है जरुरी

इस मंदिर के मुद्दे को लेकर देश के सबसे बड़े अल्टरनेट मीडिया पोर्टल TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि “यह दृश्य मेरे पुराने फोन पर मिला। यह कोणार्क सूर्य मंदिर है। मुझे याद है कोणार्क से मिली-जुली भावना के साथ वहां से लौटना दुःख की बात है कि इतने भव्य मंदिर में पूजा के लिए कोई जगह नहीं। गर्भ गृह पर ताला लगा हुआ है। एक आंतरिक आवाज ने मुझे बताया कि अगर यहां अनुष्ठान फिर से शुरू हुए, तो पूरा भारत धन्य हो जाएगा।”

उसके बाद से इस मंदिर में कभी पूजा नहीं हुई है और कुछ लोगों का कहना है कि यह बालक सूर्य देव का अवतार था, जो राजा नरसिंहदेव (प्रथम) के अहंकार को तोड़ने के लिए जन्मा था। आज के परिदृश्य में यह मंदिर एक पिकनिक स्पॉट के समान बन कर रह गया है, मुख्यतः भारत देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जिसका जीर्णोद्धार करना जरुरी है और इस सूची में कोणार्क सूर्य मंदिर का सबसे पहले आता है। हिन्दू धर्म के इस प्रसिद्द मंदिर में पूजा ना होना, भारत में हिन्दु अनुयायियों के लिए सबसे दु:खद है।

 

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