सुकरात का सम्पूर्ण जीवन परिचय
प्रस्तुत लेख में सुकरात का जीवन परिचय दिया गया है और आशा है कि यह लेख आपको पसंद आएगा. सुकरात एक विख्यात यूनानी दार्शनिक थे. उसके बारे में यह कहा जाता है कि वह एक कुरूप व्यक्ति थे और बोलते अधिक थे. सुकरात को सूफ़ियों की भाँति शिक्षा और उदाहरण देना ही पसंद था. उसके समसामयिक भी उन्हें सूफ़ी समझते थे. सूफ़ियों की भाँति वह साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर जोर देते थे और उन्हीं की तरह वह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करते थे. सुकरात ने कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा. तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष सुकरात पर लगाया और इसके लिए उन्हें जहर देकर मारने का दंड मिला.
सुकरात का जीवन परिचय
सुकरात के जीवन परिचय की बात करें तो उन्होंने अपने जीवन में कोई लेख या पुस्तक नहीं लिखी लेकिन उनके दो मुख्य शिष्य अरस्तु और प्लेटो ने उनके सिद्धांतों और दर्शन का खूब प्रचार भी किया और किताबें भी लिखी है और सम्पूर्ण विश्व इन दोनों के द्वारा ही सुकरात के जीवन परिचय को जान पाया. सुकरात का जन्म 469 ईसा पूर्व में एथेंस हुआ था. उन्होने अपना जीवन एथेंस में व्यतीत किया था. सुकरात के पिता एक संगतराश थे. वहीं उनकी माता दाई का काम करा करती थीं.
शुरुआत में सुकरात ने अपने पिता के काम काज में हाथ बंटाया पर बाद में वह सेना की नौकरी में चले गये. वहीं वह पैटीडिया के युद्ध में वीरतापूर्वक लड़े थे. उनकी वार्ताओं के कारण ही उनको उस समय का सबसे अधिक ज्ञानवान व्यक्ति समझा जाता था. कुछ समय तक सुकरात एथेंस की काउंसिल का सदस्य भी रहा. जहां उसने पूरी इमानदारी और सच्चाई के साथ काम किया.
विवाह
सुकरात की दो शादियां हुए थी. सुकरात की पहली पत्नी का नाम ‘मायरटन’ था. उससे सुकरात के दो पुत्र हुए. जबकि उनकी दूसरी पत्नी का नाम ‘जैन्थआइप’ था. जिससे उनको एक पुत्र प्राप्त हुआ.
व्यक्तित्व
कुछ विद्वानों के अनुसार सुकरात एथेंस में उत्पन्न महानतम व्यक्तियों से भी महान् माना जाता है. सुकरात शत-प्रतिशत ईमानदार, सच्चा एवं दृढ़ संकल्प वाला व्यक्ति था. उसकी मान्यताएं ईसाई धर्म को मानने वाली थीं. वह लोगों को उपदेश देने के लिए सुबह ही अपने घर से निकलकर निकल पड़ते थे. वह लोगों को सच्चा तथा सही ज्ञान देकर उनको सही मार्ग पर लाना चाहते थे.
सुकरात का कहना था कि- “सच्चा ज्ञान संभव है, बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए. जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं पर हम परखें, इस तरह अनेक परखों के बाद हम एक सचाई पर पहुँच सकते हैं. ज्ञान के समान पवित्रतम कोई वस्तु नहीं है.”
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सुकरात का जीवन दर्शन और परिचय
सुकरात का जीवन परिचय पाने के लिए आपको उनका जीवन दर्शन समझना होगा और सुकरात का क्या जीवन दर्शन था? यह उनके आचरण से ही पता लगता है. लेकिन उसकी व्याख्या कई लेखक भिन्न-भिन्न तरीकों से करते हैं. कुछ लेखक सुकरात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दर्शाकर करते हैं कि वह भोगी था. वहीं दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं.
सुकरात को हवाई बहस पसंद नहीं थी. वह एथेंस के बहुत ही ग़रीब घर में पैदा हुए थे. गंभीर विद्वान और ख्याति प्राप्त हो जाने के बाद भी सुकरात ने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी. ज्ञान का संग्रह और प्रसार करना यही उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य था. उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य ‘अफलातून’ और ‘अरस्तू’ ने पूरा किया. इनके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- सुकरात का गुरु-शिष्य यथार्थवाद
- अरस्तू का प्रयोगवाद
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सुकरात पर मुक़दमा-
सुकरात के दुश्मनों को 399 ईसा पूर्व सुकरात को खत्म करने में सफलता मिल गयी थी. उन्होंने सुकरात पर मुक़दमा चलवा दिया.वहीं सुकरात पर मुख्य रूप से तीन आरोप लगाये गए –
– सुकरात मान्य देवताओं की उपेक्षा करता है और उनमे विश्वास नहीं करता.
– उसने राष्ट्रीय देवताओं के स्थान पर कल्पित जीवन देवता को स्थापित किया है.
– सुकरात नगर के युवा वर्ग को भ्रष्ट बना रहा है.
सुकरात ने अपने केस को लड़ने के लिए वकील करने से मना कर दिया था. वहीं उन्होने कहा कि “एक व्यवसायी वकील पुरुषत्व को व्यक्त नहीं कर सकता है.” सुकरात ने अदालत में कहा- “मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने एथेंसवासियों की सेवा में लगा दिया है. अब मेरा उद्देश्य केवल अपने साथी नागरिकों को सुखी बनाना है. यह कार्य मैंने परमात्मा के आदेशानुसार अपने कर्तव्य के रूप में किया है. परमात्मा के कार्य को आप लोगों के कार्य से अधिक महत्व देता हूँ.
यदि आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दें कि मैं सत्य की खोज छोड़ दूँ, तो मैं आपको धन्यवाद कहकर यह कहूंगा कि मैं परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अपने वर्तमान कार्य को अंतिम श्वास तक नहीं छोड़ सकूँगा. तुम लोग सत्य की खोज तथा अपनी आत्मा को श्रेष्ठतर बनाने की कोशिश करने के बजाय सम्पत्ति एवं सम्मान की ओर अधिक ध्यान देते हो. क्या तुम लोगों को इस पर लज्जा नहीं आती.” सुकरात ने यह भी कहा कि “मैं समाज का कल्याण करता हूँ, इसलिए मुझे खेल में विजयी होने वाले खिलाड़ी की तरह सम्मानित किया जाना चाहिए.”
विष का सेवन
सुकरात की यह बात सुनकर न्यायाधीश नाराज हो गए. न्यायाधीशों ने सुकरात को मृत्यु दंड का आदेश दिया और कहा कि उसको विष का प्याला पीना होगा. सुकरात को तय समय पर विष का प्याला दिया गया. सुकरात ने विष का प्याला लिया और उसे पी लिया . विष को पीते समय सुकरात के चेहरे पर हल्की-सी मुकुराहट थी. विष का पान करने के बाद सुकरात का शरीर ठंड़ा पड़ गया और उनकी मृत्यु हो गई. सुकरात के विष सेवन के बारें में किसी महान दार्शनिक ने कहा है कि “उस प्याले में जहर था ही, क्योंकि अगर जहर होता तो सुकरात कब का मर गया होता.” आशा करते है कि सुकरात का जीवन परिचय पर यह लेख आपको पसंद आया होगा एवं ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पेज फॉलो करें.